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19-06-2025

रिवर्स फ्लिपिंग ऑन द ट्रेंडिंग

  •  रिवर्स फ्लिपिंग यानी कंपनी के हेडक्वॉर्टर को ऑपरेशन्स वाले देश में ले जाना। जैसे हाल ही पेमेंट प्रॉसेसिंग कंपनी रेजरपे ने रिवर्स फ्लिपिंग की है। इससे पहले फ्लिपकार्ट सहित दर्जनों स्टार्टअप अपने हेड ऑफिस अमेरिका या सिंगापुर से भारत ला चुकी हैं। लेकिन रिवर्स फ्लिपिंग से सरकार की तिजोरी भर रही है और माना जा रहा है कि मीशो, रेजरपे, ग्रो सरकार को 5 हजार रुपये टैक्स देंगी। मीशो, ग्रो और रेजरपे उन इंडियन स्टार्टअप्स में शामिल हैं जो अब अपने अमेरिका से अपने कॉर्पोरेट ऑफिस को भारत में रेगुलेटरी नॉम्र्स के अनुसार देश में शिफ्ट कर रहे हैं। वेंचर फंडिंग घट जाने के कारण स्टार्टअप भारत में आईपीओ लाकर लिस्ट होना चाहती हैं और इसके लिए हेड ऑफिस भारत में होना जरूरी है। आप जानते हैं हाल के सालों में नायका, पेटीएम, ओला आदि दर्जनों स्टार्टअप्स ने आईपीओ के जरिए मार्केट से पैसा उठाया है। मीशो, रेजरपे और ग्रो ने अमेरिका के डेलावेयर राज्य में अपनी होल्डिंग कंपनियां बनाई थीं। लेकिन भारत लौटने के लिए उन्हें करीब $60 करोड़ डॉलर ( करीब 5,000 करोड़ रूपये) का टैक्स पेमेंट करना पड़ेगा। मीशो भारत का अफोर्डेबल फैशन ई-कॉमर्स स्टार्टअप है जिसने फंडिंग के लिए 2016 में अमेरिका में अपनी कंपनी बनाई थी। अब जबकि मीशो भारत में आईपीओ ला रहा है। इसे लगभग 2,461 करोड़ रुपये ($288 मिलियन डॉलर) का टेक्स चुकाना होगा। इससे पहले फोनपे ने करीब 8,200 करोड़ रुपये का टैक्स चुकाया था। इसी तरह रेजरपे को भी भारत में आईपीओ लाने के लिए अपना डॉमिसाइल यहां लाना होगा और इसके लिए उसे 1,245 करोड़ (150 मिलियन डॉलर) टैक्स देना होगा। वहीं इंवेस्टमेंट प्लेटफॉर्म ग्रो को अक्टूबर 2024 में रिवर्स फ्लिपिंग पूरी करने के लिए 1,340 करोड़ (160 मिलियन डॉलर का) टैक्स का पेमेंट करना पड़ा था। इन तीनों कंपनियों का कुल टैक्स पेमेंट $600 मिलियन डॉलर तक तक पहुुंच गया है। अमेरिका के वाई कॉम्बिनेटर प्रोग्राम के तहत शुरुआती फंडिंग मिलना आसान होता है। लेकिन इसके लिए स्टार्टअप्स को अमेरिका (डेलावेयर), सिंगापुर, कनाडा या केमैन आइलैंड्स में इंकॉर्पोरेट करने की शर्त  होती थी। हालांकि वेंचर कैपिटल्स का भी दबाव होता है क्योंकि कानून आसान होने के कारण उन्हें शेयर बेचकर एक्जिट लेना आसान होता है। अब जबकि अमेरिकी आईपीओ मार्केट सिकुड़ रहा है और भारत में आईपीओ के जरिए पूंजी जुटाना बहुत आसान हो गया है ऐसे में अमेरिका में बने रहने का तुक नहीं है। इसके अलावा फिनटैक जैसे सैक्टर में प्रॉफिट ट्रांसफर करने पर स्क्रूटनी का भी डर बढ़ रहा है। रिवर्स फ्लिप पर कैपिटल गेन टैक्स, वैल्यूएशन डिफरेंशियल टैक्स, और आईपी से जुड़ी विदेशी टैक्स लायबिलिटी भी बनती है।

