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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

09-07-2025

जीवन प्रति पल नया है

  •  हम जीवन में जब भी कोई काम करते हैं, तो प्रारंभ में उत्साह बना रहता है पर धीरे-धीरे वह काम टाइप्ड होने लगता है अर्थात वही रूटीन, वही काम और महसूस होता है कि उब पैदा हो रही है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि हम काम को किस तरह से लेते हैं, काम के प्रति हमारी सोच और दृष्टिकोण क्या है। जो काम रोज करना पड़े, तो बोरिंग होना प्रचारित कर दिया जाता है, पर क्या वस्तुत: ऐसा होता है। एक मानसिकता या सोच बन जाती है कि रोज फैक्ट्री जाओ, आफिस जाओ, स्कूल-कॉलेज जाओ और यहां तक कि दुकान पर भी जाओ, मजदूरी करो, रोज वही काम करना है। एक बंधे हुए घेरे में एक उसी तरह के रूटीन में। जब सब कुछ हर दिन रिपीट होता है तो बोरियत जैसी स्थिति चर्चा में आ जाती है। लोग कहने लगते हैं कि सब कुछ रूटीन है, नया कुछ नहीं है बल्कि बोरियत सी हो रही है। यहां सोचने वाली बात यह है कि रोज-रोज तो काम बदला भी नहीं जा सकता, बदलेंगे तो नया काम मिलेगा कहां। मान लो बदल भी लिया, तो जहां जा रहे हैं, वहां भी काम तो करना ही है और वह काम पहले ही दिन नया होगा बाकी तो वही रिपीट होना है। अर्थात बदलाव के बाद भी जहां गये वहां भी दो-तीन दिन बाद रूटीन लगने लगता है या बोरियत जैसा फिर लगने लगता है। उबाने जैसा हो गया है, यह कहा जाता है। अब जो बोरियत प्रचारित की जाती है, उससे कैसे निपटा जाये। इसका पहला रास्ता तो सामान्यत: यह अपनाया जाता है कि इधर बोरियत शुरू हुई और उधर उसे भुलाने या उससे निपटने के कुछ प्रयास करते रहो। जैसे दिनभर आदमी काम करता रहता है, बोरियत होती है तो शाम को घर जाकर टीवी देखने लगता है, छोटे बच्चे हैं तो उनके साथ खेलने लगता है, या आस-पड़ौस की किसी दुकान पर जाकर राजनीतिक चर्चा में लीन हो जाता है आदि आदि। उसे एक भ्रम सा हो जाता है कि उसने अपनी लाइफ को बैलेंस कर लिया। पर सवाल यह है कि क्या इससे बोरियत मिटती है, क्योंकि वह खेल, वह पिक्चर वहां भी नयापन तो कुछ होता नहीं, कोई भी चीज या काम दोहरायेंगे तो एक समय बाद उसमें भी बोरियत आना शुरू हो जायेगी। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि रोज नया कैसे करेंगे और रोज नया कहां से लायेंगे। इसलिए काम तो पुराना ही होगा और उसे करना भी है, क्योंकि जीवन उस पर निर्भर करता है। सवाल महत्वपूर्ण है कि ऐसे में करें क्या। इसका एकमात्र जवाब है कि काम भले ही पुराना हो, लेकिन तुम खुद तो रोज नये हो सकते हो। बस इन शब्दों में ही बोरियत का समाधान छिपा हुआ है। एक गृहिणी को देखिये, सुबह की चाय बनाने से लेकर रात को बरतन साफ कर समेट कर रखने तक जितना भी काम वह करती है, करीब-करीब समान ही होता है। पर उसने कभी शिकायत की है कि वह बोर हो गई है।

