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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

13-08-2025

जो भी करें, शांति से करें

  •  कोई भी व्यक्ति किसी काम को करता है, तो उसके साथ उसके चित्त की स्थिति जुड़ी होती है। यदि वह शांत है तो बेहतर नतीजा दे देगा और यदि अशांत है तो फिर कुछ कह नहीं सकते। अपने जीवन में लोग दोनों तरह से रहते हैं, शांत मन से भी और अशांति से भी। पर दोनों स्थितियों में फर्क है। जो व्यक्ति अशांत है और काम कर रहा है, इसके मायने यह हुआ कि जो अशांति उसके मन में है, वह उसकी क्षमता का अधिक दोहन कर रही है अर्थात उसके मन का तनाव बड़ी शक्ति पी रहा है, फिर भी काम कर रहा है और काम को खींच रहा है और अंतत: कर लेता है। इसके विपरीत एक व्यक्ति ऐसा है जो शांति चित्त से काम कर रहा है, उसके काम में जितनी शक्ति आवश्यक होती है उतनी ही लगेगी और शेेष उसी के पास रहेगी। इससे उसके काम की गति भी बढ़ेगी, कुशलता भी और गुणवत्ता भी। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सवाल ही क्यों उठता है। अब तक हमने यह पढ़ा है सुना है कि जो शांत हो गये, वे संसार से भाग जाते हैं अर्थात सन्यास ले लेते हैं। पर सच यह है कि शांत कभी संसार से नहीं भागता बल्कि जो अशांत होता है वही भागता है। शांत को तो आनंद आता है चारों तरफ से, वह चौतरफा अशांति के बीच खड़ा होकर भी सहज महसूस कर सकता है, क्योंकि वह उसकी कसौटी भी है। जो व्यक्ति शांत रहता है, उसके यहां बाहर कितनी भी अशांति हो, वह उसके भीतर प्रवेश नहीं कर सकती, इसलिए कि उसके मन की शांति अटूट होती है, कोई भी चीज मन को डांवाडोल नहीं कर सकती। पर यहां एक दिलचस्प स्थिति है, वह यह कि कुछ काम ऐसे होते हैं, जो केवल अशांत व्यक्ति ही कर सकता है, शांत रहने वाला नहीं। एक आदमी चोरी कर रहा है, अब वह व्यक्ति यदि शांत है तो चोरी का काम कुशलता से कर सकता है, लेकिन करेगा नहीं क्योंकि उसका चित्त इस तरह की प्रवृत्ति में है ही नहीं। चोरी के लिए दीन-दुर्बल चित्त और अशांत मन चाहिये। इसी तरह शांत आदमी क्रोध अगर करता है, तो बहुत ही कुशलता से कर सकता है, लेकिन करेगा नहीं, क्योंकि उसकी ऐसी प्रकृत्ति ही नहीं है। ये दोनों काम मूलत: एक अशांत व्यक्ति बेहतर कर सकता है। जहां तक बात शांत व्यक्ति की स्वीकार्यता की है, तो वह बेहतर पति, बेहतर जीवनसाथी, बेहतर बेटा, बेहतर पिता और बेहतर मित्र होता है, इसलिए की वह सोने के तुल्य होता है और उसकी सुगंध का अलग ही आनंद है। अब यह आप पर निर्भर है कि आप किसे चुनते हैं या किसे अपनाते हैं, शांति को या अशांति को। यह फैसला मन करता है, क्योंकि शांत उसे ही रहना और अशांत भी। होता यह है कि मन को संसार की फिक्र नहीं है, मन को अपनी फिक्र है। अगर शांत रख दिया, तो सांसारिक कार्य कैसे होंगे। मन बहाने खोजता है, मन कहता है कि शांत मत हो जाना। अगर महत्वाकांक्षी हो तो महत्वाकांक्षा चली जायेगी, किसी मिशन पर हो तो वह कामयाब नहीं हो पायेगा। पर अगर यह सोच लिया कि संसार हमारे मन की शांति रहते आराम से चल रहा है, तो यह स्थिति बहुत सकारात्मक होती है। एक शायर ने लिखा भी है कि ये रंगे बहारे आलम है, क्यों फिक्र है तुझको ए साकी

