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11-06-2025

बीकानेर से टूट सकती है तुर्किये की मोनोपॉली

  •  दुनिया के कई देश रूमानिया, बुल्गारिया, इटली, साइप्रस और ब्रिटेन ऊन की वॉशिंग के लिए तुर्किये पर निर्भर हैं। इन देशों से तुर्किये ऊन मंगवाकर केवल उसकी स्कावरिंग (वॉशिंग) करता है और फिर यही ऊन भारत सहित विभिन्न देशों को निर्यात कर मुनाफा कमाता है। भारत हर साल तुर्किये से 5.43 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वूलन सामग्री आयात करता है। अगर भारत सरकार बीकानेर में एक वूल स्कावरिंग पार्क स्थापित कर दे, तो आयात रोका जा सकता है। वूलन कारोबारियों का कहना है कि यदि तुर्किये से मशीन-निर्मित कालीनों के आयात पर 45 प्रतिशत का प्रतिपक्षी शुल्क (Reciprocal Tariff) लगाया जाए, तो स्वाभाविक रूप से इन कालीनों का आयात अपने-आप घट जाएगा। राजस्थान वूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के उपाध्यक्ष संजय राठी बताते है कि भारत में वर्तमान में स्कावरिंग मशीनें 70 लाख से 1 करोड़ रुपये तक की हैं, लेकिन एंडावर जैसे अत्याधुनिक प्लांट्स की लागत करीब 20 करोड़ रुपये है। यदि वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से ऐसे दो अत्याधुनिक प्लांट बीकानेर में लगाए, तो तुर्किये की वॉशिंग मोनोपॉली टूट सकती है। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम होगा। राजस्थान वूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष कमल कल्ला बताते हैं कि तुर्किये से हर साल भारत 13.97 मिलियन डॉलर के मशीन मेड कारपेट आयात करता है। इन कारपेट्स के लिए उपयोग में ली जाने वाली वेंडेवली एवं रोबोटिक मशीनें बेहद महंगी हैं। यदि भारत सरकार इन मशीनों की स्थापना पर 50 प्रतिशत सब्सिडी दे, तो यह पूरा आयात बंद किया जा सकता है। भारत अमेरिका को करीब 15 हजार करोड़ रुपये के कारपेट का निर्यात करता है, लेकिन यदि यह उत्पादन बड़े स्तर पर भारत में शुरू हो जाए, तो यह आंकड़ा 50 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। टर्की पॉली प्रोपलीन कारपेट बनाता है, जबकि भारत यदि मशीनें लगाता है, तो यहां वूल, नाइलॉन, एक्रेलिक, पॉलीएस्टर के ब्लेंडेड कारपेट्स तैयार किए जा सकते हैं और इसके लिए बीकानेर सबसे उपयुक्त स्थान है। बीकानेर में 300 से अधिक यार्न उत्पादन इकाइयां हैं, जो प्रतिदिन दो लाख किलोग्राम धागे का निर्माण करती हैं। भारत दुनिया में सबसे अधिक वूल फाइबर का उपभोग करता है। दुनिया के कुल उत्पादन का 35 पर्सेंट केवल भारत में इस्तेमाल होता है। वूलन कारोबारियों का कहना है कि यदि सरकार की नीयत और नीति स्पष्ट हो, तो बीकानेर के व्यापारी पीपीपी मोड पर 100 बीघा भूमि देने को तैयार हैं। केवल स्कावरिंग प्लांट्स, मशीनरी और ईटीपी प्लांट की स्थापना में सरकार का सहयोग अपेक्षित है। बीकानेर में बंजर भूमि की भरमार है और पर्यावरणीय नुकसान की संभावना न्यूनतम है। इसलिए स्कावरिंग और कारपेट इंडस्ट्री के लिए यह क्षेत्र अत्यंत उपयुक्त है। वूलन कारोबारियों का कहना है कि यदि केंद्र और राज्य सरकार इस दिशा में ठोस नीति बनाकर एसोसिएशन के साथ मिलकर कार्य करे, तो बीकानेर न केवल तुर्किये की मोनोपॉली को तोड़ सकता है, बल्कि वैश्विक वूलन बाजार में भारत को अग्रणी बना सकता है।

