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30-10-2025

इंडिया की मिट्टी में नाइट्रोजन, ऑर्गेनिक कार्बन जैसे पोषक तत्वों की अत्यधिक कमी: अध्ययन

  • भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक कार्बन जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की अत्यधिक कमी है, जिस कारण टिकाऊ कृषि के भविष्य के लिए गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा किया गया यह अध्ययन सरकार के अपने मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आंकड़ों पर आधारित है। इसमें पाया गया कि मिट्टी के 64 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रोजन की मात्रा कम मिली और 48.5 प्रतिशत में कार्बनिक कार्बन की मात्रा कम थी, जो मृदा उर्वरता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से उबरने को दर्शाने वाले दो प्रमुख संकेतक हैं। निष्कर्षों से पता चला है कि भारत में उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ है। अध्ययन के अनुसार, आंकड़ों से पता चलता है कि मिट्टी में नाइट्रोजन आधारित उर्वरक डालने से ‘‘मृदा में नाइट्रोजन के स्तर में कोई खास सुधार नहीं होता’’ और यह भी कहा गया है कि ‘‘कुल (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम) उवर्रक के इस्तेमाल से मिट्टी में जैविक कार्बन में कोई सुधार नहीं होता।’’अध्ययन में कहा गया है, ‘‘स्वस्थ मिट्टी का एक महत्वपूर्ण कार्य कार्बनिक कार्बन को संग्रहीत करने की उसकी क्षमता है, जो इसे जलवायु परिवर्तन शमन के लिए आवश्यक बनाता है। भारत की मिट्टी सालाना अनुमानत: 6 से 7 टेराग्राम कार्बन को सोख सकती है।’’ ‘‘सतत खाद्य प्रणालियां: जलवायु-जोखिम वाले समय के लिए एजेंडा’’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट राजस्थान के निमली स्थित अनिल अग्रवाल पर्यावरण प्रशिक्षण संस्थान (एएईटीआई) में सीएसई द्वारा आयोजित सतत खाद्य प्रणालियों पर राष्ट्रीय सम्मेलन में जारी की गई। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत 2015 में शुरू की गई मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) योजना, 12 रासायनिक मापदंडों का परीक्षण करती है और किसानों को उर्वरक उपयोग के बारे में सुझाव देती है। इस योजना के तहत 2023 और 2025 के बीच लगभग 1.3 करोड़ मृदा नमूनों का परीक्षण किया गया। हालांकि, सम्मेलन में विशेषज्ञों ने कहा कि निगरानी अभी भी अधूरी है। सीएसई के खाद्य प्रणाली कार्यक्रम के निदेशक अमित खुराना ने कहा, ‘‘केवल इन मापदंडों पर ध्यान केंद्रित करने से समग्र मृदा पोषक स्थिति का पता नहीं चलता। एफएओ (विश्व खाद्य संगठन) के ‘ग्लोसोलन’ जैसे अंतरराष्ट्रीय निकाय मृदा स्वास्थ्य के समग्र मूल्यांकन के लिए भौतिक और जैविक संकेतकों को शामिल करने की सलाह देते हैं।’’ आगा खान फाउंडेशन में कृषि, खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रमुख अपूर्व ओझा ने कहा, ‘‘पिछले दो वर्षों में, मृदा कार्ड परीक्षण केवल 1.1 करोड़ तक ही पहुंच पाया है। मृदा परीक्षण के संदर्भ में, क्या मापा जा रहा है, क्यों और किसके द्वारा, अंतराल को समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है।’’ सीएसई मूल्यांकन ने नीति और कार्यान्वयन में अंतराल को भी उजागर किया। सीएसई सम्मेलन में मृदा स्वास्थ्य निगरानी का विस्तार कर इसमें भौतिक और जैविक मापदंडों को शामिल करने, उर्वरक प्रबंधन में सुधार लाने और देश की घटती मृदा गुणवत्ता को बहाल करने के लिए बायोचार (चारकोल जैसा पदार्थ) के उपयोग और जैविक खेती जैसी टिकाऊ परंपराओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया गया।