    महफिल तो तेरी सूनी न हुई, कुछ उठ भी गये कुछ आ भी गये। यहां कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी चिंता कर लें, वह पर्याप्त है और अपनी चिंता वही मन कर सकता है,जो शांत है। अशांत मन चिंता नहीं करता बल्कि उद्वेग पैदा करता है। हम मन को शांत कर लें, तो जो भी होगा शुभ होगा, बेहतर होगा। वैसे भी पाप-पुण्य की परिभाषा की अगर बात करें, तो सच यह है कि जिसे करने से मन शांत न हो वह पाप और जिससे मन को शांति मिले वह पुण्य कर्म। पुण्य रहेगा तो पुण्य की कुशलता रहेगी और पाप खोते चले जायेंगे। अब तक किसी ने नहीं कहा कि वह शांत रहा तो उसे पछतावा हुआ। बल्कि जो शांत होता है, वह वह सुखी रहता है और ऐसे लोगों की संख्या दस-बीस पचास नहीं हजारों-लाखों नहीं बल्कि बहुत अधिक है। क्योंकि सृष्टि में सभी तरह के लोग होते हैं, शांत चित्त भी और अशांत चित्त भी। हम जो लोग कारोबार में सक्रिय रहते हैं, हमारे लिए मन की शांति अहम है। यह है तो हम अच्छे फैसले ले सकते हैं और यह नहीं है कि फैसलों को लेकर अनिनिश्चतता बनी रहती है। इसी तरह हमारे यहां काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी व श्रमिक यदि शांत मन से काम करते हैं, तो उनकी एकाग्रता बढ़ती है और कार्य-उत्पादकता भी। इससे हमारा कारोबार फलता-फूलता है। अब यह नियोक्ता पर निर्भर है कि अधिकारियों-कर्मचारियों व श्रमिकों के मन में शांति का भाव कैसे पैदा करे। युग कितना ही एआई तकनीक वाला आ गया हो, आईटी से एआई पर शिफ्ट हो गया हो, लेकिन अच्छा कार्य निष्पादन वही कर सकता है जिसके चित्त में शांति है। अत: अगर आप अपने व्यवसाय में उन्नति चाहते हैं, तो कर्मचारियों-अधिकारियों के चयन में यह बात अवश्य देखिये कि उसकी प्रकृति कैसी है। उसका स्वभाव कैसा है, उसका मन कैसा है। उसका चित्त शांत है या नहीं, यह जांचने के लिए उससे कुछ पूछिये, ताकि आपको अहसास हो सके कि वह कैसा है। चयन करने के बाद भी कर्मचारियों-अधिकारियों की मन-स्थिति पर निगाह अवष्य रखिये कि वे काम किस तरह कर रहे हैं। मान लीजिये मार्केटिंग में कोई मैनेजर है, स्वाभाविक है कि उसे लक्ष्यों को प्राप्त करने की चिंता रहती है। पर इस लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में वह किस चित्त से काम कर रहा है, अशांत रहेगा तो वह कहीं न कहीं बिगाड़ कर देगा, अधीनस्थों पर गुस्सा भी होगा। अगर वह शांत चित्त से काम कर रहा है, तो वह अधीनस्थों से बेहतर कार्य निष्पादित करवा सकता है। शांत चित्त व्यक्ति का व्यवहार उत्तम होता है, जो कि मार्केटिंग के लिए सबसे बड़ा गुण कहा जाता है और प्रबंधन के लिए भी। क्योंकि अच्छा प्रबंधक वही होता है जो अधीनस्थों से बेहतर व्यवहार के जरिये कुषलता पूर्वक कार्य निष्पादित करवा सके। यह कुशलता तभी आयेगी जबकि प्रबंधक के मन में शांति होगी।

