आरबीआई ने रेपो रेट में सीधे 50 बेसिस पॉइंट्स की जैकपॉट कटौती कर ग्रोथ की गेंद सरकार के पाले में डाल दी। एसबीआई के सौम्यकांति घोष सहित कुछ इकोनॉमिस्ट कह रहे हैं कि अभी पॉलिसी रेट में एक और कटौती की गुंजाइश है। रिपोर्ट्स कहती हैं कि इससे करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये अनलॉक होकर बैंकिंग चैनल में आएंगे। अब जीडीपी और कंजम्पशन ग्रोथ की जिम्मेदारी सरकार की है। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि सुस्त सी जीडीपी और कंजम्पशन ग्रोथ को टर्बो चार्ज करने के लिए सरकार तीन बड़े ग्रोथ ड्राइवर पर काम कर रही है। पहला, जीएसटी रेट्स और स्लैब का ऑप्टिमाइजेशन, दूसरा है इंटरेस्ट रेट्स घटाना और तीसरा है राज्यों के कैपिटल एक्सपेंडिचर को रीस्ट्रक्चर करना। दिसंबर 24 के बाद जीएसटी काउंसिल की बैठक नहीं हुई है। जुलाई में इसकी मीटिंग होगी जिसमें रेट्स और स्लैब्स को फाइनट्यून करने पर विचार किया जाएगा। जीएसटी के चार स्लैब 5, 12, 18 और 28 परसेंट के हैं। और 0, 0,25 और 3' की कई विशेष दरों के साथ ही कई प्रॉडक्ट्स पर 1-22 परसेंट तक कंपेंसेशन सैस भी लागू है। एक जीओएम जीएसटी 2.0 का ड्राफ्ट तैयार कर रहा है जिसकी रिपोर्ट आनी है। इंडिया रेटिंग्स के एनेलिस्ट पारस जसराय का मानना है कि 4-स्लैब वाला जीएसटी फॉर्मेट जटिल है। ऐसे में 12 परसेंट की रेट को 5 और 18 परसेंट के स्लैब में मर्ज किया जाना चाहिए। एनेलिस्ट कहते हैं कि जीएसटी को फाइनट्यून करने के लिए सरकार के पास काफी गुंजाइश है। चालू वित्त वर्ष 2026 के पहले दो महीनों अप्रेल और मई में जीएसटी कलेक्शन 2 लाख करोड़ के पार रहा है। इसी तरह डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन भी लगातार बढ़ रहा है। हाल ही आरबीआई ने 2.50 लाख करोड़ रुपये का डिविडेंड दिया है। ऋण प्रबंधकों का मानना है वित्त वर्ष 2025-26 में सरकार की औसत बोरोइंग कॉस्ट 7 परसेंट के नीचे आ सकती है। यह वित्त वर्ष 2022-23 में 7.30 और वित्त वर्ष 2023-24 में 7.20 परसेंट थी। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 में सरकार की बोरोइंग कॉस्ट 7 परसेंट थी। एनेलिस्ट यह भी कहते हैं कि सरकार की बोरोइंग कॉस्ट घटने से सरकार के हाथ में अतिरिक्त फंड होगा और रेवेन्यू कलेक्शन में भी ग्रोथ होगी। इस एक्स्ट्रा फंड से राज्यों को पचास वर्ष के लिए इंटरेस्ट फ्री लोन दिया जा सकता है।

