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23-10-2025

जीएसटी रिफॉम्र्स से पेपर इंपोर्ट में आ सकता है उछाल

  •  भारतीय कागज उद्योग ने हाल ही में हुए माल एवं सेवा कर (जीएसटी) रिफॉम्र्स के बाद कागज इंपोर्ट में संभावित उछाल पर चिंता जताई है और चेतावनी दी है कि इस कदम से घरेलू प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है और सरकार की प्रमुख ‘मेक इन इंडिया’ पहल को नुकसान पहुंच सकता है। भारतीय कागज निर्माता संघ (आईपीएमए) के अध्यक्ष पवन अग्रवाल ने बयान में कहा कि जीएसटी में हालिया बदलावों के साथ, भारत विदेशों से सस्ते कागज के लिए एक और डंपिंग ग्राउंड बनने का जोखिम उठा रहा है। अग्रवाल ने कहा, ‘‘घरेलू निर्माताओं पर जहां उच्च आदान लागत का बोझ पड़ रहा है, वहीं अभ्यास पुस्तिकाओं और नोटबुक में इस्तेमाल होने वाला आयातित कागज अब पूरी तरह से कर-मुक्त होकर देश में आएगा। इससे बाजार की गतिशीलता बिगड़ेगी और भारतीय उत्पादकों को झटका लगेगा।’’ आईपीएमए के अनुसार, भारत में कागज का इंपोर्ट पिछले चार वर्षों में दोगुना हो गया है, जो मात्रा के लिहाज से 17 प्रतिशत से अधिक की सालाना की दर से बढ़ रहा है - जो प्रमुख वस्तुओं में सबसे तेज वृद्धि दर है। वाणिज्य विभाग के आंकड़ों का हवाला देते हुए, आईपीएमए ने कहा कि कागज और पेपरबोर्ड का इंपोर्ट वित्त वर्ष 2020-21 के 10.8 लाख टन से बढक़र 2024-25 में 20.6 लाख टन हो गया। यह मूल्य के लिहाज से लगभग 15,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। संगठन ने कहा कि उद्योग को अब डर है कि जीएसटी में बदलावों के कारण यह बढ़ता रुझान बाढ़ में बदल सकता है। संशोधित जीएसटी ढांचे के तहत, अभ्यास पुस्तिकाओं और नोटबुक में इस्तेमाल होने वाले बिना लेपित कागज को जीएसटी से छूट दी गई है, और परिणामस्वरूप, ऐसे कागज के इंपोर्ट पर एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) भी शून्य कर दिया गया है। परिणामस्वरूप, विदेशी निर्यातकों को कोई आईजीएसटी नहीं देना होगा, जबकि भारतीय निर्माता, जो अब अंतिम उत्पाद पर छूट प्राप्त जीएसटी के कारण इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) नहीं ले सकते, को अपनी लागत संरचना में अंतर्निहित लागत कर को अवशोषित करना होगा। आईपीएमए के अनुसार, इससे कीमतों में भारी अंतर पैदा होता है जिससे आयातित कागज घरेलू उत्पादन की तुलना में काफी सस्ता हो जाएगा। एसोसिएशन ने कहा कि नोटबुक और पाठ्य पुस्तकों के घरेलू निर्माता, जो अब आईटीसी का लाभ नहीं उठा सकते, उनकी उत्पादन लागत नोटबुक के लिए 3-5 प्रतिशत और पाठ्य पुस्तकों के लिए छह प्रतिशत से अधिक बढ़ जाएगी, जिससे अंतत: स्कूली बच्चों और शिक्षा क्षेत्र पर बोझ पड़ेगा।

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जीएसटी रिफॉम्र्स से पेपर इंपोर्ट में आ सकता है उछाल

 भारतीय कागज उद्योग ने हाल ही में हुए माल एवं सेवा कर (जीएसटी) रिफॉम्र्स के बाद कागज इंपोर्ट में संभावित उछाल पर चिंता जताई है और चेतावनी दी है कि इस कदम से घरेलू प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है और सरकार की प्रमुख ‘मेक इन इंडिया’ पहल को नुकसान पहुंच सकता है। भारतीय कागज निर्माता संघ (आईपीएमए) के अध्यक्ष पवन अग्रवाल ने बयान में कहा कि जीएसटी में हालिया बदलावों के साथ, भारत विदेशों से सस्ते कागज के लिए एक और डंपिंग ग्राउंड बनने का जोखिम उठा रहा है। अग्रवाल ने कहा, ‘‘घरेलू निर्माताओं पर जहां उच्च आदान लागत का बोझ पड़ रहा है, वहीं अभ्यास पुस्तिकाओं और नोटबुक में इस्तेमाल होने वाला आयातित कागज अब पूरी तरह से कर-मुक्त होकर देश में आएगा। इससे बाजार की गतिशीलता बिगड़ेगी और भारतीय उत्पादकों को झटका लगेगा।’’ आईपीएमए के अनुसार, भारत में कागज का इंपोर्ट पिछले चार वर्षों में दोगुना हो गया है, जो मात्रा के लिहाज से 17 प्रतिशत से अधिक की सालाना की दर से बढ़ रहा है - जो प्रमुख वस्तुओं में सबसे तेज वृद्धि दर है। वाणिज्य विभाग के आंकड़ों का हवाला देते हुए, आईपीएमए ने कहा कि कागज और पेपरबोर्ड का इंपोर्ट वित्त वर्ष 2020-21 के 10.8 लाख टन से बढक़र 2024-25 में 20.6 लाख टन हो गया। यह मूल्य के लिहाज से लगभग 15,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। संगठन ने कहा कि उद्योग को अब डर है कि जीएसटी में बदलावों के कारण यह बढ़ता रुझान बाढ़ में बदल सकता है। संशोधित जीएसटी ढांचे के तहत, अभ्यास पुस्तिकाओं और नोटबुक में इस्तेमाल होने वाले बिना लेपित कागज को जीएसटी से छूट दी गई है, और परिणामस्वरूप, ऐसे कागज के इंपोर्ट पर एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) भी शून्य कर दिया गया है। परिणामस्वरूप, विदेशी निर्यातकों को कोई आईजीएसटी नहीं देना होगा, जबकि भारतीय निर्माता, जो अब अंतिम उत्पाद पर छूट प्राप्त जीएसटी के कारण इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) नहीं ले सकते, को अपनी लागत संरचना में अंतर्निहित लागत कर को अवशोषित करना होगा। आईपीएमए के अनुसार, इससे कीमतों में भारी अंतर पैदा होता है जिससे आयातित कागज घरेलू उत्पादन की तुलना में काफी सस्ता हो जाएगा। एसोसिएशन ने कहा कि नोटबुक और पाठ्य पुस्तकों के घरेलू निर्माता, जो अब आईटीसी का लाभ नहीं उठा सकते, उनकी उत्पादन लागत नोटबुक के लिए 3-5 प्रतिशत और पाठ्य पुस्तकों के लिए छह प्रतिशत से अधिक बढ़ जाएगी, जिससे अंतत: स्कूली बच्चों और शिक्षा क्षेत्र पर बोझ पड़ेगा।


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