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जो भी करें, शांति से करें

 कोई भी व्यक्ति किसी काम को करता है, तो उसके साथ उसके चित्त की स्थिति जुड़ी होती है। यदि वह शांत है तो बेहतर नतीजा दे देगा और यदि अशांत है तो फिर कुछ कह नहीं सकते। अपने जीवन में लोग दोनों तरह से रहते हैं, शांत मन से भी और अशांति से भी। पर दोनों स्थितियों में फर्क है। जो व्यक्ति अशांत है और काम कर रहा है, इसके मायने यह हुआ कि जो अशांति उसके मन में है, वह उसकी क्षमता का अधिक दोहन कर रही है अर्थात उसके मन का तनाव बड़ी शक्ति पी रहा है, फिर भी काम कर रहा है और काम को खींच रहा है और अंतत: कर लेता है। इसके विपरीत एक व्यक्ति ऐसा है जो शांति चित्त से काम कर रहा है, उसके काम में जितनी शक्ति आवश्यक होती है उतनी ही लगेगी और शेेष उसी के पास रहेगी। इससे उसके काम की गति भी बढ़ेगी, कुशलता भी और गुणवत्ता भी। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सवाल ही क्यों उठता है। अब तक हमने यह पढ़ा है सुना है कि जो शांत हो गये, वे संसार से भाग जाते हैं अर्थात सन्यास ले लेते हैं। पर सच यह है कि शांत कभी संसार से नहीं भागता बल्कि जो अशांत होता है वही भागता है। शांत को तो आनंद आता है चारों तरफ से, वह चौतरफा अशांति के बीच खड़ा होकर भी सहज महसूस कर सकता है, क्योंकि वह उसकी कसौटी भी है। जो व्यक्ति शांत रहता है, उसके यहां बाहर कितनी भी अशांति हो, वह उसके भीतर प्रवेश नहीं कर सकती, इसलिए कि उसके मन की शांति अटूट होती है, कोई भी चीज मन को डांवाडोल नहीं कर सकती। पर यहां एक दिलचस्प स्थिति है, वह यह कि कुछ काम ऐसे होते हैं, जो केवल अशांत व्यक्ति ही कर सकता है, शांत रहने वाला नहीं। एक आदमी चोरी कर रहा है, अब वह व्यक्ति यदि शांत है तो चोरी का काम कुशलता से कर सकता है, लेकिन करेगा नहीं क्योंकि उसका चित्त इस तरह की प्रवृत्ति में है ही नहीं। चोरी के लिए दीन-दुर्बल चित्त और अशांत मन चाहिये। इसी तरह शांत आदमी क्रोध अगर करता है, तो बहुत ही कुशलता से कर सकता है, लेकिन करेगा नहीं, क्योंकि उसकी ऐसी प्रकृत्ति ही नहीं है। ये दोनों काम मूलत: एक अशांत व्यक्ति बेहतर कर सकता है। जहां तक बात शांत व्यक्ति की स्वीकार्यता की है, तो वह बेहतर पति, बेहतर जीवनसाथी, बेहतर बेटा, बेहतर पिता और बेहतर मित्र होता है, इसलिए की वह सोने के तुल्य होता है और उसकी सुगंध का अलग ही आनंद है। अब यह आप पर निर्भर है कि आप किसे चुनते हैं या किसे अपनाते हैं, शांति को या अशांति को। यह फैसला मन करता है, क्योंकि शांत उसे ही रहना और अशांत भी। होता यह है कि मन को संसार की फिक्र नहीं है, मन को अपनी फिक्र है। अगर शांत रख दिया, तो सांसारिक कार्य कैसे होंगे। मन बहाने खोजता है, मन कहता है कि शांत मत हो जाना। अगर महत्वाकांक्षी हो तो महत्वाकांक्षा चली जायेगी, किसी मिशन पर हो तो वह कामयाब नहीं हो पायेगा। पर अगर यह सोच लिया कि संसार हमारे मन की शांति रहते आराम से चल रहा है, तो यह स्थिति बहुत सकारात्मक होती है। एक शायर ने लिखा भी है कि ये रंगे बहारे आलम है, क्यों फिक्र है तुझको ए साकी

