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23-10-2025

पत्नी को साझा घर में रहने का अधिकार है, भले ही सास-ससुर ने पति को त्याग दिया हो : अदालत

  •  दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि विवाह के बाद घर में रहने वाली पत्नी परिवार की सदस्य होती है और पति को बाद में उसके माता-पिता द्वारा त्याग दिए जाने के बावजूद भी वह उस घर में रहने की हकदार है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने महिला की सास और दिवंगत ससुर की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। 16 अक्टूबर को पारित आदेश में, न्यायाधीश ने कहा कि उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना बहू को बेदखल नहीं किया जा सकता। अधिवक्ता संवेदना वर्मा ने बहू का अदालत में पक्ष रखा जबकि सास-ससुर का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता काजल चंद्रा ने किया। याचिका के अनुसार, एक दशक से अधिक समय से चल रहा यह विवाद 2010 में याचिकाकर्ता के बेटे से बहू की शादी और उसके बाद उसके ससुराल वालों के साथ आवास में रहने के बाद उत्पन्न हुआ। महिला के 2011 में वैवाहिक संबंध खराब हो गए थे, जिसके कारण दोनों पक्षों के बीच कई दीवानी और आपराधिक मुकदमें चले। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह संपत्ति स्वर्गीय दलजीत सिंह की स्व-अर्जित संपत्ति थी, इसलिए इसे घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत साझा घर नहीं माना जा सकता। हालांकि, अदालत ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था - जहां सास पहली मंजिल पर रहती है और बहू भूतल पर - दोनों पक्षों के हितों में पर्याप्त संतुलन बनाती है।

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पत्नी को साझा घर में रहने का अधिकार है, भले ही सास-ससुर ने पति को त्याग दिया हो : अदालत

 दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि विवाह के बाद घर में रहने वाली पत्नी परिवार की सदस्य होती है और पति को बाद में उसके माता-पिता द्वारा त्याग दिए जाने के बावजूद भी वह उस घर में रहने की हकदार है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने महिला की सास और दिवंगत ससुर की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। 16 अक्टूबर को पारित आदेश में, न्यायाधीश ने कहा कि उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना बहू को बेदखल नहीं किया जा सकता। अधिवक्ता संवेदना वर्मा ने बहू का अदालत में पक्ष रखा जबकि सास-ससुर का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता काजल चंद्रा ने किया। याचिका के अनुसार, एक दशक से अधिक समय से चल रहा यह विवाद 2010 में याचिकाकर्ता के बेटे से बहू की शादी और उसके बाद उसके ससुराल वालों के साथ आवास में रहने के बाद उत्पन्न हुआ। महिला के 2011 में वैवाहिक संबंध खराब हो गए थे, जिसके कारण दोनों पक्षों के बीच कई दीवानी और आपराधिक मुकदमें चले। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह संपत्ति स्वर्गीय दलजीत सिंह की स्व-अर्जित संपत्ति थी, इसलिए इसे घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत साझा घर नहीं माना जा सकता। हालांकि, अदालत ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था - जहां सास पहली मंजिल पर रहती है और बहू भूतल पर - दोनों पक्षों के हितों में पर्याप्त संतुलन बनाती है।


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