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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

06-09-2025

67 लाख रुपए का घर बेचा 41 लाख रुपए में, रिटर्न में दिखाए केवल 1,690 रुपए, ट्रिब्यूनल में जीता केस

  •  अहमदाबाद आयकर अपीलीय अधिकरण ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया जिसमें दिलीप नामक करदाता ने घर बेचने के बाद आयकर विभाग से जंग जीती। मामला तब शुरू हुआ जब दिलीप ने अपना मकान 41 लाख में बेचा, जबकि उसका स्टाम्प ड्यूटी मूल्य 67 लाख था। इसके बावजूद उन्होंने अपने आयकर रिटर्न में केवल 1,690 आय और लगभग 8.7 लाख का लॉन्ग-टर्म कैपिटल लॉस दिखाया। आकलन वर्ष 2012-13 में दिलीप ने रिटर्न दाखिल नहीं किया था। वर्ष 2019 में विभाग ने धारा 147 के तहत रिअसैसमेंट की कार्यवाही शुरू की। इसके बाद दिलीप ने आईटीआर दाखिल कर धारा 54 के तहत छूट का दावा किया। उन्होंने यह भी कहा कि मकान रेनोवेशन पर लगभग 15.99 लाख खर्च किए गए, जिनका भुगतान कई सालों में नकद किया गया। सबूत के तौर पर उन्होंने कॉन्ट्रैक्टर की रसीदें और काम का विवरण दिया, पर बैंक रिकॉर्ड नहीं था। आयकर अधिकारी ने इस पर तीन आपत्ति जताईं। पहला, मकान 41 लाख में बेचा गया, जबकि स्टाम्प वैल्यू 67 लाख थी। दूसरा, इस संपत्ति में पांच को-ओनरथे जिनमें दिलीप की नाबालिग बेटी भी शामिल थी, पर नया मकान दिलीप और उनकी पत्नी के नाम खरीदा गया। तीसरा, अधिकारी ने कहा कि केवल 50 परसेंट निवेश पर ही धारा 54 की छूट दी जा सकती है। इन आधारों पर कर अधिकारी ने कैपिटल गेन 15.99 लाख निकाला और इसे दिलीप की आय में जोड़ दिया। दिलीप ने अपील की तो आयकर आयुक्त ने इसे घटाकर 9 लाख कर दिया। इसके बाद दिलीप ने इनकम टेक्स ट्रिब्यूनल अहमदाबाद का दरवाजा खटखटाया। ट्रिब्यूनल ने 25 अगस्त 2025 को कहा कि नया मकान पति-पत्नी के नाम खरीदा गया है और योगदान का अनुपात (2:1) वास्तविक निवेश पर आधारित होना चाहिए, केवल नाम पर नहीं। दिलीप और उनकी पत्नी ने शपथपत्र देकर पुष्टि की थी कि पैसा पुराने मकान की बिक्री से ही आया। इस कारण विभाग को वास्तविक योगदान की जांच कर छूट देने का निर्देश दिया गया। मकान रेनोवेशन खर्च को लेकर, ट्रिब्यूनल ने माना कि लगभग दो दशक पुराने नकद भुगतान के लिए बैंक पासबुक या रिकॉर्ड की अपेक्षा करना उचित नहीं। ठेकेदार की रसीदें और उपलब्ध सबूत पर्याप्त हैं। इस तरह ट्रिब्यूनल ने न्यायहित में खर्च का दावा मान लिया और अपील आंशिक रूप से करदाता के पक्ष में स्वीकार कर ली। टेक्स कन्सल्टेंट कहते हैं कि आयकर अधिनियम में कैश पेमेंट पर रोक नहीं है, परंतु सबूत की कमी पर विभाग अक्सर दावे अस्वीकार कर देता है। इस केस में ट्रिब्यूनल ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए पुराने नकद भुगतानों को मान्यता दी। दो दशक पुराने बैंक रिकॉर्ड उपलब्ध होना मुश्किल है, इसलिए उपलब्ध रसीदों को मान्य किया गया। इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ कि संपत्ति की सह-स्वामित्व छूट वास्तविक योगदान के आधार पर होगी, न कि केवल कागजी हिस्सेदारी पर। यह केस बताता है कि धारा 54 की छूट निवेश के वास्तविक अनुपात पर आधारित होगी।

