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10-06-2025

तिल्ली : अभी मंदा ही रहेगा

  •  तिल्ली की फसल गत वर्ष की अपेक्षा अच्छी होने के बावजूद सीजन में ही मंडियों के कारोबारी माल खरीद लिए थे, वह पिछले तीन वर्षों का कमाया हुआ निकल चुका है। इसमें ढाई महीने के अंतराल 17-18 रुपए प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है तथा 8-10 रुपए और निकल सकते हैं। इस बार शुरू से ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नीचे भाव होने से यहां भी काफी नीचे आयात के पड़ते लगने लगे हैं। दूसरी और उत्पादन भी अधिक रहा यही कारण है कि सीजन में जो दिल्ली ग्वालियर हलिंग 120/121 रुपए प्रति किलो बिक गई थी, उसके भाव वर्तमान में 85/86 रुपए के निम्न स्तर पर आ गए हैं, जो बहुत कम समय में एक ऐतिहासिक मंदा बताया जा रहा है। नेचुरल माल छतरपुर सैठई लाइन में जो 111/112 रुपए बिका था, उसके भाव 70/72 रुपए के निम्न स्तर पर आ गए हैं। गौरतलाप है कि मार्च के अंतिम सप्ताह में ही जो हलिंग माल ग्वालियर में 103/104 रुपए बिका था उसमें 17/18 रुपए प्रति किलो का मंदा आ गया है। विदेशों की तिल्ली सस्ते भाव में लगातार मिल रही है। दूसरी ओर खपत का समय निकल चुका है, वहीं स्टॉकिस्ट मंदे भाव में माल बेचने लगे हैं, इन परिस्थितियों में नयी फसल आने तक 10 रुपए प्रति किलो और घट सकते हैं। देश में तिल्ली का उत्पादन अनुमानत: तीन लाख मीट्रिक टन के करीब हुआ है, लेकिन पिछले दो वर्षों से कारोबारियों को भारी लाभ मिलने से सितंबर-अक्टूबर में ही नई फसल आने पर ऊंचे भाव में कारोबारियों ने माल खरीद लिया। पुराना स्टॉक भी बचा था तथा नाइजीरिया एवं सूडान के लगातार मंदे भाव में तिल्ली आने से यहां देसी माल की बिक्री काफी नगण्य रह गई है। निर्यात में भी कोई माल नहीं जा रहा है, क्योंकि सूडान ब्राज़ील एवं नाइजीरिया के माल भारतीय पोर्ट पर 68/70 रुपए प्रति किलो के पड़ते में मिल रहे हैं। वहां 1060 डॉलर से घटकर 830 डॉलर प्रति टन भाव रह गए हैं। इस वजह से जो तिल्ली 112/113 रुपए बिकी थी, उसके भाव 70/72 रुपए के बीच मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ की मंडियों में रह गए हैं। अफ्रीकन तिल्ली इस बार वहां उत्पादन अधिक होने से लगातार घटाकर टेंडर में मिल रही है तथा वहां के निर्यातक माल के बिकवाल हैं। यही कारण है कि जिन देशों में भारतीय तिल्ली का निर्यात होता था, वहां के सौदे नहीं हो रहे हैं। तिल्ली की घरेलू खपत दिसंबर से जनवरी तक होती है।, सर्दियों के महीने में गजक रेवड़ी में 50 प्रतिशत खपत रहती है, जो  खपत तो रही, लेकिन निर्यात एक चौथाई एवं आयात सौदे लगातार सस्ते होने से पानी पानी हो गई है। अभी कारोबारियों के गले में स्टॉक ज्यादा बचा हुआ है तथा निकट में कोई बड़ी खपत नहीं रहने वाली है, रुपए की तंगी से स्टॉक के माल औने-पौने भाव में बिकवाल आ रहे हैं, इन परिस्थितियों में अभी 8/10 रुपए प्रति किलो की और गिरावट आ सकती है।

