महात्मा गांधी ने कहा था ....India lives in its villages...। आज के दौर में कह सकते हैं सिर्फ रहता ही नहीं है बल्कि बढ़ता भी है। भारत के जीडीपी में प्राइवेट कंजम्पशन का शेयर 57 परसेंट है और इसमें भी ग्रोथ ड्राइवर इंडिया नहीं भारत है। एमपीसीई का डेटा भी कहता है कि गांवों में कंजम्पशन ग्रोथ शहरों से ज्यादा है। इकोनॉमिस्ट्स का कहना है कि रूरल कंजम्पशन भारत की ग्रोथ स्टोरी में एक सिल्वरलाइन है। पिछले सप्ताह जारी तिमाही आंकड़ों के अनुसार जीडीपी की ग्रोथ रेट 7.4 परसेंट रही। सिटीबैंक ने रिसर्च नोट के अनुसार इंफ्लेशन एडजस्टेड कंजम्पशन ग्रोथ 7.1 परसेंट रही जो साल की जीडीपी ग्रोथ 6.5 परसेंट से ज्यादा रही है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के रिसर्च हैड ए. प्रसन्ना ने भी कहा है कि रूरल डिमांड की परफॉर्मेन्स अच्छी रही है जबकि अर्बन डिमांड अभी भी सी-सॉ का खेल कर रही है। मॉनसून के जल्दी सक्रिय हो जाना वैसे तो खुशखबर है लेकिन मौसम विभाग ने कहा है कि यदि पूरे चौमासे में एक जैसी बारिश होती है तो रूरल इकोनॉमी को बहुत फायदा होगा। अच्छे मॉनसून से रूरल इकोनॉमी को टर्बो ग्रोथ मिलेगी और महंगाई घटेगी। एनेलिस्ट्स के डेटा के अनुसार इंफ्लेशन एडजस्टेड रूरल वेजेज (मुद्रास्फीति-समायोजित ग्रामीण मजदूरी) की ग्रोथ चार साल में सबसे अधिक है। जेपी मॉर्गन की एक रिपोर्ट कहती है कि मनरेगा में नौकरियों की डिमांड हाल के महीनों में घटी है।
टेबल 1 से पता चलता है कि 2031 तक भारत का जीडीपी 8.39 लाख करोड़ डॉलर यानी 720 लाख करोड़ का हो जाएगा। वर्ष 2021 में यह 3.29 ट्रिलियन डॉलर था। इस तरह से देश के जीडीपी में जो 5.10 ट्रिलियन डॉलर का इजाफा होगा उसमें 2.80 ट्रिलियन डॉलर अकेले गांव (विकसित और अन्य) का योगदान होगा। इसके उलट अर्बन इंडिया जिसमें बूम टाउन और मेट्रो शामिल हैं केवल 2.3 ट्रिलियन डॉलर का योगदान देंगे। एएनजेड के इकोनॉमिस्ट धीरज निम कहते हैं कि पिछले दो वित्तीय वर्ष में भारत में कंजम्पशन ग्रोथ बढ़ी है जबकि इंवेस्टमेंट ग्रोथ घटी है...आगे भी यही पैटर्न बने रहने की उम्मीद है। टेबल 2 के अनुसार कोविड के बाद से कुल वर्कफोर्स में एग्रीकल्चर सैक्टर का शेयर बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2018-19 में यह 42.5 परसेंट के लो लेवल से वित्त वर्ष 2023-24 में 46.1 परसेंट हो गया। यानी ज्यादा लोग अब खेती को प्रॉफेशन बना रहे हैं। इससे भी रूरल इकोनॉमी के बेहतर हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। एनेलिस्ट कहते हैं कि कंजम्पशन ग्रोथ के लिहाज से रूरल डिमांड आशा की किरण हो सकती है...और कंजम्पशन की ग्रोथ जीडीपी ग्रोथ को मात दे सकती है। आईडीएफसी फस्र्ट बैंक की चीफ इकोनॉमिस्ट गौरा सेन गुप्ता ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ और अर्बन कंजम्पसन के आउटलुक पर अनिश्चितता के बीच भारत का कॉर्पोरेट कैपेक्स संभवत: अनिश्चित बना रहेगा। हालांकि अच्छी मॉनसून बारिश, सरकारी खर्च में बढ़ोतरी और रिजर्व बैंक द्वारा दरों में कटौती इस ग्रोथ पर पडऩे वाले कुछ प्रभावों को संतुलित कर सकती है।

