सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि यदि कोई घर खरीदार किसी प्रॉजेक्ट की देरी के कारण रिफंड मांगता है, तो वह डवलपर से होम लोन पर दिए गए ब्याज को रिफंड करने की मांग नहीं कर सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि खरीदार केवल उस मूलधन के लिए हकदार है, जो उसने कंपनी को दिया है, साथ ही उस पर अनुबंध के अनुसार ब्याज के रूप में मुआवजा मिल सकता है। अदालत ने उपभोक्ता अदालत के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी को निर्देश दिया गया था कि वह खरीदार को 41 लाख के मूलधन और 8 परसेंट ब्याज के साथ-साथ बैंक लोन पर दिए गए ब्याज की भी भरपाई करे। सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रसन्न बी वराले शामिल थे, ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि एक ही मामले में मुआवजा और ब्याज दिया जाए। होमबायर और बिल्डर के बीच जो एग्रीमेंट हुआ है वही मान्य रहेगा। पीठ ने पूर्व के कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में ऐसा कोई असाधारण या ठोस कारण नहीं था, जिससे अथॉरिटी को खरीदार द्वारा लिए गए लोन पर ब्याज चुकाने का आदेश दिया जा सके। पीठ ने कहा फ्लैट खरीदने के लिए बायर अपनी सेविंग्स का उपयोग करता है, लोन लेता है या अन्य कोई रास्ता अपनाता है इससे बिल्डर का कोई लेना देना नहीं है। ऐसे मामलों में बिल्डर और बायर के बीच सर्विस प्रोवाइडर और कस्टमर का कानूनी रिश्ता है। यदि सेवा में कोई कमी या देरी होती है, तो बायर को उसके लिए मुआवजा देने का प्रावधान है। एग्रीमेंट के अनुसार पूरी राशि की वापसी और उस पर 8 परसेंट ब्याज। इस मामले में पंजाब राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने अथॉरिटी को आदेश दिया था कि वह 41 लाख की पूरी राशि 8 परसेंट ब्याज सहित लौटाए, साथ ही खरीदार को मानसिक संताप व उत्पीडऩ के लिए 60,000 रुपये का मुआवजा भी दे और बैंक लोन पर चुकाए गए ब्याज का रिइम्बर्समेंट भी करे।