TOP

ई - पेपर Subscribe Now!

ePaper
Subscribe Now!

Download
Android Mobile App

Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

21-06-2025

इंडियन स्टार्टअप्स को वीसी फंड्स का थम्सअप

  •  वित्त वर्ष25 में देश में 80 आईपीओ के जरिए 16300 करोड़ रुपये का फंड रे•ा किया गया। वहीं वित्त वर्ष 24 में 76 आईपीओ से केवल 6190 करोड़ रुपये ही उगाहे गए थे। लेकिन वित्त वर्ष 26 को आईपीओ के लिहाज से बहुत हॉट माना जा रहा है क्योंकि स्टार्टअप्स बड़ी संख्या में रिवर्स फ्लिपिंग यानी घर वापसी कर रहे हैं। देश में आईपीओ की जो वेव चल रही है उसके चलते भारत को स्टार्टअप का ग्रोथ इंजन कहा जा रहा है। और अमेरिका वेंचर केपिटलिस्ट को भी इसमें कमाई के मौके दिख रहे हैं। रिपोर्ट कहती हैं कि भारत में अभी 160 के करीब यूनिकॉर्न हैं। यूनिकॉर्न यानी 1 बिलियन डॉलर वेल्यूएशन वाला स्टार्टअप। लेकिन अगले बीस वर्ष में देश में 1 हजार यूनिकॉर्न तैयार होने की बात कही जा रही है। और यहीं पर ग्लोबल इंवेस्टर्स को भारत में ग्लोबल टेक्नोलॉजी वेव का ग्रोथ इंजन नजर आ रहा है और इसलिए वे भारत पर दांव बढ़ा रहे हैं। अमेरिका में 10 करोड़ डॉलर का इंडिया और एआई फोकस्ड वेंचर फंड चला रहे आदित्य मिस्रा के अनुसार भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम अब मैच्यॉर हो रहा है। रेगुलेटरी फ्रेमवर्क और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के हालात भी सुधर रहे हैं ऐसे में भारत में चीन और अमेरिका के बराबर खड़ा होने की सभी क्षमताएं मौजूद हैं। एक दशक पहले, भारत के आईपीओ की 75 परसेंट फंडिंग विदेश से आती थी। लेकिन मिस्रा के अनुसार 80 परसेंट तक फंड अब डोमेस्टिक इन्वेस्टर्स दे रहे हैं। 2020 में 3.6 करोड़ ब्रोकर अकाउंट थे, जो 2024 में बढक़र 16 करोड़ हो गए हैं। इससे एक बहुत बड़ा लिक्विड फाइनेंशियल ईकोसिस्टम तैयार हुआ है जिससे विदेशी निवेशकों की रिस्क घटी है। ग्लोबल टेक कंपनियां जब भारत में ऑपरेशन्स खोलती हैं, तो वैसा ही माहौल बनता है जैसा सिलिकॉन वैली में होता है। गूगल, मेटा, और ओपनएआई के पूर्व इंजीनियर और एक्जेक्टिव अब अपने स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। और बड़ी बात यह कि इनका टार्गेट इंडिया ही नहीं ग्लोबल है। इनोवेशन का केंद्र एआई, एमएल, रोबोटिक्स, डीपटेक, लॉजिस्टिक्स और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में है। अकेला एआई सेक्टर 32 परसेंट ग्रोथ कर रहा है। मिस्रा के अनुसार भारत के स्टार्टअप जटिल भाषा, आर्थिक और सामाजिक परिवेश में उभरते हैं तो वे क्रॉस बॉर्डर पेमेंट और सप्लाई चेन के चैलेंज जैसी ग्लोबल समस्याओं को भी सही तरह से समझ पाते हैं। यही कारण है कि भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप ईकोसिस्टम बन चुका है। ग्लोबल विजन वाले इंडियन स्टार्टअप्स और इंडिया में विस्तार कर रहे अमेरिकी स्टार्टअप्स में इंवेस्टमेंट से रीजनल के बजाय 1.5 से 2 गुना अधिक रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट मिल सकता है। हालांकि अभी भी रेगुलेटरी और गवर्नेंस के चैलेंज हैं लेकिन लॉन्ग-टर्म विजन वालों के लिए भारत इन्फ्लेक्शन पॉइंट तक पहुंच चुका है। वे कहते हैं कि अमेरिकी इंवेस्टर्स के लिए संदेश स्पष्ट है अगले बीस सालों की टेक्नोलॉजिकल ग्रोथ पिछले बीस वर्ष से अलग होगी। ईटीएफ के जरिए आम निवेशक भारत के टेक्नोलॉजी सीन में कूद सकते हैं लेकिन डायरेक्ट वेंचर कैपिटल के लिए भी मजबूत मामला बनता है। गोल्डमैन सैक्स ने 2023 की एक रिपोर्ट मेें कहा कि भारत 2075 तक अमेरिका को पछाडक़र दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन सकता है। यदि अगले बीस साल में 1 हजार यूनिकॉर्न तैयार होते हैं तो एक हजार गुणा एक अरब डॉलर के हिसाब से 1 ट्रिलियन डॉलर की स्टार्टअप वैल्यू बनती है। लेकिन यदि भारत में स्पेसएक्स, फ्लिपकार्ट और ओपनएआई जैसे यूनिकॉर्न तैयार हो जाते हैं तो वेल्यूएशन कहीं अधिक हो सकता है। अगले कुछ दशक में भारत के यूनिकॉन्र्स $2 से $5 ट्रिलियन के वैल्यू बना सकते हैं। और यदि यह होता है तो कहानी सिलिकॉन वैली या चीन की टेक बूम जैसी ही होगी।

