हमारे यहां नये के नाम पर बहुत सा सैलीब्रेशन होता है, जैसे नया साल शुरू होने पर, चाहे वह अंग्रेजी वाला हो या विक्रम संवत वाला या दीपावली से प्रारंभ हो। ऐसे ही जन्मदिन आने पर नये वर्ष में प्रवेश का उत्सव भी मनाते हैं, यह एक अंतहीन सिलसिला है जो किसी न किसी बहाने चलता रहता है। मेरा यह मानना है कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज दिन में नयापन नहीं देख पाने के कारण हम वर्ष में कभी-कभी नयापन खोजने की कोशिश करते हैं। व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो यह अपने आप को धोखा देने की एक तरकीब मात्र से अधिक नहीं है। दिन तो कभी भी पुराना नहीं लौटता बल्कि रोज नया ही होता है। हर पल और हर क्षण हमारे लिए नया होता है, लेकिन हमने अपनी जिंदगी को पुराना कर रखा है, उसमें नये की तलाश मन में बनी रहती है, ऐसे में वर्ष में कुछ दिनों को नया मानकर इस तलाश को पूरा करने की कोशिश करते हैं। पर यहां सोचने वाली बात यह है कि जिसका पूरा वर्ष पुराना हो, उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है। जिसे एक साल पुराना देखने की आदत हो, वह एक को नया कैसे देख सकता है। यह तो नये को धोखा देने जैसा हुआ, यूं नये कपड़े, नया उत्सव, मिठाइयां, गीत सब भले ही नये हो, लेकिन इनसे कुछ होता नहीं है। नया करने या महसूस करने के लिए नया मन चाहिये, नया मन जिसके पास हो, उसके लिए कभी भी कुछ पुराना नहीं हो सकता। जिसके पास ताजा मन हो, तो सोच ताजगी वाली हो जाती है और वह हर चीज को नई व ताजी कर लेता है। अगर ताजा मन हमारे पास नहीं हैं, तो हम चीजों को नई करते रहते हैं, मकान पर नया रंग रोगन कर लेते हैं, पुरानी कार बदल कर नई कार ले आते हैं, पुराने कपड़ों की जगह नया कपड़ा ले लेते हैं, बस चीजों को तो नया करते रहते हैं, क्योंकि खुद को नया करने का मन हमारे पास नहीं होता। एक व्यवहारिक सच है कि नया कितनी देर नया रहता है, इधर नये कपड़े पहनने की दो-तीन घंटे बाद ही वे पुराने लगने लगते हैं। नई कार खरीद भले ही ली हो, लेकिन घर के पोर्च में आते ही पुरानी हो जाती है। कभी किसी ने सोचा है कि नये और पुराने के बीच कितना फासला होता है, जब तक जो नहीं मिला वह नया होता है और मिल गया तो पुराना हो जाता है। चीजों को नया करने वाली इस वृत्ति ने सब तरफ जीवन को बड़ी कठिनाई में डाल दिया है, यह कठिनाई पश्चिमी देशों में तो दिखने को मिल रही है। नये की खोज जरूर है मन में और होनी भी चाहिये। लेकिन दो तरह से नये की खोज होती है, या तो खुद को नया करने की, जिसके तहत व्यक्ति खुद को नया कर लेता है और उसे कभी कोई चीज पुरानी नजर ही नहीं आती। दूसरे वह जो अपने मन को रोज नया कर लेता है तो उसके लिए हर चीज रोज नई हो जाती है। जो खुद को नया नहीं कर पाता, उसके लिए सभी चीजें पुरानी ही होती है।
