आपने कोविड के बाद 2022 में श्रीलंका के प्रेसिडेंट हाउस को लुटते देखा होगा। जिसके हाथ जो पड़ा ले गया। श्रीलंका की पर कैपिटा इनकम करीब 4500 डॉलर है जबकि भारत की 2500 डॉलर। पर सवाल है कि कारवां आखिर लुटा क्यों...? मामला दरअसल यह है कि तब की देश की सरकार ने अचानक एक झटके में पूरे श्रीलंका को ऑर्गेनिक घोषित कर दिया। नतीजा क्रॉप प्रॉडक्शन धाराशायी हो गया। पहले तीन साल ऐसा होता ही है। देश में खाने का क्राइसिस आ गया और इंपोर्ट करना पड़ गया। फिर कोविड आने से देश की टूरिज्म इनकम खत्म हो गई। यानी एक साथ दोहरी मार पड़ गई। बस सरकार के खिलाफ गुस्सा फूट गया और लोगों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को खदेड़ दिया। अब सवाल यह है कि पूरे देश को एक झटके में ऑर्गेनिक करने की सलाह किसने दी। तो जबाव है भारत की जानी-मानी डायवर्सिटी एक्टिविस्ट हैं वंदना शिवा ने। ऑर्गेनिक और कॉमर्शियल फार्मिंग को लेकर दुनियाभर के एक्सपर्ट्स दो-फाड़ हैं। कॉमर्शियल फॉर्मिंग वाली लॉबी का कहना है कि ऑर्गेनिक या नेचुरल फार्मिंग से उत्पादन घट जाएगा और करोड़ों लोग भूखे मर जाएंगे। लेकिन कॉमर्शियल फार्मिंग के जहर को भी तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत सरकार ने ऑर्गेनिक के नाम पर हो रहे फर्जीवाडे को देखते हुए नेचुरल फार्मिंग सर्टिफिकेशन सिस्टम (एनसीएफएस) लागू करने का फैसला किया है। भारत में ऑर्गेनिक्स के लिए ऐसा सिस्टम पहले से मौजूद है। सरकार का मानना है कि इस नेचुरल फार्मिंग सर्टिफिकेशन से कंज्यूमर का भरोसा और फार्मर की इनकम बढ़ाने में मदद मिलेगी। भारत में अभी 18 लाख किसान 7.80 लाख हेक्टेयर में नेचुरल फार्मिंग कर रहे हैं। नेचुरल सर्टिफाइड होने पर किसानों को प्राइस प्रीमियम लेने में मदद मिलेगी। भारत सरकार के एक अधिकारी के अनुसार जल्दी ही एनसीएफएस को पूरे देश में लागू किया जाएगा। किसान स्वेच्छा से इस स्कीम में शामिल हो सकेंगे। माना जा रहा है कि राज्यों में चल रहे ऑर्गेनिक बोर्ड ही नेचुरल फार्मिंग के लिए सर्टिफिकेशन एजेंसी का काम करेंगे। हालांकि नेचुरल फार्मिंग के लिए नए स्टेंडर्ड तय किए जाएंगे। पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मि•ाोरम, तेलंगाना और केरल सहित कई राज्यों में नेचुरल फार्मिंग का रकबा बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार इस स्कीम को भी पीजीएस (पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम) के तहत ही लागू किया जाएगा। वर्ष 2011 में शुरू हुई पीजीएस के तहत छोटे किसानों को बिना ज्यादा फीस के सर्टिफिकेशन में मदद दी जाती है। सरकार का मानना है कि सर्टिफिकेशन सिस्टम से जिम्मेदारी का भाव बढ़ेगा साथ ही ऑर्गेनिक की तर्ज पर देश में नेचुरल फार्मिंग का भी औरचारिक सिस्टम तैयार हो जाएगा। एनेलिस्ट कहते हैं कि भारत में नेचुरल फार्मिंग की शुरुआत कुछ ही फसलों के साथ हुई थी लेकिन अब इसके दायरे में सभी बड़ी फसलें हैं। कंज्यूमर में भी इसको लेकर जागरूकता बढ़ रही है और विशेषरूप से शहरी कंज्यूमर प्रीमियम प्राइस भी देने को तैयार हैं। नेचुरल फार्मिंग वाले फल सब्जियों में पोषक तत्व भी ज्यादा होते हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग में कंपोस्ट और देसी खाद आदि का प्रयोग किया जाता है। वहीं नेचुरल फार्मिंग में बाहर से कुछ भी नहीं डाला जाता। यहां तक कि ऑर्गेनिक खाद भी नहीं। यानी नेचुरल फार्मिंग पूरी तरह नेचल की इकोलॉजिकल प्रॉसेस पर निर्भर होती हैं। नवंबर 24 में केंद्रीय केबिनेट ने नेशनल मिशन ऑल नेचुरल फार्मिंग स्कीम को मंजूरी दी थी जिसके वित्त वर्ष 2025-26 में 2481 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।