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बीकानेर से टूट सकती है तुर्किये की मोनोपॉली

 दुनिया के कई देश रूमानिया, बुल्गारिया, इटली, साइप्रस और ब्रिटेन ऊन की वॉशिंग के लिए तुर्किये पर निर्भर हैं। इन देशों से तुर्किये ऊन मंगवाकर केवल उसकी स्कावरिंग (वॉशिंग) करता है और फिर यही ऊन भारत सहित विभिन्न देशों को निर्यात कर मुनाफा कमाता है। भारत हर साल तुर्किये से 5.43 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वूलन सामग्री आयात करता है। अगर भारत सरकार बीकानेर में एक वूल स्कावरिंग पार्क स्थापित कर दे, तो आयात रोका जा सकता है। वूलन कारोबारियों का कहना है कि यदि तुर्किये से मशीन-निर्मित कालीनों के आयात पर 45 प्रतिशत का प्रतिपक्षी शुल्क (Reciprocal Tariff) लगाया जाए, तो स्वाभाविक रूप से इन कालीनों का आयात अपने-आप घट जाएगा। राजस्थान वूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के उपाध्यक्ष संजय राठी बताते है कि भारत में वर्तमान में स्कावरिंग मशीनें 70 लाख से 1 करोड़ रुपये तक की हैं, लेकिन एंडावर जैसे अत्याधुनिक प्लांट्स की लागत करीब 20 करोड़ रुपये है। यदि वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से ऐसे दो अत्याधुनिक प्लांट बीकानेर में लगाए, तो तुर्किये की वॉशिंग मोनोपॉली टूट सकती है। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम होगा। राजस्थान वूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष कमल कल्ला बताते हैं कि तुर्किये से हर साल भारत 13.97 मिलियन डॉलर के मशीन मेड कारपेट आयात करता है। इन कारपेट्स के लिए उपयोग में ली जाने वाली वेंडेवली एवं रोबोटिक मशीनें बेहद महंगी हैं। यदि भारत सरकार इन मशीनों की स्थापना पर 50 प्रतिशत सब्सिडी दे, तो यह पूरा आयात बंद किया जा सकता है। भारत अमेरिका को करीब 15 हजार करोड़ रुपये के कारपेट का निर्यात करता है, लेकिन यदि यह उत्पादन बड़े स्तर पर भारत में शुरू हो जाए, तो यह आंकड़ा 50 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। टर्की पॉली प्रोपलीन कारपेट बनाता है, जबकि भारत यदि मशीनें लगाता है, तो यहां वूल, नाइलॉन, एक्रेलिक, पॉलीएस्टर के ब्लेंडेड कारपेट्स तैयार किए जा सकते हैं और इसके लिए बीकानेर सबसे उपयुक्त स्थान है। बीकानेर में 300 से अधिक यार्न उत्पादन इकाइयां हैं, जो प्रतिदिन दो लाख किलोग्राम धागे का निर्माण करती हैं। भारत दुनिया में सबसे अधिक वूल फाइबर का उपभोग करता है। दुनिया के कुल उत्पादन का 35 पर्सेंट केवल भारत में इस्तेमाल होता है। वूलन कारोबारियों का कहना है कि यदि सरकार की नीयत और नीति स्पष्ट हो, तो बीकानेर के व्यापारी पीपीपी मोड पर 100 बीघा भूमि देने को तैयार हैं। केवल स्कावरिंग प्लांट्स, मशीनरी और ईटीपी प्लांट की स्थापना में सरकार का सहयोग अपेक्षित है। बीकानेर में बंजर भूमि की भरमार है और पर्यावरणीय नुकसान की संभावना न्यूनतम है। इसलिए स्कावरिंग और कारपेट इंडस्ट्री के लिए यह क्षेत्र अत्यंत उपयुक्त है। वूलन कारोबारियों का कहना है कि यदि केंद्र और राज्य सरकार इस दिशा में ठोस नीति बनाकर एसोसिएशन के साथ मिलकर कार्य करे, तो बीकानेर न केवल तुर्किये की मोनोपॉली को तोड़ सकता है, बल्कि वैश्विक वूलन बाजार में भारत को अग्रणी बना सकता है।


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