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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

10-06-2025

जीरा : रुक-रुककर आती रहेगी मंदी

  •  ऊंझा में पिछले कुछ समय से जीरे की आवक सीमित ही बनी होने के बाद भी इसकी कीमत में रुक-रुककर मंदी आती जा रही है। मानसून सीजन भी चल रहा है। इसकी वजह से घरेलू और निर्यात बिक्री भी सुस्त ही बनी रहने की आस है। अत: आगामी दिनों में जीरे में रुक-रुककर मंदी आती रहने की आस है। देश में इस बार मानसून का आगमन सामान्य की अपेक्षा करीब 8 दिनों पहले ही हो गया। इससे भी हैरानी की बात यह है कि केरल में पहुंचने के बाद से मानसून बहुत तेजी से देश के कई अन्य राज्यों की ओर बढ़ा। हालांकि अब इसके बढऩे पर अस्थाई ब्रेक लगा हुआ है। उधर, कीमत उम्मीद से नीची होने के कारण गुजरात के किसानों द्वारा हाल ही में अपनी जीरा फसल की बिक्री में कमी जाने के बाद भी ऊंझा मंड़ी में इस प्रमुख किराना जिंस की आवक सीमित ही बनी हुई है। यही वजह है कि ऊंझा में जीरे की करीब 8-11 हजार बोरियों की आवक होने की सूचनाएं आ रही हैं। नवीनतम आवक सामान्य की अपेक्षा काफी नीची है। नाममात्र की आवक के बाद भी लिवाली का अभाव बना हुआ है। हालांकि पूर्व में ऊंझा में जीरे की आवक सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 72-75 हजार बोरियों के स्तर पर पहुंच गई थी। इस बार गुजरात में जीरे की बिजाई वार्षिक आधार पर करीब 15 प्रतिशत घटकर 4,76,500 लाख हेक्टेयर में हुई है। गुजरात की मंडिय़ों में जीरे में व्यापारिक गतिविधियां भी सुधरने लगी हैं। ऊंझा में जीरे की कीमत भी हाल ही में 165-185 रुपए और मंदा होकर फिलहाल 4060/4175 रुपए प्रति 20 किलोग्राम बीच बनी होने की जानकारी मिली। इससे पूर्व इसमें 160-180 रुपए की मंदी आई थी। आमतौर पर चीन की तुलना में तुर्की में जीरे की कीमत ऊंची होती है। इधर, स्थानीय थोक किराना बाजार में हाल ही में आई तेजी के बाद स्टॉकिस्टों की लिवाली सुस्त ही बनी होने से जीरा सामान्य हाल ही में 1400-1500 रुपए टूटकर फिलहाल 21,800/22,500 रुपए प्रति क्विंटल पर बना हुआ है। इससे पूर्व इसमें 500 रुपए की मंदी आई थी। नवीनतम गिरावट का प्रमुख कारण यह था कि पिछले कुछ दिनों से ऊंझा में निर्यातकों की सक्रियता का भारी अभाव बना हुआ है। भारत के अलावा विश्व में तुर्की और सीरिया को जीरे के अन्य उत्पादक देशों के रूप में जाना जाता है। अब अफगानिस्तान तथा ईरान भी चुनौती पेश करने लगे हैं। आमतौर पर तुर्की एवं सीरिया में संयुक्त रूप से करीब 35 हजार टन जीरे का उत्पादन होता है और इनकी क्वालिटी भारतीय जीरे की तुलना में हल्की होती है। आगामी जुलाई महीने में चीन में जीरे की नई फसल भी होनी है। अभी तक प्राप्त हुई सूचनाओं के अनुसार नए सीजन में चीन में जीरे का उत्पादन सामान्य कुछ कम होने का अनुमान है। अगले महीने चीन, तुर्की और सीरिया में नई फसल शुरू होने का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के आरंभिक 11 यानी अप्रैल-फरवरी, 2024-25 में देश से 5734.36 करोड़ रुपए कीमत के 2,11,143.75 टन जीरे का निर्यात हुआ है। एक वर्ष पूर्व आलोच्य अवधि में इसकी 1,32,019.05 टन मात्रा का निर्यात हुआ था और इससे 4885.80 करोड़ रुपए की आय हुई थी। आगामी दिनों मे जीरे में रुक-रुककर मंदी आती रहने की आशंका है।

