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07-06-2025

मॉर्डन वर्कफोर्स Value ड्रिवन भी है और Future फोकस्ड भी

  •  इंडियन प्रोफेशनल्स जॉब क्विट किये बिना ही नये जॉब रोल्स ले रहे हैं। माइकल पेज टेलेंट ट्रेंड्स 2025 रिपोर्ट में देशभर से 3000 प्रोफेशनल्स को शामिल किया गया। रिपोर्ट यह हाइलाइट कर रही है कि ईयर-ऑन-ईयर लेवल पर एक्टिव जॉब सीकिंग 65 प्रतिशत से 68 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इंटरनल अपॉच्र्यूनिटीज को ही यंग प्रोफेशनल्स लेने का प्रयास कर रहे हैं। यानि कि वे कम्पनी के लेवल पर ही सैलरी नेगोशिएशंस कर रहे हैं और न्यू जॉब रोल्स लेने का प्रयास कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार करीब 62 प्रतिशत प्रोफेशनल्स ने सैलरी बढ़ाने केलिये नेगोशिएट किया और इनमें से 37 प्रतिशत सक्सेसफुल भी रहे। यह गत वर्ष से करीब पांच प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जॉब सीकिंग की उच्च दर इंटरनल कॅरियर प्रोगे्रशन अपॉच्र्यूनिटीज के प्रति एक शिफ्ट है। प्रोएक्टिव कॅरियर मैनेजमेंट के प्रति सोच का बदलाव कहा जा सकता है। एक कम्पनी में ही यदि बेहतर जॉब अवसर मिल जाये तो जॉब क्विटक्यों करना। इस प्रकार की सोच दर्शाती है। सर्वे में शामिल 27 प्रतिशत इंडीविज्युअल्स चेंजिंग रोल्स के प्रति सजग थे और इससे कॅरियर एडवांसमेंट को लेकर उनका बैलेंसिंग एक्ट नजर आता है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि अनिश्चित इकोनॉमी में कॅरियर की चिंता ज्यादा होती है। मॉर्डन वर्कफोर्स वैल्यू ड्रिवन भी है और फ्यूचर फोकस्ड भी। आजकल लॉयल्टी बताने के लिये जॉब संतुष्टि ही एक मात्र पहलू नहीं है बल्कि प्रोफेशनल्स निरंतर ग्रोथ स्ट्रेटजी का आकलन करते रहते हैं। माइकल पेज इंडिया एंड सिंगापुर के सीनियर मैनेजिंग डायरेक्टर के अनुसार एम्प्लॉईज अपने रोल्स में मीनिंग, लांग टर्म रेलेवेंस देखने लगे हैं। अब यदि एम्प्लॉयर इतनी गम्भीरता से उसकी बात को नहीं सुने या सोचे तो टेलेंट को लूज कर देगा। रिपोर्ट में यह भी हाइलाइट किया गया है कि इंडियन कम्पनियों में जेनएआई टूल्स जैसे चैटजीपीटी, माइक्रासॉफ्ट कोपायलेट या मिडजर्नी, का उपयोग बढ़े ताकि प्रोडक्टिविटी को बढ़ाया जा सके। 64 प्रतिशत पेशेवरों ने कहा कि वे वर्कप्लेस में एआई टूल्स का यूज कर रहे हैं। करीब एक वर्ष पूर्व के 47 प्रतिशत से यह ज्यादा संख्या है। ऐसे में इंडिया स्वयं को 45 प्रतिशत के ग्लोबल एवरेज से आगे रख रहा है। गौरतलब है कि एशिया-पैसिफिक एवेरज करीब 54 फीसदी है। वर्तमान में करीब 31 प्रतिशत पेशेवर एआई टूल्स का उपयोग करने में स्वयं को सक्षम पा रहे हैं। अब यदि कम्पनियों को इस गैप को भरना है तो एआई रेडीनैस को बढ़ावा देना होगा। एम्प्लॉइज को ट्रेन करना होगा, ताकि वे मौजूदा टेलेंट को और बढ़ा सकें।

