तुवर में दाल मिलों की मांग अनुकूल नहीं होने से धीरे-धीरे मंदे का रुख बना हुआ है, म्यांमार में जिस तरह फसल बताई जा रही है तथा प्रति हैक्टेयर उत्पादकता बैठ रही है, उसे देखते हुए पूरे वर्ष लंबी तेजी के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं, बल्कि इसी लाइन पर 200/300 रुपए की और गिरावट लग रही है। तुवर की घरेलू फसल रबी एवं खरीफ दोनों ही सीजन में आई हुई गत वर्ष की तुलना में 14-15 प्रतिशत अधिक है। इसके अलावा जो पूरे वर्ष म्यांमार, तुअर का निर्यात करता है, जिसके लिए सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार भारत है, उसके पड़ते लगातार लग रहे हैं तथा चेन्नई से आयातक निरंतर बिकवाल आ रहे हैं, वहां हाल ही में बाजार 25 डॉलर प्रति टन घटकर 755 डॉलर सीएनएफ रह गया है। इस वजह से चेन्नई में भी गोदाम के माल 6425 रुपए तथा कंटेनर के 6375 रुपए रह गए हैं, इधर दाल की बिक्री साथ नहीं दे रही है। पिछले दिनों ऑपरेशन सिंदूर के अंतर्गत अगले डेढ़ महीने तक के लिए तुवर दाल की बिक्री हो चुकी है, इधर मटर के भाव नीचे चल रहे हैं, देसी चने के दाल भी नीचे बिक रही है, इन परिस्थितियों को देखते हुए तुवर दाल में चालनी मांग आगे और कमजोर रहेगी। यहां भी तुवर के भाव ग्राहकी के अभाव में बीते माह के अंतराल 600 रुपए घटकर 6750 रुपए प्रति क्विंटल हाजिर कंटेनर के रह गए हैं तथा ऐसा आभास हो रहा है कि इस बार तुवर 6400 रुपए नीचे में बन सकती है। यह वर्ष 2023-24 में 12100 रुपए प्रति क्विंटल तक लेमन क्वालिटी की बिक गई थी, उसके बाद लगातार मंदे का रुख बना हुआ है। तुवर की चारों तरफ फसल बढिय़ा आई है। गत वर्ष देश में जो तुवर का उत्पादन 36-37 लाख मीट्रिक टन रह गया था, वह इस बार 49 लाख मीट्रिक टन होने का ताजा अनुमान आ रहा है, क्योंकि कटनी हाथरस वाले भी लगातार अभी लोकल तुवर ही चला रहे हैं। उधर नगर उटारी पलामू डाल्टनगंज गढ़वा लाइन में भी इस बार तुवर की फसल बढिय़ा आई है, जो पटना मुजफ्फरपुर, गया, बोकारो, धनबाद की पूर्ति कर रहा है, इन सारी परिस्थितियों में लंबी तेजी का इस बार तुवर में व्यापार नहीं करना चाहिए ।