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इंडिया की मिट्टी में नाइट्रोजन, ऑर्गेनिक कार्बन जैसे पोषक तत्वों की अत्यधिक कमी: अध्ययन

भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक कार्बन जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की अत्यधिक कमी है, जिस कारण टिकाऊ कृषि के भविष्य के लिए गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा किया गया यह अध्ययन सरकार के अपने मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आंकड़ों पर आधारित है। इसमें पाया गया कि मिट्टी के 64 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रोजन की मात्रा कम मिली और 48.5 प्रतिशत में कार्बनिक कार्बन की मात्रा कम थी, जो मृदा उर्वरता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से उबरने को दर्शाने वाले दो प्रमुख संकेतक हैं। निष्कर्षों से पता चला है कि भारत में उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ है। अध्ययन के अनुसार, आंकड़ों से पता चलता है कि मिट्टी में नाइट्रोजन आधारित उर्वरक डालने से ‘‘मृदा में नाइट्रोजन के स्तर में कोई खास सुधार नहीं होता’’ और यह भी कहा गया है कि ‘‘कुल (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम) उवर्रक के इस्तेमाल से मिट्टी में जैविक कार्बन में कोई सुधार नहीं होता।’’अध्ययन में कहा गया है, ‘‘स्वस्थ मिट्टी का एक महत्वपूर्ण कार्य कार्बनिक कार्बन को संग्रहीत करने की उसकी क्षमता है, जो इसे जलवायु परिवर्तन शमन के लिए आवश्यक बनाता है। भारत की मिट्टी सालाना अनुमानत: 6 से 7 टेराग्राम कार्बन को सोख सकती है।’’ ‘‘सतत खाद्य प्रणालियां: जलवायु-जोखिम वाले समय के लिए एजेंडा’’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट राजस्थान के निमली स्थित अनिल अग्रवाल पर्यावरण प्रशिक्षण संस्थान (एएईटीआई) में सीएसई द्वारा आयोजित सतत खाद्य प्रणालियों पर राष्ट्रीय सम्मेलन में जारी की गई। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत 2015 में शुरू की गई मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) योजना, 12 रासायनिक मापदंडों का परीक्षण करती है और किसानों को उर्वरक उपयोग के बारे में सुझाव देती है। इस योजना के तहत 2023 और 2025 के बीच लगभग 1.3 करोड़ मृदा नमूनों का परीक्षण किया गया। हालांकि, सम्मेलन में विशेषज्ञों ने कहा कि निगरानी अभी भी अधूरी है। सीएसई के खाद्य प्रणाली कार्यक्रम के निदेशक अमित खुराना ने कहा, ‘‘केवल इन मापदंडों पर ध्यान केंद्रित करने से समग्र मृदा पोषक स्थिति का पता नहीं चलता। एफएओ (विश्व खाद्य संगठन) के ‘ग्लोसोलन’ जैसे अंतरराष्ट्रीय निकाय मृदा स्वास्थ्य के समग्र मूल्यांकन के लिए भौतिक और जैविक संकेतकों को शामिल करने की सलाह देते हैं।’’ आगा खान फाउंडेशन में कृषि, खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रमुख अपूर्व ओझा ने कहा, ‘‘पिछले दो वर्षों में, मृदा कार्ड परीक्षण केवल 1.1 करोड़ तक ही पहुंच पाया है। मृदा परीक्षण के संदर्भ में, क्या मापा जा रहा है, क्यों और किसके द्वारा, अंतराल को समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है।’’ सीएसई मूल्यांकन ने नीति और कार्यान्वयन में अंतराल को भी उजागर किया। सीएसई सम्मेलन में मृदा स्वास्थ्य निगरानी का विस्तार कर इसमें भौतिक और जैविक मापदंडों को शामिल करने, उर्वरक प्रबंधन में सुधार लाने और देश की घटती मृदा गुणवत्ता को बहाल करने के लिए बायोचार (चारकोल जैसा पदार्थ) के उपयोग और जैविक खेती जैसी टिकाऊ परंपराओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया गया।


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