अमेरिका टैरिफ के कारण देश का झींगा (Shrimp) एक्सपोर्ट उद्योग गंभीर संकट से जूझ रहा है। भारतीय समुद्री खाद्य एक्सपोर्ट संघ (एसईएआई) ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के मद्देनजर सरकार से इस उद्योग के लिए आपात वित्तीय समर्थन मांगा है। संघ ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से संपर्क कर कहा है कि अमेरिकी टैरिफ की वजह से उद्योग को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। संघ ने सरकार से सस्ते कर्ज के जरिये कार्यशील पूंजी में 30 प्रतिशत की वृद्धि, ब्याज सहायता के जरिये मार्जिन की भरपाई और पैकेजिंग से पहले और बाद के कार्यों के लिए 240 दिन की कर्ज भुगतान की छूट का आग्रह किया है। एसईएआई के महासचिव के एन राघवन ने बताया, ‘‘करीब दो बिलियन डॉलर मूल्य के झींगा एक्सपोर्ट में गंभीर व्यवधान आ रहा है।’’ उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका ने जवाबी टैरिफ को 25 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है। भारत ने 2024 में अमेरिका को 2.8 बिलियन डॉलर मूल्य के झींगे का एक्सपोर्ट किया था और इस वर्ष अबतक 50 करोड़ डॉलर मूल्य का एक्सपोर्ट कर चुका है। राघवन ने कहा कि नए टैरिफ के कारण भारतीय समुद्री खाद्य उत्पाद चीन, वियतनाम और थाइलैंड की तुलना में काफी कम प्रतिस्पर्धी हो गए हैं, जिनपर केवल 20-30 प्रतिशत का अमेरिकी टैरिफ लगता है। उन्होंने चेतावनी दी कि ये एशियाई प्रतिस्पर्धी कीमतें कम करके अमेरिकी बाजार में हिस्सेदारी हासिल कर लेंगे, जबकि भारतीय एक्सपोर्टर मौजूदा खेप को दूसरे रास्ते से नहीं भेज सकते क्योंकि इससे अनुबंध उल्लंघन के लिए 40 प्रतिशत अतिरिक्त जुर्माना लगेगा। राघवन ने कहा, ‘‘एकमात्र रास्ता पांच नए बाजारों की खोज करना है, लेकिन इसमें समय लगेगा। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर तो हो गए हैं, लेकिन इसके क्रियान्वयन में समय लगेगा।’’ टैरिफ वृद्धि भारत के सबसे बड़े कृषि एक्सपोर्ट क्षेत्रों में से एक के लिए खतरा है। यह क्षेत्र तटीय राज्यों में लाखों लोगों को रोजगार और देश की विदेशी मुद्रा आय में महत्वपूर्ण योगदान देता है। वहीं तमिलनाडु के तिरुप्पुर में अमेरिका को एक्सपोर्ट करने वाले कई गारमेंट निर्माताओं ने उत्पादन रोक दिया है और कई अन्य कंपनियां अपने विकल्पों पर विचार कर रही हैं। उद्योग प्रतिनिधियों ने यह जानकारी दी। उद्योग प्रतिनिधियों ने कहा कि अमेरिकी खरीदारों के निर्णय के अनुसार ऑर्डरों के क्रियान्वयन पर भी रोक लगा दी गई है। उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत शु्ल्क लगाए जाने के बाद अमेरिका को कपड़ा और गारमेंट एक्सपोर्टर देखो और इंतजार करो की स्थिति में हैं — यानी तुरंत कोई बड़ा कदम नहीं उठा रहे, बल्कि पहले देखना चाहते हैं कि आगे हालात कैसे बदलते हैं, ताकि उसी के अनुसार फैसला लिया जा सके। भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद तिरुप्पुर की ये अब अपने कारोबार के लिए ब्रिटेन के बाज़ार से अच्छी उम्मीदें लगा रही हैं। तिरुप्पुर को देश का निटवियर हब भी कहा जाता है। उद्योग प्रतिनिधियों ने बताया कि अमेरिकी बाज़ार को होने वाला वस्त्र एक्सपोर्ट सालाना लगभग 12,000 करोड़ रुपये का होता है, जो कि तिरुप्पुर और आसपास के क्षेत्रों से होने वाले कुल 45,000 करोड़ रुपये के वार्षिक एक्सपोर्ट का करीब 30 प्रतिशत है। तिरुप्पुर एक्सपोर्टर संघ (टीईए) के अध्यक्ष के.एम. सुब्रमण्यन ने बताया, (तिरुप्पुर क्षेत्र से) कुल एक्सपोर्ट लगभग 45,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 30 प्रतिशत (12,000 करोड़ रुपये) अमेरिकी बाजार को होता है। हमें उम्मीद है कि 50 प्रतिशत कारोबार, यानी लगभग 6,000 करोड़ रुपये, प्रभावित होगा। टीईए के सदस्यों ने कहा कि तत्काल उपाय के तौर पर, अमेरिकी बाजार को एक्सपोर्ट करने वाले कुछ गारमेंट निर्माताओं ने अपने कारखानों में उत्पादन रोक दिया है। कुछ अभी भी स्थिति से निपटने के लिए अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। सुब्रमण्यन ने कहा, फिलहाल, उन्होंने (अमेरिका को एक्सपोर्ट करने वाले निर्माताओं ने) उत्पादन रोक दिया है। इसका हम पर (व्यापार पर) गंभीर प्रभाव पड़ेगा। हम अगले दो हफ्तों तक प्रतीक्षा करें और देखें की रणनीति अपना रहे हैं।