एनीमल स्पिरिट यानी जोश...जुनून। भारत सरकार अपने कैपेक्स प्लान को रिव्यू कर रही है। सरकार अब अपने कैपेक्स को केवल सडक़ों और रेलवे तक सीमित न रखते हुए अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर, पोर्ट्स और एयरपोर्ट्स तक को इसमें शामिल करने के प्लान पर काम कर रही है। वित्त वर्ष 2025-26 के 11.21 लाख करोड़ के कैपेक्स बजट को को बेहतर तरीके से खर्च करने के लिए सरकार जल्दी ही संबंधित मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श शुरू करेगी। वित्त मंत्रालय जल्द ही शहरी विकास, पोत परिवहन, बंदरगाह और नागरिक उड्डयन मंत्रालयों के साथ बैठकें कर सकता है ताकि इन क्षेत्रों में निवेश के नए अवसरों की पहचान की जा सके। वर्तमान में सडक़ों और रेलवे पर कुल कैपेक्स का लगभग 47 परसेंट हिस्सा खर्च होता है। लेकिन पिछले दस साल में इन सैक्टर में हुए भारी निवेश के कारण मैच्यॉर हो रहे है और इसका रिटर्न लॉन्ग टर्म में मिलेगा। इसलिए, अब निवेश के अन्य क्षेत्रों की पहचान कर रही है। सरकारी अधिकारियों का यह भी कहना है कि अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर, बंदरगाह, शिपिंग और एयरपोर्ट्स जैसे क्षेत्रों में अब कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ाने का समय आ गया है। इससे शॉर्ट टर्म में रिटर्न मिलने में आसानी होगी और पब्लिक इंवेस्टमेंट का दायरा भी बढ़ पाएगा। सरकार की चिंता स्लो प्राइवेट इंवेस्टमेंट भी है। सरकारी डेटा के अनुसार वित्त वर्ष 24 में प्राइवेट सेक्टर की कैपिटल फॉर्मेशन में हिस्सेदारी 33 परसेंट रह गई जो वित्त वर्ष 20 में 37 परसेंट थी। इसके उलट सरकार और पीएसयू का शेयर इस अवधि में बढक़र 25 परसेंट हो गया। गर्म जून में ठंड: भारतीय कंपनियों ने वित्त वर्ष 2025-26 की शुरुआत धीमी रफ्तार से की है और इनका नए प्रोजेक्ट्स में इंवेस्टमेंट पांच वर्ष के सबसे निचले स्तर में से एक पर आ गई है। जून तिमाही सामान्यत: अपेक्षाकृत शांत होती है, लेकिन इस बार गिरावट असामान्य रूप से तेज रही। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के प्रोजेक्ट ट्रैकिंग डाटाबेस के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देशभर में केवल 4.1 लाख करोड़ के नए प्रॉजेक्ट्स ही घोषित किए गए। यह आंकड़ा कोविड लॉकडाउन के दौरान वर्ष 2020-21 की शुरुआती तीन तिमाहियों और 2024-25 की पहली तिमाही (जब आम चुनाव हुए थे) के बाद का सबसे कम है। सरकारी ने इस दौरान केवल 0.5 लाख करोड़ के प्रॉजेक्ट्स ही हाथ में लिए। प्राइवेट कैपेक्स भी केवल 3.5 लाख करोड़ का रहा, जो पिछले चार तिमाहियों की तुलना में सबसे कम है। हालांकि नए प्रॉजेक्ट्स में से 95 परसेंट मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के थे। लेकिन यह भी पिछले दो वर्ष की तुलना में कमज़ोर स्तर पर बना रहा। वित्त वर्ष 25 की चौथी तिमाही (मार्च तिमाही) में 6.8 लाख करोड़ के नए प्रॉजेक्ट्स घोषित हुए थे जो वित्त वर्ष की बाकी तीन तिमाहियों के कुल योग से भी अधिक था। संभव है कि इसी हाईग्रोथ के कारण वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में स्लो ग्रोथ दिख रही हो।
