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22-03-2025

FOMO का पॉवरफुल खेल!

  •  FOMO का मतलब है Fear of Missing Out यानि किसी बड़े इवेंट, सोशल कार्यक्रम या मिलने वाले जहां जा रहे हैं वहां न जा पाने का दर्द और डर। इस डर को डवलप करने में सोशल मीडिया का सबसे बड़ा रोल है और इसका दर्द इतना भयंकर है कि इसमें मेंटल बैलेंस से खिलवाड़ करते हुए खुद को हारा हुआ मानने की फीलिंग होने लगती है। साइबर अपराधियों का बढ़ता दबदबा व फैलते जाल के पीछे FOMO की बढ़ती बीमारी का खतरनाक रोल माना जा रहा है क्योंकि साइबर अपराधी ऐसे ही लोगों को टारगेट करते हैं जो दिनभर सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म पर एक्टिव रहते है। इंस्टाग्राम पर एक्टिव रहने वाले 16 से 29 वर्ष के लोगों पर हुई एक स्टडी में पता चला कि सोशल इवेंट, कांसर्ट आदि का हिस्सा बनने के वादों व Invite वाले मैसेजों की ताकत के सामने यंग जेनरेशन घुटने टेक देती है व हर हाल में उनमें शामिल होना चाहती है इसलिए साइबर अपराधियों द्वारा सोशल मीडिया पर भेजे जाने वाले लिंक व मैसेजों को बिना सोचे-समझे क्लिक कर देती है जो उन्हें फंसाने के लिए भेजे जाते हैं। सोशल मीडिया के पीछे की साइंस, कोडिंग व उसका उद्देश्य लोगों द्वारा रिस्क को बिना जाने व समझे जल्दी-जल्दी निर्णय लेने के लिए तैयार करना होता है इसलिए साइबर स्केम के संकेतों को ढ्ढद्दठ्ठशह्म्द्ग करते हुए ज्यादातर लोगों को यह जानने की जल्दी रहती है कि उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर मैसेज भेजने वाला कौन है और क्या वे उसे जानते हैं। इस स्टडी में पाया गया कि 82 प्रतिशत लोगों को ऐसे लोगों की पहचान से कभी न कभी लिंक या मैसेज मिले है जिन्हें वे रीयल में जानते है। लोग तुरंत जवाब देने के लिए इसलिए भी तैयार रहते है क्योंकि वे इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों पर आंख बंद करके भरोसा करते हैं। यंग जेनरेशन सहित कई लोगों को ऐसे मैसेज जरूर मिले होंगे जिसमें शाम को या कल होने वाले इवेंट के बारे में जानने के लिए लिंक दिया जाता है व उस इवेंट को रूद्बह्यह्य (छोडऩे) न करने का मैसेज लिखा जाता है जैसे - Check Out This Event Happening Tonight. पिछले कुछ महिनों में पूरे देश के अलग-अलग शहरों में हुए म्यूजिक कांसर्ट स्नह्ररूह्र के फैलते जाल का सबसे सही उदाहरण है जहां जाने के लिए यंग जेनरेशन ने खर्च व कोशिश करने के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। FOMO Cold Pla जैसे फॉरेन बैण्ड का नाम व गाना जिन्होंने कभी नहीं सुना वे भी Cold की पॉवर के कारण उसके कांसर्ट में पहुंच गए और जो लोग नहीं जा पाए वे अपने पेरेंट्स को व्यवस्था न कर पाने के लिए जिम्मेदार ठहराने से नहीं चूकें। लाखों रुपये टिकटों पर खर्च करने के अलावा आने जाने व ठहरने के खर्च को सभी ने इकोनोमी के लिए तो अच्छा मान लिया लेकिन FOMO का फैलता दायरा यंग जेनरेशन के दिमाग को Toxic (जहरीला) बनाते हुए कैसे उन्हें उत्तेजित, अशांत व हर हाल में हासिल करने की फीलिंग से ग्रासित कर रहा है, इसपर बहुत कम लोगों का ध्यान जा रहा है।इस सच को पहचानना व समझना सभी के लिए जरूरी है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स की बनावट, उनकी कोडिंग व सॉफ्टवेयर लोगों के रिएक्शन को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं यानि उन्हें पहले से पता है कि लोगों में सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने की आदत व मजबूरी कैसे पैदा होगी। हम यह मानने लगे हैं कि यंग जेनरेशन नई डिजिटल दुनिया का हिस्सा है व इसके बारे में सबकुछ जानती हैं पर यह हमारी गलतफहमी है क्योंकि इस दुनिया के महारथी भी ऑनलाइन फ्राड व स्केम से खुद को बचा नहीं पा रहे है। सवाल यह है कि इनसे बचा कैसे जाए व दिमाग पर इन्हें हावी होने से कैसे रोका जाए?  इसके लिए सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनियों सहित पूरी दुनिया की सरकारों व एक्सपर्टों का तंत्र काम पर लगा हुआ है लेकिन साइबर अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे इसलिए Common Sense के हिसाब से सोशल मीडिया के ह्यद्ग (उपयोग) को सीमित करने से अच्छा शायद ही कोई फार्मूला समझ आता है।

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FOMO का पॉवरफुल खेल!