    बल्कि वह खुद रोज नये उत्साह से सुबह जुट जाती है। यह गहरे दृष्टिकोण वाली बात है और अपना मंतव्य बदलने वाली बात भी कि हम जो काम करते हैं, उसमें हमें नया होना चाहिये। जैसे कोई शिक्षक है, क्लास लेने जा रहा है, तो वही सब्जेक्ट जो बरसों से पढ़ा रहा है, वही छात्र जो महीनों से सामने हैं, वही कमरा, वही कॉलेज या स्कूल। पर जब वह पढ़ाने जाये तो एप्रोच नई कर सकता है। पढ़ाने के कंटेंट की प्रस्तुति में बदलाव कर दो, कुछ नये तरीक से पढ़ाना शुरू कर दो, छात्रों को भी अच्छा लगेगा और खुद शिक्षक को भी मजा आयेगा। जो मालूम है वह पारंपरिक तरीके से पढ़ाने की बजाय उसमें कुछ नयापन ले आओ, सब बेहतर हो जायेगा। हम लंच या डिनर करते हैं, तो औसतन सप्ताह में सब्जियां रिपीट होती ही हैं, दाल या हो कढ़ी हो सप्ताह में दो बार बन ही जाती है, आलू-टमाटर का सामना भी सप्ताह में एक या दो बार हो ही जाता है। अब रोज-रोज नई सब्जी तो कहां से बने। खाने में भी तो रिपीटीशन होता है। बहुत बार ऐसा होता है कि सब्जी सुबह अधिक बन जाती है तो गृहिणी वही सब्जी शाम को भी परोस देती है। इस स्थिति में असहज होने की जरूरत नहीं है, बल्कि यह सोच कर भोजन करिये कि सुबह क्या खाया था वह याद नहीं, या गत तीन-चार दिन में क्या खाया था वह याद नहीं। कई बार गृहणियां एक ही सब्जी को अलग-अलग रेसीपी से बनाती हैं, तो नयापन आ जाता है। यहां महत्वपूर्ण समझ वाली बात यह है कि हम जो करते हैं, उसे पुराना मान कर ही यदि करते हैं, तो उसमें रस नहीं ले सकते। जब भी काम पर जाओ तो यह काम करना है, इस मानसिकता के साथ मत जाओ, बल्कि यह सोच कर जाओ कि आज कुछ नया करना है। जब जीवन प्रति पल नया है, तो काम में हर दिन नया कुछ क्यों नहीं हो सकता। नया करना है, यह सोचने और करने में थोड़ी कठिनाई तो होगी, लेकिन जब आप सोचेंगे तो स्वाभाविक तौर पर आपको लगेगा कि आज यह नया हो सकता है, वह नया हो सकता है और यह स्थिति फिर बोरियत को ब्लॉक कर सकती है। जो लोग नियमित कार्य-चर्या को बोरियत वाली समझने लगते हैं, उनकी कार्य-उत्पादकता पर असर आने लगता है और काम की क्षमता घटने लगती है। वे बोरियत के नाम पर अपना समय बरबाद करते हैं, यह नियोक्ता के लिए हानिकारक तो है ही, खुद के लिए भी, क्योंकि आप अपने साथ न्याय नहीं कर पा रहे। हम जहां काम करते हैं, जितना वेतन आदि लेते हैं, उसकी तुलना में उतना कर के तो दिखायें। बोरियत के नाम पर हम हमारी कार्य-उत्पादकता घटा दें, तो यह खुद के साथ ही अन्याय होगा। आज हम अपने नियोक्ता के साथ कर रहे हैं, कल कोई हमारे साथ भी तो कर सकता है। अत: किसी भी संस्थान में कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों और खुद नियोक्ता के लिए महत्वपूर्ण है कि वह नियमित काम को बोरियत भरा न समझे बल्कि उस काम में प्रतिदिन कुछ नयापन तलाश करे और नये तरीके से करने की कोशिश करे। इससे काम में भी रस आयेगा, बोरियत भी नहीं होगी, कार्य उत्पादकता भी बढ़ेगी तथा हम अपने साथ नयाय भी कर पायेंगें। हम खुद प्रतिपल नया होने की क्षमता रखें तो जिंदगी स्वाभाविक रूप से प्रतिपल नई ही है।

