इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून (आईबीसी यानी दिवाला कानून) में पर्सनल गारंटी को लेकर होने वाले संशोधनों की बात हम कर चुके हैं। सरकार का प्लान आईबीसी कानून को स्टेकहोल्डर फ्रेंडली बनाने का है और इसी दिशा में कदम उठाते हुए क्लीन स्लेट के नियम को भी लागू किए जाने का प्रस्ताव है। क्लीन स्लेट नियम का मकसद नए इंवेस्टर को पुराने कर्ज के बोझ से बचाना है। प्रस्तावित संशोधन के तहत यदि किसी कंपनी का इन्सॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्लान अप्रूव हो जाता है तो कंपनी के खिलाफ प्लान के इतर बकाया सभी दावे समाप्त माने जाएंगे। सरकार दरअसल कॉर्पोरेट रिवाइवल की प्रॉसेस को फास्ट्रेक करने के साथ ही कानूनी अनिश्चितता को भी कम करना चाहती है। सरकार इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (अमेंडमेंट) बिल में इस प्रस्ताव को शामिल किया गया है। यह बिल फिलहाल सलेक्ट कमेटी (चयन समिति) के विचाराधीन है। हालांकि, यह संशोधन उन मामलों को प्रभावित नहीं करेगा जिनमें बकाया राशि की वसूली प्रमोटर्स, मैनेजमेंट एक्जेक्टिव या गारंटरों से की जानी है। खासकर उन लेनदेन से जुड़े मामलों में जिन्हें संदिग्ध या निरस्त करने योग्य माना गया है, वे इस संशोधन के दायरे में नहीं आएंगे। सरकार का मकसद उन जटिलताओं को रोकना है जो पहले आर्सेलॉर मित्तल निप्पॉन स्टील द्वारा 2019 में एस्सार स्टील के 42 हजार करोड़ अधिग्रहण जैसे मामलों में सामने आई थीं। उस समय ट्रिब्यूनल और अदालतों ने रेजोल्यूशन प्लान के अप्रूवल के बाद रिकवरी प्रयासों को खारिज कर दिया था। अब कानून में स्पष्ट प्रावधान जुडऩे से दिवालिया कंपनियों का रिवाइवल तेज तथा सरल हो सकेगा। संशोधन के तहत आईबीसी की धारा 31 को बदलकर यह स्पष्ट किया जाएगा कि यदि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने रेजोल्यूशन योजना को मंजूरी दे दी है, तो उस तारीख से पहले कंपनी और उसकी संपत्तियों के खिलाफ किए गए सभी दावे समाप्त हो जाएंगे। इसके अलावा ऐसे किसी भी दावे की वसूली के लिए नए मुकदमे दायर नहीं किए जा सकेंगे। डैट सैटलमेंट प्लान को एनसीएलटी का अप्रूवल मिल जाने के बाद सरकार से लेकर स्थानीय प्राधिकरण तक किसी का भी दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसे ...क्लीन स्लेट... सिद्धांत कहा जाता है। एनेलिस्ट कहते हैं कि क्लीन स्लेट से इंवेस्टर का भरोसा बढ़ेगा, डील में स्पष्टता बढ़ेगी और क्रेडिटर सौदे को पटरी से उतारने के लिए मुकदमे दायर नहीं कर पाएंगे। इस संशोधन के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि जो दावे रेजोल्यूशन प्लान में शामिल नहीं हैं वे प्लान अप्रूव होने के बाद अपने-आप समाप्त हो जाएंगे और उन पर कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। विशेषज्ञों ने कहा कि एस्सार स्टील बनाम सतीश कुमार गुप्ता (2019), घनश्याम मिश्रा एंड संस बनाम एडेलवाइस एआरसी (2021), और मनीष कुमार बनाम भारत संघ (2021) मामलों में सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस प्रिंसीपल को मान्यता दे चुका है। भारत ने 2016 में आईबीसी लागू की थी। अब तक 6 हजार से अधिक मामले दाखिल हो चुके हैं और 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक के असैट्स रिवाइव किए जा चुके हैं।