 FOMO का मतलब है Fear of Missing Out यानि किसी बड़े इवेंट, सोशल कार्यक्रम या मिलने वाले जहां जा रहे हैं वहां न जा पाने का दर्द और डर। इस डर को डवलप करने में सोशल मीडिया का सबसे बड़ा रोल है और इसका दर्द इतना भयंकर है कि इसमें मेंटल बैलेंस से खिलवाड़ करते हुए खुद को हारा हुआ मानने की फीलिंग होने लगती है। साइबर अपराधियों का बढ़ता दबदबा व फैलते जाल के पीछे FOMO की बढ़ती बीमारी का खतरनाक रोल माना जा रहा है क्योंकि साइबर अपराधी ऐसे ही लोगों को टारगेट करते हैं जो दिनभर सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म पर एक्टिव रहते है। इंस्टाग्राम पर एक्टिव रहने वाले 16 से 29 वर्ष के लोगों पर हुई एक स्टडी में पता चला कि सोशल इवेंट, कांसर्ट आदि का हिस्सा बनने के वादों व Invite वाले मैसेजों की ताकत के सामने यंग जेनरेशन घुटने टेक देती है व हर हाल में उनमें शामिल होना चाहती है इसलिए साइबर अपराधियों द्वारा सोशल मीडिया पर भेजे जाने वाले लिंक व मैसेजों को बिना सोचे-समझे क्लिक कर देती है जो उन्हें फंसाने के लिए भेजे जाते हैं। सोशल मीडिया के पीछे की साइंस, कोडिंग व उसका उद्देश्य लोगों द्वारा रिस्क को बिना जाने व समझे जल्दी-जल्दी निर्णय लेने के लिए तैयार करना होता है इसलिए साइबर स्केम के संकेतों को ढ्ढद्दठ्ठशह्म्द्ग करते हुए ज्यादातर लोगों को यह जानने की जल्दी रहती है कि उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर मैसेज भेजने वाला कौन है और क्या वे उसे जानते हैं। इस स्टडी में पाया गया कि 82 प्रतिशत लोगों को ऐसे लोगों की पहचान से कभी न कभी लिंक या मैसेज मिले है जिन्हें वे रीयल में जानते है। लोग तुरंत जवाब देने के लिए इसलिए भी तैयार रहते है क्योंकि वे इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों पर आंख बंद करके भरोसा करते हैं। यंग जेनरेशन सहित कई लोगों को ऐसे मैसेज जरूर मिले होंगे जिसमें शाम को या कल होने वाले इवेंट के बारे में जानने के लिए लिंक दिया जाता है व उस इवेंट को रूद्बह्यह्य (छोडऩे) न करने का मैसेज लिखा जाता है जैसे - Check Out This Event Happening Tonight. पिछले कुछ महिनों में पूरे देश के अलग-अलग शहरों में हुए म्यूजिक कांसर्ट स्नह्ररूह्र के फैलते जाल का सबसे सही उदाहरण है जहां जाने के लिए यंग जेनरेशन ने खर्च व कोशिश करने के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। FOMO Cold Pla जैसे फॉरेन बैण्ड का नाम व गाना जिन्होंने कभी नहीं सुना वे भी Cold की पॉवर के कारण उसके कांसर्ट में पहुंच गए और जो लोग नहीं जा पाए वे अपने पेरेंट्स को व्यवस्था न कर पाने के लिए जिम्मेदार ठहराने से नहीं चूकें। लाखों रुपये टिकटों पर खर्च करने के अलावा आने जाने व ठहरने के खर्च को सभी ने इकोनोमी के लिए तो अच्छा मान लिया लेकिन FOMO का फैलता दायरा यंग जेनरेशन के दिमाग को Toxic (जहरीला) बनाते हुए कैसे उन्हें उत्तेजित, अशांत व हर हाल में हासिल करने की फीलिंग से ग्रासित कर रहा है, इसपर बहुत कम लोगों का ध्यान जा रहा है।इस सच को पहचानना व समझना सभी के लिए जरूरी है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स की बनावट, उनकी कोडिंग व सॉफ्टवेयर लोगों के रिएक्शन को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं यानि उन्हें पहले से पता है कि लोगों में सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने की आदत व मजबूरी कैसे पैदा होगी। हम यह मानने लगे हैं कि यंग जेनरेशन नई डिजिटल दुनिया का हिस्सा है व इसके बारे में सबकुछ जानती हैं पर यह हमारी गलतफहमी है क्योंकि इस दुनिया के महारथी भी ऑनलाइन फ्राड व स्केम से खुद को बचा नहीं पा रहे है। सवाल यह है कि इनसे बचा कैसे जाए व दिमाग पर इन्हें हावी होने से कैसे रोका जाए?  इसके लिए सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनियों सहित पूरी दुनिया की सरकारों व एक्सपर्टों का तंत्र काम पर लगा हुआ है लेकिन साइबर अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे इसलिए Common Sense के हिसाब से सोशल मीडिया के ह्यद्ग (उपयोग) को सीमित करने से अच्छा शायद ही कोई फार्मूला समझ आता है।


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