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जीवन प्रति पल नया है

 हम जीवन में जब भी कोई काम करते हैं, तो प्रारंभ में उत्साह बना रहता है पर धीरे-धीरे वह काम टाइप्ड होने लगता है अर्थात वही रूटीन, वही काम और महसूस होता है कि उब पैदा हो रही है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि हम काम को किस तरह से लेते हैं, काम के प्रति हमारी सोच और दृष्टिकोण क्या है। जो काम रोज करना पड़े, तो बोरिंग होना प्रचारित कर दिया जाता है, पर क्या वस्तुत: ऐसा होता है। एक मानसिकता या सोच बन जाती है कि रोज फैक्ट्री जाओ, आफिस जाओ, स्कूल-कॉलेज जाओ और यहां तक कि दुकान पर भी जाओ, मजदूरी करो, रोज वही काम करना है। एक बंधे हुए घेरे में एक उसी तरह के रूटीन में। जब सब कुछ हर दिन रिपीट होता है तो बोरियत जैसी स्थिति चर्चा में आ जाती है। लोग कहने लगते हैं कि सब कुछ रूटीन है, नया कुछ नहीं है बल्कि बोरियत सी हो रही है। यहां सोचने वाली बात यह है कि रोज-रोज तो काम बदला भी नहीं जा सकता, बदलेंगे तो नया काम मिलेगा कहां। मान लो बदल भी लिया, तो जहां जा रहे हैं, वहां भी काम तो करना ही है और वह काम पहले ही दिन नया होगा बाकी तो वही रिपीट होना है। अर्थात बदलाव के बाद भी जहां गये वहां भी दो-तीन दिन बाद रूटीन लगने लगता है या बोरियत जैसा फिर लगने लगता है। उबाने जैसा हो गया है, यह कहा जाता है। अब जो बोरियत प्रचारित की जाती है, उससे कैसे निपटा जाये। इसका पहला रास्ता तो सामान्यत: यह अपनाया जाता है कि इधर बोरियत शुरू हुई और उधर उसे भुलाने या उससे निपटने के कुछ प्रयास करते रहो। जैसे दिनभर आदमी काम करता रहता है, बोरियत होती है तो शाम को घर जाकर टीवी देखने लगता है, छोटे बच्चे हैं तो उनके साथ खेलने लगता है, या आस-पड़ौस की किसी दुकान पर जाकर राजनीतिक चर्चा में लीन हो जाता है आदि आदि। उसे एक भ्रम सा हो जाता है कि उसने अपनी लाइफ को बैलेंस कर लिया। पर सवाल यह है कि क्या इससे बोरियत मिटती है, क्योंकि वह खेल, वह पिक्चर वहां भी नयापन तो कुछ होता नहीं, कोई भी चीज या काम दोहरायेंगे तो एक समय बाद उसमें भी बोरियत आना शुरू हो जायेगी। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि रोज नया कैसे करेंगे और रोज नया कहां से लायेंगे। इसलिए काम तो पुराना ही होगा और उसे करना भी है, क्योंकि जीवन उस पर निर्भर करता है। सवाल महत्वपूर्ण है कि ऐसे में करें क्या। इसका एकमात्र जवाब है कि काम भले ही पुराना हो, लेकिन तुम खुद तो रोज नये हो सकते हो। बस इन शब्दों में ही बोरियत का समाधान छिपा हुआ है। एक गृहिणी को देखिये, सुबह की चाय बनाने से लेकर रात को बरतन साफ कर समेट कर रखने तक जितना भी काम वह करती है, करीब-करीब समान ही होता है। पर उसने कभी शिकायत की है कि वह बोर हो गई है।

