यूरोपीय संघ की सर्वोच्च अदालत यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि फोक्सवैगन सहित अन्य ऑटो कंपनियां गैरकानूनी चीटिंग सॉफ्टवेयर या कहें तो डिफीट डिवाइस के उपयोग के लिए जबावदेह हैं भले ही उनकी गाडिय़ां ईयू के एमिशन नॉम्र्स पर खरी उतरती हों। अदालत ने कहा कि ईयू मानकों पर खरा उतरने से टेक्नोलॉजी को वैध नहीं माना जा सकता। यह मामला दो जर्मन मुकदमों से जुड़ा है, जिनमें फोक्सवैगन की डीजल कारों में ऐसे डिफीट डिवाइस पाए गए थे। जिन्हें या तो मैन्युफैक्चरिंग के समय ही या फिर बाद में सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए इंस्टॉल किया गया था। ये डिवाइस आमतौर पर उस समय सक्रिय होती हैं जब गाड़ी ठंडे मौसम में चलाई जाती हैं, और एमिशन कंट्रोल सिस्टम को अस्थायी रूप से डीएक्टिवेट कर देती हैं। अदालत ने कहा कि ग्राहकों को मुआवजा मिलना चाहिए, हालांकि यह मुआवजा गाड़ी के इस्तेमाल के आधार पर घटाया जा सकता है, और अधिकतम खरीद मूल्य का 15 परसेंट तक हो सकता है। फिर भी, यह मुआवजा उतना जरूर होना चाहिए जितना डिफीट डिवाइस के कारण नुकसान हुआ। फोक्सवैगन ने अदालत के निर्णय के बाद कहा, इस फैसले का फोक्सवैगन पर प्रभाव सीमित रहेगा, क्योंकि जर्मनी की अदालतों में डीजल से जुड़े केवल कुछ ही मामले लंबित हैं। डिफीट डिवाइस ऐसे उपकरण या सॉफ्टवेयर होते हैं जो गाड़ी के वास्तविक एमिशन को छिपाते हैं, जिससे यह भ्रम पैदा होता है कि गाड़ी एमिशन नॉम्र्स पर खरी है। कंपनियां अक्सर यह तर्क देती हैं कि ऐसे सिस्टम केवल इंजन की सुरक्षा के लिए खास तापमान पर सक्रिय होते हैं और वैध हैं। गौरतलब है कि 2015 में फोक्सवैगन पर यह खुलासा हुआ था कि उसने अपनी डीजल कारों से होने वाले पॉल्यूशन को छुपाने के लिए डिफीट डिवाइस का इस्तेमाल किया। इस घोटाले ने कंपनी के शीर्ष प्रबंधन में उथल-पुथल मचा दी थी और इसके खिलाफ हजारों कानूनी कार्रवाई और जांच शुरू हुई थीं, जिनका निपटारा अब तक जारी है। यह फैसला अब यूरोप में कंज्यूमर राइट्स और ऑटो कंपनियों की जवाबदेही को लेकर एक नया मानक स्थापित कर सकता है।