भारत ने अपनी कुल 8.7 गीगावॉट परमाणु क्षमता का एक तिहाई हिस्सा पिछले एक दशक में जोड़ा है। वर्ष 2015 से 2024 के बीच भारत में 2.9 गीगावॉट की नई परमाणु बिजली क्षमता जोड़ी गई और इस लिहाज से ग्लोबल रैंकिंग में यह छठे स्थान पर रहा। इस दौरान चीन की परमाणु ऊर्जा कैपेसिटी में 32.9 गीगावॉट, साउथ कोरिया 8.6 गीगावॉट, रूस 6.7 गीगावॉट, यूएई 5.7 गीगावॉट और अमेरिका 3.7 गीगावॉट की बढ़ोतरी हुई। भारत ने पिछले दशक में अपनी कुल परमाणु क्षमता का लगभग एक तिहाई जोड़ा है, वहीं पाकिस्तान ने इसी अवधि में भारत जितनी ही परमाणु क्षमता जोड़ ली है — पाकिस्तान की कुल रिएक्टर क्षमता का 80 परसेंट इसी अवधि में जोड़ा गया। बांग्लादेश ने भी भारत से 20 परसेंट कम परमाणु क्षमता जोड़ी, लेकिन उसने अपने सभी रिएक्टर इसी दशक में चालू किए। यदि 20 वर्ष (2005-2024) की अवधि में देखा जाए, तो भारत परमाणु क्षमता वृद्धि में वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है, जो केवल चीन, दक्षिण कोरिया और रूस से पीछे है। इस अवधि में भारत ने 5.9 गीगावॉट परमाणु क्षमता जोड़ी है, जो रूस की क्षमता का दो-तिहाई, दक्षिण कोरिया का आधा और चीन के विस्तार का सिर्फ दसवां हिस्सा है। हालांकि, कुल एनर्जी मिक्स में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी के मामले में भारत काफी पीछे है। 2024 तक भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी केवल 1.7 परसेंट है, जिससे वह इस पैमाने पर विश्व स्तर पर 28वें स्थान पर है। जबकि फ्रांस 47.6 परसेंट के साथ अव्वल है। अमेरिका के एनर्जी मिक्स में 8.3 परसेंट, यूएई 10.5 परसेंट और यूके 7.4 परसेंट परमाणु ऊर्जा का शेयर है। यहां तक कि चीन (2.2 परसेंट) और जापान (4.8 परसेंट) भी भारत से बेहतर स्थिति में हैं। पाकिस्तान में तो 7.6 परसेंट स्थापित विद्युत क्षमता परमाणु से आती है, जो भारत से कई गुना अधिक है।