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जीरा : रुक-रुककर आती रहेगी मंदी

 ऊंझा में पिछले कुछ समय से जीरे की आवक सीमित ही बनी होने के बाद भी इसकी कीमत में रुक-रुककर मंदी आती जा रही है। मानसून सीजन भी चल रहा है। इसकी वजह से घरेलू और निर्यात बिक्री भी सुस्त ही बनी रहने की आस है। अत: आगामी दिनों में जीरे में रुक-रुककर मंदी आती रहने की आस है। देश में इस बार मानसून का आगमन सामान्य की अपेक्षा करीब 8 दिनों पहले ही हो गया। इससे भी हैरानी की बात यह है कि केरल में पहुंचने के बाद से मानसून बहुत तेजी से देश के कई अन्य राज्यों की ओर बढ़ा। हालांकि अब इसके बढऩे पर अस्थाई ब्रेक लगा हुआ है। उधर, कीमत उम्मीद से नीची होने के कारण गुजरात के किसानों द्वारा हाल ही में अपनी जीरा फसल की बिक्री में कमी जाने के बाद भी ऊंझा मंड़ी में इस प्रमुख किराना जिंस की आवक सीमित ही बनी हुई है। यही वजह है कि ऊंझा में जीरे की करीब 8-11 हजार बोरियों की आवक होने की सूचनाएं आ रही हैं। नवीनतम आवक सामान्य की अपेक्षा काफी नीची है। नाममात्र की आवक के बाद भी लिवाली का अभाव बना हुआ है। हालांकि पूर्व में ऊंझा में जीरे की आवक सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 72-75 हजार बोरियों के स्तर पर पहुंच गई थी। इस बार गुजरात में जीरे की बिजाई वार्षिक आधार पर करीब 15 प्रतिशत घटकर 4,76,500 लाख हेक्टेयर में हुई है। गुजरात की मंडिय़ों में जीरे में व्यापारिक गतिविधियां भी सुधरने लगी हैं। ऊंझा में जीरे की कीमत भी हाल ही में 165-185 रुपए और मंदा होकर फिलहाल 4060/4175 रुपए प्रति 20 किलोग्राम बीच बनी होने की जानकारी मिली। इससे पूर्व इसमें 160-180 रुपए की मंदी आई थी। आमतौर पर चीन की तुलना में तुर्की में जीरे की कीमत ऊंची होती है। इधर, स्थानीय थोक किराना बाजार में हाल ही में आई तेजी के बाद स्टॉकिस्टों की लिवाली सुस्त ही बनी होने से जीरा सामान्य हाल ही में 1400-1500 रुपए टूटकर फिलहाल 21,800/22,500 रुपए प्रति क्विंटल पर बना हुआ है। इससे पूर्व इसमें 500 रुपए की मंदी आई थी। नवीनतम गिरावट का प्रमुख कारण यह था कि पिछले कुछ दिनों से ऊंझा में निर्यातकों की सक्रियता का भारी अभाव बना हुआ है। भारत के अलावा विश्व में तुर्की और सीरिया को जीरे के अन्य उत्पादक देशों के रूप में जाना जाता है। अब अफगानिस्तान तथा ईरान भी चुनौती पेश करने लगे हैं। आमतौर पर तुर्की एवं सीरिया में संयुक्त रूप से करीब 35 हजार टन जीरे का उत्पादन होता है और इनकी क्वालिटी भारतीय जीरे की तुलना में हल्की होती है। आगामी जुलाई महीने में चीन में जीरे की नई फसल भी होनी है। अभी तक प्राप्त हुई सूचनाओं के अनुसार नए सीजन में चीन में जीरे का उत्पादन सामान्य कुछ कम होने का अनुमान है। अगले महीने चीन, तुर्की और सीरिया में नई फसल शुरू होने का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के आरंभिक 11 यानी अप्रैल-फरवरी, 2024-25 में देश से 5734.36 करोड़ रुपए कीमत के 2,11,143.75 टन जीरे का निर्यात हुआ है। एक वर्ष पूर्व आलोच्य अवधि में इसकी 1,32,019.05 टन मात्रा का निर्यात हुआ था और इससे 4885.80 करोड़ रुपए की आय हुई थी। आगामी दिनों मे जीरे में रुक-रुककर मंदी आती रहने की आशंका है।


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