अप्रेल-जून 2025 क्वार्टर के लिए कंपनियों द्वारा घोषित किए गए फाइनेंशियल रिजल्ट्स के कमजोर रहने के कारण बड़ी संख्या में कंपनियों के शेयरों में हाल ही के दिनों में बड़ी बिकवाली देखी गई है। वहीं देखा जाए तो कंपनियों की सेल्स ग्रोथ में कमजोरी का यह ट्रेंड फाइनेंशियल ईयर 2024-25 से ही शुरू हो गया था जो अब भी जारी है। असल में किसी भी कंपनी के लिए प्रोफिट ग्रोथ के 2 प्रमुख आधार होते हैं। पहला है बढ़ती सेल्स यानी यदि कंपनी अधिक प्रोडक्ट्स या सर्विसेज बेचती है तो उसके प्रोफिट में भी ग्रोथ की संभावना रहती है। दूसरा है मार्जिन एक्सपेंशन यानि यदि कंपनी अपने समान प्रोडक्ट्स या नए प्रोडक्ट्स को ऊंचे प्रोफिट मार्जिन पर बेचती है तो उसके प्रोफिट भी बढ़ते हैं। आम तौर पर इकोनोमी में Boom के दौरान कंपनियों की सेल्स व प्रोफिट मार्जिन, दोनों बढ़ते हैं। वहीं Efficiency-Led Profit Growth Cylce के दौर में सेल्स ग्रोथ कमजोर बनी रहती है पर प्रोफिट मार्जिनों में बढ़ोतरी के कारण कंपनियों के प्रोफिट बढ़ते हैं। इसके अलावा कॉस्ट कंट्रोल के कारण भी कंपनियों की प्रोफिटेबिलिटी को इस दौर में सपोर्ट मिलता है। वर्तमान में इंडियन कंपनियां इसी Efficiency-Led Profit Growth Cycle में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर सेक्टरों की 2024-25 में रेवेन्यू ग्रोथ प्री-कोविड पीरियड में दर्ज की गई एवरेज सेल्स ग्रोथ से भी कम हो गई है। उदाहरण के तौर पर देखें तो कंस्ट्रक्शन मेटेरियल सेगमेंट की सेल्स प्री-कोविड यानि 2013-14 से 2018-19 के दौरान सालाना एवरेज 15 प्रतिशत की रेट से बढ़ी थी जबकि 2023-24 में यह 10 प्रतिशत रहने के बाद 2024-25 में घटकर मात्र 5 प्रतिशत ही रह गई है। ऑयल एंड गैस, कंज्यूमर सर्विसेज, मेटल्स, टेक्नोलॉजी आदि कई अन्य सेक्टरों में भी यही ट्रेंड है। इसके मायने यह हुए कि कोर्पोरेट इंडिया के प्रोफिट मार्जिन जहां लाइफटाइम लेवल्स पर हैं वहीं सेल्स ग्रोथ कमजोर पडऩे लगी है। इसके चलते कंपनियों की हाई प्रोफिट ग्रोथ डिलीवर करने की कैपेसिटी भी आगे चलकर कमजोर पड़ सकती है क्योंकि Sales Growth Led Profit Growth की अनुपस्थिति में Efficiency-Led Profit Growth कुछ समय तक ही प्रोफिट ग्रोथ को सपोर्ट कर सकती है। यदि यह स्थिति आगे चलकर सच होती है तो इंवेस्टरों को शेयर बाजारों में भी बड़ी वोलेटिलिटी के लिए तैयार रहना चाहिए।
