पिछले सप्ताह विपक्षी दलों द्वारा शासित आठ राज्यों की एक बैठक में जीएसटी 2.0 से राज्यों को होने वाले रेवेन्यू घाटे को लेकर चिंता जताई गई थी। इनका मानना था कि सरकार को घाटे की भरपाई के लिए सेफगार्ड उठाने की जरूरत है। लेकिन एसबीआई की लेटेस्ट रिपोर्ट में राज्यों की राजस्व घाटे की चिंता को खारिज करते हुए कहा है कि जीएसटी में कटौती या सरलीकरण के बाद भी राज्य जीएसटी के तहत नेट गेनर (फायदा) बने रहेंगे। केरल, झारखंड, तमिलनाडु कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्रियों ने हाल ही में अपनी आपत्तियां दर्ज की थी। एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों को जीएसटी कलेक्शन का 50 परसेंट हिस्सा सीधे मिलता है। इसके अलावा केंद्र के हिस्से से भी 41 परसेंट कर बंटवारे के रूप में प्राप्त होता है। यदि जीएसटी प्रणाली के तहत 100 का राजस्व एकत्रित होता है, तो राज्यों के पास औसतन 70.5 पहुंचता है। एसबीआई का मानना है कि दरों के सरलीकरण के बावजूद राज्यों को नुकसान नहीं होगा और वित्त वर्ष 2025-26 राज्यों को 10 लाख करोड़ से अधिक राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) के रूप में प्राप्त होंगे। इसके अलावा उन्हें 4.1 लाख करोड़ कर बंटवारे से भी मिलेंगे। रिपोर्ट के अनुसार कंप्लायंस और कंजम्पशन बढऩे से भी लगभग 52 हजार करोड़ का अतिरिक्त राजस्व आएगा जो केंद्र और राज्यों में बंटेगा। एसबीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 और 2019 में जब जीएसटी दरों में कटौती की गई थी, तो शुरुआती महीनों में राजस्व संग्रह में 3-4' की गिरावट दर्ज हुई थी। लेकिन यह गिरावट अस्थायी साबित हुई और इसके बाद महीने-दर-महीने संग्रह 5-6% की दर से बढऩे लगा। इसलिए चाहे दरों में कटौती हो या सरलीकरण, राज्यों की आय पर दीर्घकालिक असर नहीं होगा।