महफिल तो तेरी सूनी न हुई, कुछ उठ भी गये कुछ आ भी गये। यहां कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी चिंता कर लें, वह पर्याप्त है और अपनी चिंता वही मन कर सकता है,जो शांत है। अशांत मन चिंता नहीं करता बल्कि उद्वेग पैदा करता है। हम मन को शांत कर लें, तो जो भी होगा शुभ होगा, बेहतर होगा। वैसे भी पाप-पुण्य की परिभाषा की अगर बात करें, तो सच यह है कि जिसे करने से मन शांत न हो वह पाप और जिससे मन को शांति मिले वह पुण्य कर्म। पुण्य रहेगा तो पुण्य की कुशलता रहेगी और पाप खोते चले जायेंगे। अब तक किसी ने नहीं कहा कि वह शांत रहा तो उसे पछतावा हुआ। बल्कि जो शांत होता है, वह वह सुखी रहता है और ऐसे लोगों की संख्या दस-बीस पचास नहीं हजारों-लाखों नहीं बल्कि बहुत अधिक है। क्योंकि सृष्टि में सभी तरह के लोग होते हैं, शांत चित्त भी और अशांत चित्त भी। हम जो लोग कारोबार में सक्रिय रहते हैं, हमारे लिए मन की शांति अहम है। यह है तो हम अच्छे फैसले ले सकते हैं और यह नहीं है कि फैसलों को लेकर अनिनिश्चतता बनी रहती है। इसी तरह हमारे यहां काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी व श्रमिक यदि शांत मन से काम करते हैं, तो उनकी एकाग्रता बढ़ती है और कार्य-उत्पादकता भी। इससे हमारा कारोबार फलता-फूलता है। अब यह नियोक्ता पर निर्भर है कि अधिकारियों-कर्मचारियों व श्रमिकों के मन में शांति का भाव कैसे पैदा करे। युग कितना ही एआई तकनीक वाला आ गया हो, आईटी से एआई पर शिफ्ट हो गया हो, लेकिन अच्छा कार्य निष्पादन वही कर सकता है जिसके चित्त में शांति है। अत: अगर आप अपने व्यवसाय में उन्नति चाहते हैं, तो कर्मचारियों-अधिकारियों के चयन में यह बात अवश्य देखिये कि उसकी प्रकृति कैसी है। उसका स्वभाव कैसा है, उसका मन कैसा है। उसका चित्त शांत है या नहीं, यह जांचने के लिए उससे कुछ पूछिये, ताकि आपको अहसास हो सके कि वह कैसा है। चयन करने के बाद भी कर्मचारियों-अधिकारियों की मन-स्थिति पर निगाह अवष्य रखिये कि वे काम किस तरह कर रहे हैं। मान लीजिये मार्केटिंग में कोई मैनेजर है, स्वाभाविक है कि उसे लक्ष्यों को प्राप्त करने की चिंता रहती है। पर इस लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में वह किस चित्त से काम कर रहा है, अशांत रहेगा तो वह कहीं न कहीं बिगाड़ कर देगा, अधीनस्थों पर गुस्सा भी होगा। अगर वह शांत चित्त से काम कर रहा है, तो वह अधीनस्थों से बेहतर कार्य निष्पादित करवा सकता है। शांत चित्त व्यक्ति का व्यवहार उत्तम होता है, जो कि मार्केटिंग के लिए सबसे बड़ा गुण कहा जाता है और प्रबंधन के लिए भी। क्योंकि अच्छा प्रबंधक वही होता है जो अधीनस्थों से बेहतर व्यवहार के जरिये कुषलता पूर्वक कार्य निष्पादित करवा सके। यह कुशलता तभी आयेगी जबकि प्रबंधक के मन में शांति होगी।


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