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05-08-2025

सफल सामाजिक जीवन के लिए सम्यक ज्ञान दर्शन के अनुरूप आचरण आवश्यक

  •  जैन श्वैताम्बर संस्था सोडाला श्याम नगर के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैन साध्वी डॉ. दिव्य प्रभाजी महाराज सा. ने अपने ने अपने उद्बोधन में कहा मनुष्य को अपूर्व शांति प्राप्त करने के लिए अपनी आत्मा को जगाना होगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन की शुरूआत के साथ युवावस्था प्रोढ़ अवस्था व वृद्धावस्था के दौरान केवल परिवार एवं उसके विकास में ही संलग्न रहता है और वह अपने स्वयं के कल्याण के मार्ग से भटककर सामाजिक उत्तर दायित्व निर्वहन में ही व्यस्त रहता है। उसको स्वयं के कल्याण की याद वृद्धावस्था में आती है, जब तक समय समाप्त होने का समय आ जाता है। साध्वी जी ने कहा कि युवावस्था में धन कमाने उसके पश्चात मनुष्य दाम्पत्य जीवन उसके पश्चात बच्चों की परवरिश शिक्षा उनके विवाह के कार्य तक उलझा रहता है और इस दौरान उसको धर्म याद नहीं आता सत्य, अहिंसा, अपरिगृह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य के मार्ग से भटक जाता है। उन्होंने कहा कि सत्य अहिंसा के मार्ग पर आगे बढऩे का कार्य उसको युवावस्था में ही करना चाहिए ताकि उसका जीवन आनंदमय हो सके और अपने साथ-साथ वह अपने परिवार के आदर्शों को सुरक्षित रखकर परिवार को संवार सकता है। सत्य, अहिंसा, अपरिगृह, अस्तेय के मार्ग पर चलकर वह समाज में व्याप्त असानता को कम करने समाज को शोषण से मुक्त करने में सहयोग कर सकता है। अपने परिवार एक आदर्श परिवार बनाकर संपूर्ण जीव प्रणाली में एक नया आदर्श प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन इसके लिए सर्वप्रथम आत्मा को जगाने की आवश्यकता है। व्यवसाय, कर्म, शिक्षा, परिवार के पोषण व निर्माण में भी यह कार्य महत्वपूर्ण सिद्ध होगा जो शोषण विहीन समाज की नींव रखेगा। नई पीढ़ी में नए आदर्शों का प्रवाह सुनिश्चित करेगा। अच्छे संस्कारों का सृजन संभव होगा। साध्वी जी ने कहा कि इसके लिए सर्वप्रथम मनुष्य को अपने मन व बाह्य प्रवृत्तियों को नियंत्रित करना होगा। प्रमाद से मुक्त होना होगा और आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढऩा होगा।

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सफल सामाजिक जीवन के लिए सम्यक ज्ञान दर्शन के अनुरूप आचरण आवश्यक

 जैन श्वैताम्बर संस्था सोडाला श्याम नगर के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैन साध्वी डॉ. दिव्य प्रभाजी महाराज सा. ने अपने ने अपने उद्बोधन में कहा मनुष्य को अपूर्व शांति प्राप्त करने के लिए अपनी आत्मा को जगाना होगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन की शुरूआत के साथ युवावस्था प्रोढ़ अवस्था व वृद्धावस्था के दौरान केवल परिवार एवं उसके विकास में ही संलग्न रहता है और वह अपने स्वयं के कल्याण के मार्ग से भटककर सामाजिक उत्तर दायित्व निर्वहन में ही व्यस्त रहता है। उसको स्वयं के कल्याण की याद वृद्धावस्था में आती है, जब तक समय समाप्त होने का समय आ जाता है। साध्वी जी ने कहा कि युवावस्था में धन कमाने उसके पश्चात मनुष्य दाम्पत्य जीवन उसके पश्चात बच्चों की परवरिश शिक्षा उनके विवाह के कार्य तक उलझा रहता है और इस दौरान उसको धर्म याद नहीं आता सत्य, अहिंसा, अपरिगृह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य के मार्ग से भटक जाता है। उन्होंने कहा कि सत्य अहिंसा के मार्ग पर आगे बढऩे का कार्य उसको युवावस्था में ही करना चाहिए ताकि उसका जीवन आनंदमय हो सके और अपने साथ-साथ वह अपने परिवार के आदर्शों को सुरक्षित रखकर परिवार को संवार सकता है। सत्य, अहिंसा, अपरिगृह, अस्तेय के मार्ग पर चलकर वह समाज में व्याप्त असानता को कम करने समाज को शोषण से मुक्त करने में सहयोग कर सकता है। अपने परिवार एक आदर्श परिवार बनाकर संपूर्ण जीव प्रणाली में एक नया आदर्श प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन इसके लिए सर्वप्रथम आत्मा को जगाने की आवश्यकता है। व्यवसाय, कर्म, शिक्षा, परिवार के पोषण व निर्माण में भी यह कार्य महत्वपूर्ण सिद्ध होगा जो शोषण विहीन समाज की नींव रखेगा। नई पीढ़ी में नए आदर्शों का प्रवाह सुनिश्चित करेगा। अच्छे संस्कारों का सृजन संभव होगा। साध्वी जी ने कहा कि इसके लिए सर्वप्रथम मनुष्य को अपने मन व बाह्य प्रवृत्तियों को नियंत्रित करना होगा। प्रमाद से मुक्त होना होगा और आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढऩा होगा।


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