TOP

ई - पेपर Subscribe Now!

ePaper
Subscribe Now!

Download
Android Mobile App

Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

15-07-2025

मनुष्य विशाल हृदय के साथ असमानता समाप्त करने में सहयोगी बनें- साधवीश्री

  •  श्रमणी सूर्या वाणी मूषण उपप्रर्वर्तिनी डॉ.दिव्य प्रभाजी महाराज सहाब ने श्री जैन श्वेताम्बर संस्था सोडाला के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि सामाजिक जीवन में मानव का विशेष महत्व है। वैसे तो सामाजिक व्यवस्था में पशु का मूल्यांकन उसकी लाभ उपयोगिता को ध्यान में रखकर किया जाता है लेकिन मानव का महत्व उसके गुणों के आधार पर निर्धारित होता है। चिकित्सक जब शल्य चिकित्सा के माध्यम से उपचार करता है तो यह उसका उपकार होता है लेकिन एक मनुष्य जब चोरी के लिये चाकू से हत्या करता है तो वही मनुष्य चोर व हत्यारा कहलाता है। साधवी जी ने कहा कि मानव हृदय चार श्रेणी के होते हैं। इनमें संकुचित, अनुदार, उदार व विशाल श्रेणियां शामिल हैं। संकुचित वह होता है जिसके पास सब कुछ है लेकिन वह न तो स्वयं सदपयोग करता है, न ही किसी को करने की स्वीकृति होती है। इसको हमारे शब्दों में कंजूस भी कहते हैं। दूसरा मनुष्य वह है जो अनुदार है, जो स्वयं तो उपयोग करता है लेकिन दूसरे को उपयोग से वंचित रखता है। ऐसे मनुष्य की वृत्ति को पशु वृत्ति कहते हैं जो केवल स्वयं की परवाह करता है। मनुष्य की तीसरी श्रेणी उदार हृदय के रूप में की जाती है। जो स्वयं भी उपयोग करता है और दूसरों को भी खिलाने में सहयोग करता है। स्वयं की सम्पन्नता के साथ वह दूसरे की सम्पन्नता का भी ध्यान रखता है। जैन धर्म मनुष्य को चतुर्थ श्रेणी विशाल हृदय की पे्ररणा देता है। जो जीयो और जीने दो के साथ अपरिग्रह और अहिंसा की पे्ररणा देता है। इसके माध्यम से समाज में व्यापक बदलाव व समता का प्रार्दुभाव हो सकता है। सम्पूर्ण राष्ट्र आर्थिक सामाजिक असमानता के दोष से मुक्त हो सकता है। मनुष्य को विशाल हृदय से पे्ररित होकर समाज में व्यवहार करना चाहिये। यही भगवान महावीर की सीख है, जिन्होंने सभी सुविधाओं के साथ राजपाट का त्याग करके विशाल हृदयता का परिचय देते हुए सम्पूर्ण सृष्टि को नई दिशा देने का काम किया था।

Share
मनुष्य विशाल हृदय के साथ असमानता समाप्त करने में सहयोगी बनें- साधवीश्री

 श्रमणी सूर्या वाणी मूषण उपप्रर्वर्तिनी डॉ.दिव्य प्रभाजी महाराज सहाब ने श्री जैन श्वेताम्बर संस्था सोडाला के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि सामाजिक जीवन में मानव का विशेष महत्व है। वैसे तो सामाजिक व्यवस्था में पशु का मूल्यांकन उसकी लाभ उपयोगिता को ध्यान में रखकर किया जाता है लेकिन मानव का महत्व उसके गुणों के आधार पर निर्धारित होता है। चिकित्सक जब शल्य चिकित्सा के माध्यम से उपचार करता है तो यह उसका उपकार होता है लेकिन एक मनुष्य जब चोरी के लिये चाकू से हत्या करता है तो वही मनुष्य चोर व हत्यारा कहलाता है। साधवी जी ने कहा कि मानव हृदय चार श्रेणी के होते हैं। इनमें संकुचित, अनुदार, उदार व विशाल श्रेणियां शामिल हैं। संकुचित वह होता है जिसके पास सब कुछ है लेकिन वह न तो स्वयं सदपयोग करता है, न ही किसी को करने की स्वीकृति होती है। इसको हमारे शब्दों में कंजूस भी कहते हैं। दूसरा मनुष्य वह है जो अनुदार है, जो स्वयं तो उपयोग करता है लेकिन दूसरे को उपयोग से वंचित रखता है। ऐसे मनुष्य की वृत्ति को पशु वृत्ति कहते हैं जो केवल स्वयं की परवाह करता है। मनुष्य की तीसरी श्रेणी उदार हृदय के रूप में की जाती है। जो स्वयं भी उपयोग करता है और दूसरों को भी खिलाने में सहयोग करता है। स्वयं की सम्पन्नता के साथ वह दूसरे की सम्पन्नता का भी ध्यान रखता है। जैन धर्म मनुष्य को चतुर्थ श्रेणी विशाल हृदय की पे्ररणा देता है। जो जीयो और जीने दो के साथ अपरिग्रह और अहिंसा की पे्ररणा देता है। इसके माध्यम से समाज में व्यापक बदलाव व समता का प्रार्दुभाव हो सकता है। सम्पूर्ण राष्ट्र आर्थिक सामाजिक असमानता के दोष से मुक्त हो सकता है। मनुष्य को विशाल हृदय से पे्ररित होकर समाज में व्यवहार करना चाहिये। यही भगवान महावीर की सीख है, जिन्होंने सभी सुविधाओं के साथ राजपाट का त्याग करके विशाल हृदयता का परिचय देते हुए सम्पूर्ण सृष्टि को नई दिशा देने का काम किया था।


Label

PREMIUM

CONNECT WITH US

X
Login
X

Login

X

Click here to make payment and subscribe
X

Please subscribe to view this section.

X

Please become paid subscriber to read complete news