नया पाने के बाद थोड़ी देर का धोखा होता है कि चीज नई आ गई, लेकिन थोड़ी देर बाद वह भी पुरानी हो जाती है। दुनिया में दो तरह के लोग हैं, एक वे जो अपने को नया बनाने की राह खोज लेते हैं और एक वे जो खुद को पुराना बनाये रखते हैं और चीजों को नया करते रहते हैं। दूसरी श्रेणी वाले लोग भौतिकवादी होती हैं। जबकि पहली श्रेणी वाले एक तरह से आध्यात्मवादी कहे जा सकते हैं। आध्यात्मवादियों की सोच होती है कि हम नये हो गये, तो इस जगत में हमारे लिए पुराना तो कुछ रहेगा ही नहीं। यह अपने अपने दृष्टिकोण वाली बात होती है। जब नया साल शुरू होता है, तो नये साल के पहले दिन हम नववर्ष की शुभकामनाएं एक दूसरे को देते हैं। पर पहला दिन ढलते-ढलते वह दिन भी पुराना हो जाता है और नया साल प्रारंभ होने के साथ पुराना होने लगता है। अगले दिन शुरूआत से ही लगता है कि नये साल का पहला दिन बीत गया और आज दूसरा दिन बीत रहा है। यहां संदेश यह है कि हम अपने चित्त और वृत्ति को बदलें। यह बदलाव हमारी दैनिक दिनचर्या, जीवन और काम-काज सभी के लिए आवश्यक है तथा महत्वपूर्ण भी। इसलिए अपने चित्त को रोज नया करें, यह कैसे हो सकता है, वह बड़ी बात है लेकिन मुश्किल नहीं। अगर आप अपने चित्त को नया रखते हैं, तो न नया साल होगा, न नया दिन होगा और न नये आप होंगे और तब कोई चीज पुरानी हो ही नहीं सकती। जो आदमी निरंतर नये में जीने लगता हो, उसकी खुशी का कोई हिसाब हो भी नहीं सकता। जिस रास्ते से आप गुजर रहे हैं, तो वहां किसी पेड़ पर खिले नये फूल को देखिये, नये पत्तों को देखिये। बस यहां से आप प्रेरणा लीजिये कि जब पेड़ पर नये पत्ते व फूल प्रतिदिन आ सकते हैं, तो हम अपने आप में हर पल नयापन क्यों नहीं महसूस कर सकते। एक आदमी एक फकीर के पास गया और बोला कि मुझे शांत रहने का अभ्यास करना है, कितनी देर के लिये करूं। फकीर ने कहा कि एक पल के लिए पर्याप्त है, उस आदमी ने कहा एक पल से क्या होगा, तो फकीर ने जवाब दिया कि जो एक पल के लिए शांत हो सकता है वह और भी अधिक अवधि के लिए हो सकता है, अत: पहले एक पल के लिए शांत होना सीख लो, बाकी जितनी देर तुम चाहो उतनी देर शांत रह सकते हो। हम पल को पुराना तो करना जानते हैं, लेकिन नया करना नहीं जानते। जिंदगी वस्तुत: वैसी ही हो जाती है जैसी कि हम कर लेते हैं। हम प्रत्येक चीज में पुरानी को खोजने का प्रयास करते हैं, आतुर होते हैं। यह ठीक नहीं है। एक व्यापारिक संस्थान के लिए जरूरी है कि नियोक्ता या मालिक खुद भी अपनी सोच बदले तथा हर पल नया हो रहा है यह दृष्टिकोण अपनाये, तो स्वयमेव हर काम नया होता दिखाई देगा और जब ऐसा होता है तो साथ ही स्वाभाविक है कि कार्य उत्पादकता की स्थिति में भी सुधार होगा। एक कारोबारी संस्थान के लिए कार्य-उत्पादकता की स्थिति में सुधार ही तो अहम लक्ष्य होता है, वह सुधार हो गया तो बहुत से लक्ष्य हासिल किये जा सकते हैं। अत: प्रत्येक अधिकारी, कर्मचारी और श्रमिक की मन-स्थिति नया देखने की बने, यह सुनिश्चित करना एक नियोक्ता के लिए आवश्यक ही नहीं बल्कि महत्वपूर्ण भी है।