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तिल्ली : अभी मंदा ही रहेगा

 तिल्ली की फसल गत वर्ष की अपेक्षा अच्छी होने के बावजूद सीजन में ही मंडियों के कारोबारी माल खरीद लिए थे, वह पिछले तीन वर्षों का कमाया हुआ निकल चुका है। इसमें ढाई महीने के अंतराल 17-18 रुपए प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है तथा 8-10 रुपए और निकल सकते हैं। इस बार शुरू से ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नीचे भाव होने से यहां भी काफी नीचे आयात के पड़ते लगने लगे हैं। दूसरी और उत्पादन भी अधिक रहा यही कारण है कि सीजन में जो दिल्ली ग्वालियर हलिंग 120/121 रुपए प्रति किलो बिक गई थी, उसके भाव वर्तमान में 85/86 रुपए के निम्न स्तर पर आ गए हैं, जो बहुत कम समय में एक ऐतिहासिक मंदा बताया जा रहा है। नेचुरल माल छतरपुर सैठई लाइन में जो 111/112 रुपए बिका था, उसके भाव 70/72 रुपए के निम्न स्तर पर आ गए हैं। गौरतलाप है कि मार्च के अंतिम सप्ताह में ही जो हलिंग माल ग्वालियर में 103/104 रुपए बिका था उसमें 17/18 रुपए प्रति किलो का मंदा आ गया है। विदेशों की तिल्ली सस्ते भाव में लगातार मिल रही है। दूसरी ओर खपत का समय निकल चुका है, वहीं स्टॉकिस्ट मंदे भाव में माल बेचने लगे हैं, इन परिस्थितियों में नयी फसल आने तक 10 रुपए प्रति किलो और घट सकते हैं। देश में तिल्ली का उत्पादन अनुमानत: तीन लाख मीट्रिक टन के करीब हुआ है, लेकिन पिछले दो वर्षों से कारोबारियों को भारी लाभ मिलने से सितंबर-अक्टूबर में ही नई फसल आने पर ऊंचे भाव में कारोबारियों ने माल खरीद लिया। पुराना स्टॉक भी बचा था तथा नाइजीरिया एवं सूडान के लगातार मंदे भाव में तिल्ली आने से यहां देसी माल की बिक्री काफी नगण्य रह गई है। निर्यात में भी कोई माल नहीं जा रहा है, क्योंकि सूडान ब्राज़ील एवं नाइजीरिया के माल भारतीय पोर्ट पर 68/70 रुपए प्रति किलो के पड़ते में मिल रहे हैं। वहां 1060 डॉलर से घटकर 830 डॉलर प्रति टन भाव रह गए हैं। इस वजह से जो तिल्ली 112/113 रुपए बिकी थी, उसके भाव 70/72 रुपए के बीच मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ की मंडियों में रह गए हैं। अफ्रीकन तिल्ली इस बार वहां उत्पादन अधिक होने से लगातार घटाकर टेंडर में मिल रही है तथा वहां के निर्यातक माल के बिकवाल हैं। यही कारण है कि जिन देशों में भारतीय तिल्ली का निर्यात होता था, वहां के सौदे नहीं हो रहे हैं। तिल्ली की घरेलू खपत दिसंबर से जनवरी तक होती है।, सर्दियों के महीने में गजक रेवड़ी में 50 प्रतिशत खपत रहती है, जो  खपत तो रही, लेकिन निर्यात एक चौथाई एवं आयात सौदे लगातार सस्ते होने से पानी पानी हो गई है। अभी कारोबारियों के गले में स्टॉक ज्यादा बचा हुआ है तथा निकट में कोई बड़ी खपत नहीं रहने वाली है, रुपए की तंगी से स्टॉक के माल औने-पौने भाव में बिकवाल आ रहे हैं, इन परिस्थितियों में अभी 8/10 रुपए प्रति किलो की और गिरावट आ सकती है।


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