बल्कि वह खुद रोज नये उत्साह से सुबह जुट जाती है। यह गहरे दृष्टिकोण वाली बात है और अपना मंतव्य बदलने वाली बात भी कि हम जो काम करते हैं, उसमें हमें नया होना चाहिये। जैसे कोई शिक्षक है, क्लास लेने जा रहा है, तो वही सब्जेक्ट जो बरसों से पढ़ा रहा है, वही छात्र जो महीनों से सामने हैं, वही कमरा, वही कॉलेज या स्कूल। पर जब वह पढ़ाने जाये तो एप्रोच नई कर सकता है। पढ़ाने के कंटेंट की प्रस्तुति में बदलाव कर दो, कुछ नये तरीक से पढ़ाना शुरू कर दो, छात्रों को भी अच्छा लगेगा और खुद शिक्षक को भी मजा आयेगा। जो मालूम है वह पारंपरिक तरीके से पढ़ाने की बजाय उसमें कुछ नयापन ले आओ, सब बेहतर हो जायेगा। हम लंच या डिनर करते हैं, तो औसतन सप्ताह में सब्जियां रिपीट होती ही हैं, दाल या हो कढ़ी हो सप्ताह में दो बार बन ही जाती है, आलू-टमाटर का सामना भी सप्ताह में एक या दो बार हो ही जाता है। अब रोज-रोज नई सब्जी तो कहां से बने। खाने में भी तो रिपीटीशन होता है। बहुत बार ऐसा होता है कि सब्जी सुबह अधिक बन जाती है तो गृहिणी वही सब्जी शाम को भी परोस देती है। इस स्थिति में असहज होने की जरूरत नहीं है, बल्कि यह सोच कर भोजन करिये कि सुबह क्या खाया था वह याद नहीं, या गत तीन-चार दिन में क्या खाया था वह याद नहीं। कई बार गृहणियां एक ही सब्जी को अलग-अलग रेसीपी से बनाती हैं, तो नयापन आ जाता है। यहां महत्वपूर्ण समझ वाली बात यह है कि हम जो करते हैं, उसे पुराना मान कर ही यदि करते हैं, तो उसमें रस नहीं ले सकते। जब भी काम पर जाओ तो यह काम करना है, इस मानसिकता के साथ मत जाओ, बल्कि यह सोच कर जाओ कि आज कुछ नया करना है। जब जीवन प्रति पल नया है, तो काम में हर दिन नया कुछ क्यों नहीं हो सकता। नया करना है, यह सोचने और करने में थोड़ी कठिनाई तो होगी, लेकिन जब आप सोचेंगे तो स्वाभाविक तौर पर आपको लगेगा कि आज यह नया हो सकता है, वह नया हो सकता है और यह स्थिति फिर बोरियत को ब्लॉक कर सकती है। जो लोग नियमित कार्य-चर्या को बोरियत वाली समझने लगते हैं, उनकी कार्य-उत्पादकता पर असर आने लगता है और काम की क्षमता घटने लगती है। वे बोरियत के नाम पर अपना समय बरबाद करते हैं, यह नियोक्ता के लिए हानिकारक तो है ही, खुद के लिए भी, क्योंकि आप अपने साथ न्याय नहीं कर पा रहे। हम जहां काम करते हैं, जितना वेतन आदि लेते हैं, उसकी तुलना में उतना कर के तो दिखायें। बोरियत के नाम पर हम हमारी कार्य-उत्पादकता घटा दें, तो यह खुद के साथ ही अन्याय होगा। आज हम अपने नियोक्ता के साथ कर रहे हैं, कल कोई हमारे साथ भी तो कर सकता है। अत: किसी भी संस्थान में कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों और खुद नियोक्ता के लिए महत्वपूर्ण है कि वह नियमित काम को बोरियत भरा न समझे बल्कि उस काम में प्रतिदिन कुछ नयापन तलाश करे और नये तरीके से करने की कोशिश करे। इससे काम में भी रस आयेगा, बोरियत भी नहीं होगी, कार्य उत्पादकता भी बढ़ेगी तथा हम अपने साथ नयाय भी कर पायेंगें। हम खुद प्रतिपल नया होने की क्षमता रखें तो जिंदगी स्वाभाविक रूप से प्रतिपल नई ही है।


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