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मॉर्डन वर्कफोर्स Value ड्रिवन भी है और Future फोकस्ड भी

 इंडियन प्रोफेशनल्स जॉब क्विट किये बिना ही नये जॉब रोल्स ले रहे हैं। माइकल पेज टेलेंट ट्रेंड्स 2025 रिपोर्ट में देशभर से 3000 प्रोफेशनल्स को शामिल किया गया। रिपोर्ट यह हाइलाइट कर रही है कि ईयर-ऑन-ईयर लेवल पर एक्टिव जॉब सीकिंग 65 प्रतिशत से 68 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इंटरनल अपॉच्र्यूनिटीज को ही यंग प्रोफेशनल्स लेने का प्रयास कर रहे हैं। यानि कि वे कम्पनी के लेवल पर ही सैलरी नेगोशिएशंस कर रहे हैं और न्यू जॉब रोल्स लेने का प्रयास कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार करीब 62 प्रतिशत प्रोफेशनल्स ने सैलरी बढ़ाने केलिये नेगोशिएट किया और इनमें से 37 प्रतिशत सक्सेसफुल भी रहे। यह गत वर्ष से करीब पांच प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जॉब सीकिंग की उच्च दर इंटरनल कॅरियर प्रोगे्रशन अपॉच्र्यूनिटीज के प्रति एक शिफ्ट है। प्रोएक्टिव कॅरियर मैनेजमेंट के प्रति सोच का बदलाव कहा जा सकता है। एक कम्पनी में ही यदि बेहतर जॉब अवसर मिल जाये तो जॉब क्विटक्यों करना। इस प्रकार की सोच दर्शाती है। सर्वे में शामिल 27 प्रतिशत इंडीविज्युअल्स चेंजिंग रोल्स के प्रति सजग थे और इससे कॅरियर एडवांसमेंट को लेकर उनका बैलेंसिंग एक्ट नजर आता है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि अनिश्चित इकोनॉमी में कॅरियर की चिंता ज्यादा होती है। मॉर्डन वर्कफोर्स वैल्यू ड्रिवन भी है और फ्यूचर फोकस्ड भी। आजकल लॉयल्टी बताने के लिये जॉब संतुष्टि ही एक मात्र पहलू नहीं है बल्कि प्रोफेशनल्स निरंतर ग्रोथ स्ट्रेटजी का आकलन करते रहते हैं। माइकल पेज इंडिया एंड सिंगापुर के सीनियर मैनेजिंग डायरेक्टर के अनुसार एम्प्लॉईज अपने रोल्स में मीनिंग, लांग टर्म रेलेवेंस देखने लगे हैं। अब यदि एम्प्लॉयर इतनी गम्भीरता से उसकी बात को नहीं सुने या सोचे तो टेलेंट को लूज कर देगा। रिपोर्ट में यह भी हाइलाइट किया गया है कि इंडियन कम्पनियों में जेनएआई टूल्स जैसे चैटजीपीटी, माइक्रासॉफ्ट कोपायलेट या मिडजर्नी, का उपयोग बढ़े ताकि प्रोडक्टिविटी को बढ़ाया जा सके। 64 प्रतिशत पेशेवरों ने कहा कि वे वर्कप्लेस में एआई टूल्स का यूज कर रहे हैं। करीब एक वर्ष पूर्व के 47 प्रतिशत से यह ज्यादा संख्या है। ऐसे में इंडिया स्वयं को 45 प्रतिशत के ग्लोबल एवरेज से आगे रख रहा है। गौरतलब है कि एशिया-पैसिफिक एवेरज करीब 54 फीसदी है। वर्तमान में करीब 31 प्रतिशत पेशेवर एआई टूल्स का उपयोग करने में स्वयं को सक्षम पा रहे हैं। अब यदि कम्पनियों को इस गैप को भरना है तो एआई रेडीनैस को बढ़ावा देना होगा। एम्प्लॉइज को ट्रेन करना होगा, ताकि वे मौजूदा टेलेंट को और बढ़ा सकें।


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