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09-07-2025

क्या एंटी एजिंग थेरेपीज को करना चाहिये बैन?

  •  अभिनेत्री शेफाली जरीवाला की असमय मौत ने कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल और एंटी-एजिंग मेडिसन के दुष्प्रभावों पर सवाल उठाए हैं। एक्सपर्ट्स ने कहा कि एंटी-एजिंग दवाएं और इंजेक्शन तेजी से पापूलर हो रहे हैं, इनसे सीनियस हैल्थ इशूज हो सकते हैं। वर्ष 2002 के मशहूर म्यूजिक वीडियो कांटा लगा से लोकप्रिय हुईं शेफाली की 27 जून को मुंबई में 42 वर्ष की आयु में मौत हो गई थी। शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, उनकी मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया जा रहा है। हालांकि, यह भी सामने आया है कि वह एंटी-एजिंग इंजेक्शन का कॉकटेल ले रही थीं। जिस दिन उनका निधन हुआ वे उपवास पर थी और स्वयं ने ही इंजेक्शन लगा लिया। एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एंटी-एजिंग दवाएं बहुत लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन इनका नियमन नहीं है। इनमें से कई उत्पादों की प्रभावशीलता के लिए वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हैं और लंबे समय तक उपयोग से हानिकारक दुष्प्रभाव हो सकते हैं। केरल स्टेट आईएमए के रिसर्च सेल के संयोजक डॉ. राजीव जयदेवन ने कहा कि एंटी-एजिंग कोई वैज्ञानिक शब्द नहीं है। ऐसे प्रोडक्ट्स प्राकृतिक उम्र बढऩे की प्रक्रिया को उलटते या रोकते नहीं हैं। कुछ दवाओं से त्वचा का रंग गोरा करना संभव है, लेकिन यह एंटी-एजिंग के समान नहीं है। पुलिस जांच के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि शेफाली स्किन व्हाइटनिंग और एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट, खासकर ग्लूटाथियोन और विटामिन सी का इस्तेमाल लगभग आठ साल से कर रही थीं। यह सब बिना किसी चिकित्सकीय निगरानी के चल रहा था। डॉ. जयदेवन ने बताया कि जब दवा को सीधे नस में इंजेक्शन के जरिए दिया जाता है, तो इसकी सांद्रता रक्त और ऊतकों में बहुत अधिक हो सकती है। ऐसे इंजेक्शनों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित करना जरूरी है। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस की रिपोर्ट्स का जिक्र किया, जहां ग्लूटाथियोन इंजेक्शनों में विषाक्त पदार्थ और गंभीर दुष्प्रभाव पाए गए।भारत में कॉस्मेटिक प्रोसीजर्स की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। हाल के आईएसएपीएस ग्लोबल सर्वे के अनुसार, इंडिया ब्यूटी और कॉस्मेटिक प्रोसीजर के लिए दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि ऐसी दवाओं का नियमन जरूरी है। अगर इनके सुरक्षा और प्रभावशीलता के सबूत नहीं हैं और ये हानिकारक हो सकती हैं, तो इन पर प्रतिबंध लगना चाहिए। यह नियमन अन्य सप्लीमेंट्स पर भी लागू होने चाहिए जो मांसपेशियों को बनाने के अलावा कई अन्य कारणों से शरीर में पहुंचाए जाते हैं।

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क्या एंटी एजिंग थेरेपीज को करना चाहिये बैन?

 अभिनेत्री शेफाली जरीवाला की असमय मौत ने कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल और एंटी-एजिंग मेडिसन के दुष्प्रभावों पर सवाल उठाए हैं। एक्सपर्ट्स ने कहा कि एंटी-एजिंग दवाएं और इंजेक्शन तेजी से पापूलर हो रहे हैं, इनसे सीनियस हैल्थ इशूज हो सकते हैं। वर्ष 2002 के मशहूर म्यूजिक वीडियो कांटा लगा से लोकप्रिय हुईं शेफाली की 27 जून को मुंबई में 42 वर्ष की आयु में मौत हो गई थी। शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, उनकी मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया जा रहा है। हालांकि, यह भी सामने आया है कि वह एंटी-एजिंग इंजेक्शन का कॉकटेल ले रही थीं। जिस दिन उनका निधन हुआ वे उपवास पर थी और स्वयं ने ही इंजेक्शन लगा लिया। एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एंटी-एजिंग दवाएं बहुत लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन इनका नियमन नहीं है। इनमें से कई उत्पादों की प्रभावशीलता के लिए वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हैं और लंबे समय तक उपयोग से हानिकारक दुष्प्रभाव हो सकते हैं। केरल स्टेट आईएमए के रिसर्च सेल के संयोजक डॉ. राजीव जयदेवन ने कहा कि एंटी-एजिंग कोई वैज्ञानिक शब्द नहीं है। ऐसे प्रोडक्ट्स प्राकृतिक उम्र बढऩे की प्रक्रिया को उलटते या रोकते नहीं हैं। कुछ दवाओं से त्वचा का रंग गोरा करना संभव है, लेकिन यह एंटी-एजिंग के समान नहीं है। पुलिस जांच के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि शेफाली स्किन व्हाइटनिंग और एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट, खासकर ग्लूटाथियोन और विटामिन सी का इस्तेमाल लगभग आठ साल से कर रही थीं। यह सब बिना किसी चिकित्सकीय निगरानी के चल रहा था। डॉ. जयदेवन ने बताया कि जब दवा को सीधे नस में इंजेक्शन के जरिए दिया जाता है, तो इसकी सांद्रता रक्त और ऊतकों में बहुत अधिक हो सकती है। ऐसे इंजेक्शनों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित करना जरूरी है। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस की रिपोर्ट्स का जिक्र किया, जहां ग्लूटाथियोन इंजेक्शनों में विषाक्त पदार्थ और गंभीर दुष्प्रभाव पाए गए।भारत में कॉस्मेटिक प्रोसीजर्स की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। हाल के आईएसएपीएस ग्लोबल सर्वे के अनुसार, इंडिया ब्यूटी और कॉस्मेटिक प्रोसीजर के लिए दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि ऐसी दवाओं का नियमन जरूरी है। अगर इनके सुरक्षा और प्रभावशीलता के सबूत नहीं हैं और ये हानिकारक हो सकती हैं, तो इन पर प्रतिबंध लगना चाहिए। यह नियमन अन्य सप्लीमेंट्स पर भी लागू होने चाहिए जो मांसपेशियों को बनाने के अलावा कई अन्य कारणों से शरीर में पहुंचाए जाते हैं।


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