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67 लाख रुपए का घर बेचा 41 लाख रुपए में, रिटर्न में दिखाए केवल 1,690 रुपए, ट्रिब्यूनल में जीता केस

 अहमदाबाद आयकर अपीलीय अधिकरण ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया जिसमें दिलीप नामक करदाता ने घर बेचने के बाद आयकर विभाग से जंग जीती। मामला तब शुरू हुआ जब दिलीप ने अपना मकान 41 लाख में बेचा, जबकि उसका स्टाम्प ड्यूटी मूल्य 67 लाख था। इसके बावजूद उन्होंने अपने आयकर रिटर्न में केवल 1,690 आय और लगभग 8.7 लाख का लॉन्ग-टर्म कैपिटल लॉस दिखाया। आकलन वर्ष 2012-13 में दिलीप ने रिटर्न दाखिल नहीं किया था। वर्ष 2019 में विभाग ने धारा 147 के तहत रिअसैसमेंट की कार्यवाही शुरू की। इसके बाद दिलीप ने आईटीआर दाखिल कर धारा 54 के तहत छूट का दावा किया। उन्होंने यह भी कहा कि मकान रेनोवेशन पर लगभग 15.99 लाख खर्च किए गए, जिनका भुगतान कई सालों में नकद किया गया। सबूत के तौर पर उन्होंने कॉन्ट्रैक्टर की रसीदें और काम का विवरण दिया, पर बैंक रिकॉर्ड नहीं था। आयकर अधिकारी ने इस पर तीन आपत्ति जताईं। पहला, मकान 41 लाख में बेचा गया, जबकि स्टाम्प वैल्यू 67 लाख थी। दूसरा, इस संपत्ति में पांच को-ओनरथे जिनमें दिलीप की नाबालिग बेटी भी शामिल थी, पर नया मकान दिलीप और उनकी पत्नी के नाम खरीदा गया। तीसरा, अधिकारी ने कहा कि केवल 50 परसेंट निवेश पर ही धारा 54 की छूट दी जा सकती है। इन आधारों पर कर अधिकारी ने कैपिटल गेन 15.99 लाख निकाला और इसे दिलीप की आय में जोड़ दिया। दिलीप ने अपील की तो आयकर आयुक्त ने इसे घटाकर 9 लाख कर दिया। इसके बाद दिलीप ने इनकम टेक्स ट्रिब्यूनल अहमदाबाद का दरवाजा खटखटाया। ट्रिब्यूनल ने 25 अगस्त 2025 को कहा कि नया मकान पति-पत्नी के नाम खरीदा गया है और योगदान का अनुपात (2:1) वास्तविक निवेश पर आधारित होना चाहिए, केवल नाम पर नहीं। दिलीप और उनकी पत्नी ने शपथपत्र देकर पुष्टि की थी कि पैसा पुराने मकान की बिक्री से ही आया। इस कारण विभाग को वास्तविक योगदान की जांच कर छूट देने का निर्देश दिया गया। मकान रेनोवेशन खर्च को लेकर, ट्रिब्यूनल ने माना कि लगभग दो दशक पुराने नकद भुगतान के लिए बैंक पासबुक या रिकॉर्ड की अपेक्षा करना उचित नहीं। ठेकेदार की रसीदें और उपलब्ध सबूत पर्याप्त हैं। इस तरह ट्रिब्यूनल ने न्यायहित में खर्च का दावा मान लिया और अपील आंशिक रूप से करदाता के पक्ष में स्वीकार कर ली। टेक्स कन्सल्टेंट कहते हैं कि आयकर अधिनियम में कैश पेमेंट पर रोक नहीं है, परंतु सबूत की कमी पर विभाग अक्सर दावे अस्वीकार कर देता है। इस केस में ट्रिब्यूनल ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए पुराने नकद भुगतानों को मान्यता दी। दो दशक पुराने बैंक रिकॉर्ड उपलब्ध होना मुश्किल है, इसलिए उपलब्ध रसीदों को मान्य किया गया। इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ कि संपत्ति की सह-स्वामित्व छूट वास्तविक योगदान के आधार पर होगी, न कि केवल कागजी हिस्सेदारी पर। यह केस बताता है कि धारा 54 की छूट निवेश के वास्तविक अनुपात पर आधारित होगी।


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