भारत में घर खरीदना अब आम आदमी के लिए पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है। प्रॉपटेक कंपनी मैजिकब्रिक्स की नई रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 में भारत काऔसत प्राइस-टू-इनकम (पी/आई) रेशियो 8.8 तक पहुंच गया है, जो 2024 में 7.5 था। इसका मतलब यह है कि एक औसत भारतीय परिवार को सामान्य घर को खरीदने के लिए अपनी सालाना आय का करीब 9 गुना खर्च करना पड़ता है। यह भी कह सकते हैं कि सामान्य घर की औसत प्राइस 9 साल की इनकम के बराबर हो गई है। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि घरों की प्राइस इनकम ग्रोथ के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में यह असंतुलन और भी अधिक गंभीर है। रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में पी/आई रेशियो 15.1 है, जबकि दिल्ली में यह 12.3 तक पहुंच चुका है। आमतौर पर, 5 या उससे कम का पी/आई रेशियो सही माना जाता है, जिससे यह स्पष्ट है कि देश के इन प्रमुख शहरों में मिडिल क्लास के लिए घर खरीदना अत्यधिक महंगा हो गया है। रिपोर्ट बताती है कि इन शहरों में औसत परिवार को एक मीडियम प्राइस वाले घर को खरीदने के लिए अपनी 10 से 15 साल की पूरी आय खर्च करनी होगी। इस बढ़ती अस्थिरता की एक प्रमुख वजह डेवलपर्स द्वारा अफोर्डेबल हाउसिंग के बजाय लक्जरी हाउसिंग को प्राथमिकता देना है। टियर-1 शहरों में 50 लाख से कम कीमत वाले घरों की आपूर्ति 2025 की दूसरी तिमाही में 31 परसेंट तक घट गई है। वहीं गुरुग्राम में केवल 3 परसेंट और नोएडा में 11 परसेंट लिस्टिंग ही 75 लाख से कम की हैं। इस स्थिति ने बाजार केवल सबसे ज्यादा कमाई वाले 5 से 10 परसेंट बायर्स के लिए ही रह गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में ईएमआई-टू-इनकम रेशियो 2024 में 61 परसेंट तक पहुंच गया है, जो 2020 में 46 परसेंट था। इसका अर्थ है कि एक औसत परिवार अब अपनी मासिक आय का आधे से ज्यादा हिस्सा होम लोन की किश्तों में खर्च कर रहा है। रिपोर्ट ने इस स्थिति को एक्सट्रीमिस्ट ईएमआई जोन या अतिभीषण ईएमआई कहा है, जिसमें वित्तीय अस्थिरता का खतरा लगातार बढ़ रहा है। सस्ती और कॉम्पैक्ट हाउसिंग की सप्लाई में भी भारी कमी देखी जा रही है। देशभर में केवल 8 परसेंट हाउसिंग यूनिट्स 750 वर्ग फुट से कम क्षेत्रफल की हैं, जबकि इतने क्षेत्र में बने घर अब टियर-1 शहरों में 75 लाख से 1.2 करोड़ तक में बिक रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारत का रियल एस्टेट बाजार 2030 तक $985.8 बिलियन तक पहुंच सकता है, लेकिन यह ग्रोथ मुख्य रूप से मिड और लक्जरी सेगमेंट से आएगी। वहीं, शहरी भारत को 2030 तक करीब 1 करोड़ अफोर्डेबल घरों की और 2.5 करोड़ नए सस्ते घरों की जरूरत पड़ेगी।