Share
इंडियन स्टार्टअप्स को वीसी फंड्स का थम्सअप

 वित्त वर्ष25 में देश में 80 आईपीओ के जरिए 16300 करोड़ रुपये का फंड रे•ा किया गया। वहीं वित्त वर्ष 24 में 76 आईपीओ से केवल 6190 करोड़ रुपये ही उगाहे गए थे। लेकिन वित्त वर्ष 26 को आईपीओ के लिहाज से बहुत हॉट माना जा रहा है क्योंकि स्टार्टअप्स बड़ी संख्या में रिवर्स फ्लिपिंग यानी घर वापसी कर रहे हैं। देश में आईपीओ की जो वेव चल रही है उसके चलते भारत को स्टार्टअप का ग्रोथ इंजन कहा जा रहा है। और अमेरिका वेंचर केपिटलिस्ट को भी इसमें कमाई के मौके दिख रहे हैं। रिपोर्ट कहती हैं कि भारत में अभी 160 के करीब यूनिकॉर्न हैं। यूनिकॉर्न यानी 1 बिलियन डॉलर वेल्यूएशन वाला स्टार्टअप। लेकिन अगले बीस वर्ष में देश में 1 हजार यूनिकॉर्न तैयार होने की बात कही जा रही है। और यहीं पर ग्लोबल इंवेस्टर्स को भारत में ग्लोबल टेक्नोलॉजी वेव का ग्रोथ इंजन नजर आ रहा है और इसलिए वे भारत पर दांव बढ़ा रहे हैं। अमेरिका में 10 करोड़ डॉलर का इंडिया और एआई फोकस्ड वेंचर फंड चला रहे आदित्य मिस्रा के अनुसार भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम अब मैच्यॉर हो रहा है। रेगुलेटरी फ्रेमवर्क और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के हालात भी सुधर रहे हैं ऐसे में भारत में चीन और अमेरिका के बराबर खड़ा होने की सभी क्षमताएं मौजूद हैं। एक दशक पहले, भारत के आईपीओ की 75 परसेंट फंडिंग विदेश से आती थी। लेकिन मिस्रा के अनुसार 80 परसेंट तक फंड अब डोमेस्टिक इन्वेस्टर्स दे रहे हैं। 2020 में 3.6 करोड़ ब्रोकर अकाउंट थे, जो 2024 में बढक़र 16 करोड़ हो गए हैं। इससे एक बहुत बड़ा लिक्विड फाइनेंशियल ईकोसिस्टम तैयार हुआ है जिससे विदेशी निवेशकों की रिस्क घटी है। ग्लोबल टेक कंपनियां जब भारत में ऑपरेशन्स खोलती हैं, तो वैसा ही माहौल बनता है जैसा सिलिकॉन वैली में होता है। गूगल, मेटा, और ओपनएआई के पूर्व इंजीनियर और एक्जेक्टिव अब अपने स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। और बड़ी बात यह कि इनका टार्गेट इंडिया ही नहीं ग्लोबल है। इनोवेशन का केंद्र एआई, एमएल, रोबोटिक्स, डीपटेक, लॉजिस्टिक्स और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में है। अकेला एआई सेक्टर 32 परसेंट ग्रोथ कर रहा है। मिस्रा के अनुसार भारत के स्टार्टअप जटिल भाषा, आर्थिक और सामाजिक परिवेश में उभरते हैं तो वे क्रॉस बॉर्डर पेमेंट और सप्लाई चेन के चैलेंज जैसी ग्लोबल समस्याओं को भी सही तरह से समझ पाते हैं। यही कारण है कि भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप ईकोसिस्टम बन चुका है। ग्लोबल विजन वाले इंडियन स्टार्टअप्स और इंडिया में विस्तार कर रहे अमेरिकी स्टार्टअप्स में इंवेस्टमेंट से रीजनल के बजाय 1.5 से 2 गुना अधिक रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट मिल सकता है। हालांकि अभी भी रेगुलेटरी और गवर्नेंस के चैलेंज हैं लेकिन लॉन्ग-टर्म विजन वालों के लिए भारत इन्फ्लेक्शन पॉइंट तक पहुंच चुका है। वे कहते हैं कि अमेरिकी इंवेस्टर्स के लिए संदेश स्पष्ट है अगले बीस सालों की टेक्नोलॉजिकल ग्रोथ पिछले बीस वर्ष से अलग होगी। ईटीएफ के जरिए आम निवेशक भारत के टेक्नोलॉजी सीन में कूद सकते हैं लेकिन डायरेक्ट वेंचर कैपिटल के लिए भी मजबूत मामला बनता है। गोल्डमैन सैक्स ने 2023 की एक रिपोर्ट मेें कहा कि भारत 2075 तक अमेरिका को पछाडक़र दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन सकता है। यदि अगले बीस साल में 1 हजार यूनिकॉर्न तैयार होते हैं तो एक हजार गुणा एक अरब डॉलर के हिसाब से 1 ट्रिलियन डॉलर की स्टार्टअप वैल्यू बनती है। लेकिन यदि भारत में स्पेसएक्स, फ्लिपकार्ट और ओपनएआई जैसे यूनिकॉर्न तैयार हो जाते हैं तो वेल्यूएशन कहीं अधिक हो सकता है। अगले कुछ दशक में भारत के यूनिकॉन्र्स $2 से $5 ट्रिलियन के वैल्यू बना सकते हैं। और यदि यह होता है तो कहानी सिलिकॉन वैली या चीन की टेक बूम जैसी ही होगी।


Label

PREMIUM

CONNECT WITH US

X
Login
X

Login

X

Click here to make payment and subscribe
X

Please subscribe to view this section.

X

Please become paid subscriber to read complete news