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रिवर्स फ्लिपिंग ऑन द ट्रेंडिंग

 रिवर्स फ्लिपिंग यानी कंपनी के हेडक्वॉर्टर को ऑपरेशन्स वाले देश में ले जाना। जैसे हाल ही पेमेंट प्रॉसेसिंग कंपनी रेजरपे ने रिवर्स फ्लिपिंग की है। इससे पहले फ्लिपकार्ट सहित दर्जनों स्टार्टअप अपने हेड ऑफिस अमेरिका या सिंगापुर से भारत ला चुकी हैं। लेकिन रिवर्स फ्लिपिंग से सरकार की तिजोरी भर रही है और माना जा रहा है कि मीशो, रेजरपे, ग्रो सरकार को 5 हजार रुपये टैक्स देंगी। मीशो, ग्रो और रेजरपे उन इंडियन स्टार्टअप्स में शामिल हैं जो अब अपने अमेरिका से अपने कॉर्पोरेट ऑफिस को भारत में रेगुलेटरी नॉम्र्स के अनुसार देश में शिफ्ट कर रहे हैं। वेंचर फंडिंग घट जाने के कारण स्टार्टअप भारत में आईपीओ लाकर लिस्ट होना चाहती हैं और इसके लिए हेड ऑफिस भारत में होना जरूरी है। आप जानते हैं हाल के सालों में नायका, पेटीएम, ओला आदि दर्जनों स्टार्टअप्स ने आईपीओ के जरिए मार्केट से पैसा उठाया है। मीशो, रेजरपे और ग्रो ने अमेरिका के डेलावेयर राज्य में अपनी होल्डिंग कंपनियां बनाई थीं। लेकिन भारत लौटने के लिए उन्हें करीब $60 करोड़ डॉलर ( करीब 5,000 करोड़ रूपये) का टैक्स पेमेंट करना पड़ेगा। मीशो भारत का अफोर्डेबल फैशन ई-कॉमर्स स्टार्टअप है जिसने फंडिंग के लिए 2016 में अमेरिका में अपनी कंपनी बनाई थी। अब जबकि मीशो भारत में आईपीओ ला रहा है। इसे लगभग 2,461 करोड़ रुपये ($288 मिलियन डॉलर) का टेक्स चुकाना होगा। इससे पहले फोनपे ने करीब 8,200 करोड़ रुपये का टैक्स चुकाया था। इसी तरह रेजरपे को भी भारत में आईपीओ लाने के लिए अपना डॉमिसाइल यहां लाना होगा और इसके लिए उसे 1,245 करोड़ (150 मिलियन डॉलर) टैक्स देना होगा। वहीं इंवेस्टमेंट प्लेटफॉर्म ग्रो को अक्टूबर 2024 में रिवर्स फ्लिपिंग पूरी करने के लिए 1,340 करोड़ (160 मिलियन डॉलर का) टैक्स का पेमेंट करना पड़ा था। इन तीनों कंपनियों का कुल टैक्स पेमेंट $600 मिलियन डॉलर तक तक पहुुंच गया है। अमेरिका के वाई कॉम्बिनेटर प्रोग्राम के तहत शुरुआती फंडिंग मिलना आसान होता है। लेकिन इसके लिए स्टार्टअप्स को अमेरिका (डेलावेयर), सिंगापुर, कनाडा या केमैन आइलैंड्स में इंकॉर्पोरेट करने की शर्त  होती थी। हालांकि वेंचर कैपिटल्स का भी दबाव होता है क्योंकि कानून आसान होने के कारण उन्हें शेयर बेचकर एक्जिट लेना आसान होता है। अब जबकि अमेरिकी आईपीओ मार्केट सिकुड़ रहा है और भारत में आईपीओ के जरिए पूंजी जुटाना बहुत आसान हो गया है ऐसे में अमेरिका में बने रहने का तुक नहीं है। इसके अलावा फिनटैक जैसे सैक्टर में प्रॉफिट ट्रांसफर करने पर स्क्रूटनी का भी डर बढ़ रहा है। रिवर्स फ्लिप पर कैपिटल गेन टैक्स, वैल्यूएशन डिफरेंशियल टैक्स, और आईपी से जुड़ी विदेशी टैक्स लायबिलिटी भी बनती है।


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