जम्मू एंड कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जावेद इकबाल वानी के समक्ष एक याचिका मोटर वाहन कानून 1988 की धारा 173 तथा 165 के अंतर्गत दुर्घटना क्षतिपूर्ति के संदर्भ में युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम तेजा बेगम व अन्य संबंधित प्रकरण में विचारार्थ प्रस्तुत की गई। धारा 173 के अंतर्गत दायर इस अपील में बीमा कंपनी ने 28.2.15 के ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए क्षतिपूर्ति आदेश को चुनौती दी है। इस प्रकरण का संक्षिप्त विवरण यह है कि प्रतिवादी संख्या एक से नौ के द्वारा ट्रिब्यूनल बारामुला के समक्ष एक क्लेम दावा किया गया था कि गुलाम मोहम्मद लोन जो उनके प्रिडिशीसर इन इंट्रेस्ट है, उनकी मृत्यु उनकी मृत्यु 10.9.2004 को एक बस दुर्घटना में हो गई थी और इसका मालिक प्रतिवादी संख्या 11 है तथा इसका परिचालन प्रतिवादी संख्या 10 के द्वारा किया जा रहा था। वर्तमान अपीलेंट प्रतिवादी संख्या 3 है। इस क्लेम पिटिशन पर विचार करते हुए ट्रिब्यूलन ने सभी प्रतिवादियों के द्वारा उपलब्ध अपने लिखित उत्तर का अध्ययन करने व पूछताछ के पश्चात निम्न बिंदुओं पर विचार किया कि क्या 10.9.2004 को प्रतिवादी संख्या एक वाहन का परिचालन कर रहा था, जिसका मालिक प्रतिवादी संख्या दो है और नूरक्वाह रोड पर उसने लापरवाही से परिचालित करते हुए यह दुर्घटना कारित की थी, जिसमें गुलाम मोहम्मद लोन की मृत्यु हो गई। यह सिद्ध नहीं किया जा सका कि वाहन प्रतिवादी संख्या एक द्वारा परिचालित नहीं किया जा रहा था, अगर ऐसा है तो इस दावे पर क्या असर होगा प्रतिवादी संख्या एक से नौ जो क्लेमेंट है, उन्होंने चार साक्ष्यों को प्रस्तुत किया। इसके अलावा क्लेमेंट संख्या एक ने भी साक्ष्य के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया। उपरोक्त तथ्यों के साथ क्लेमेंट ने पुलिस चालान एफआईआर की प्रति भी उपलब्ध की। इसके साथ ही बीमा पॉलिसी भी प्रस्तुत की गई। इसके अलावा प्रतिवादी संख्या एक व दो के द्वारा जो प्रतिवादी संख्या 10-11 भी है। उन्होंने कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं किया। उपरोक्त सभी तथ्यों के अध्ययन व साक्ष्यों से सुनने के पश्चात ट्रिब्यूनल ने क्लेमेंट के पक्ष में 626000 रुपए की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया। यह भुगतान सामान्य 9 प्रतिशत ब्याज के साथ करने का निर्देश दिया गया। अपीलेंट बीमा कंपनी ने इस आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी है। अपीलेंट के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ट्रिब्यूनल ने क्षतिपूर्ति का आदेश देते हुए बहुत भारी गलती की है। उसने कहा कि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी। अत: क्लेमेंट को क्षतिपूर्ति का अधिकार नहीं है। उसने ट्रिब्यूनल द्वारा 9 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान का भी विरोध किया। जहां तक अपीलेंट के अधिवक्ता द्वारा उठाए गए प्रश्न का प्रश्न है। ट्रिब्यूलन ने दुर्घटना की परिभाषा का उल्लेख किया है जो मोटर वाहन के कारण हुई है, जहां तक दुर्घटना का प्रश्न है सर्वोच्च न्यायालय ने क्षेत्रीय निदेशक ईएसआई बनाम फ्रांसिस डे कोस्टा (१९९३) स्क्कक्क ४ स्ष्टष्ट १०० में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि सामान्य स्तर पर दुर्घटना से तात्पर्य कोई दुर्घटना अथवा अनहोनी होने से है, जिसकी अपेक्षा नहीं थी। ऐसी कोई घटना से भी है, जिसके कारण व्यक्ति आहत हुआ है। अपीलेंट के अधिवक्ता ने इसी संदर्भ में ज्योति अदेम्मा बनाम प्लांट इंजीनियर नल्लोर ्रढ्ढक्र २००६ स्ष्ट २८३० का भी उदाहरण प्रस्तुत किया। अधिवक्ता ने कहा कि ट्रिब्यूनल के समक्ष पर्याप्त ऐसे प्रमाण थे, जिससे यह सिद्ध होता है कि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी। उस समय वाहन पूरी तरह मोशन में नहीं था। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर ट्रिब्यूनल ने सर्वोच्च न्यायालय व केरल उच्च न्यायालय के आदेशों का भी अध्ययन किया है। अत: केवल यह कह देना कि ट्रिब्यूनल बिना तथ्यों के अध्ययन के ही आदेश दिया है, उचित नहीं है। न्यायालय ने कहा कि संंबंधित वाहन इस दुर्घटना के दिन बीमा कंपनी के पास बीमित था, जहां तक 9 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान का प्रश्न है यह अधिक अवश्य लगता है सिविल अपील 2611 वर्ष 2020 स्रु्यक्क (ष्टढ्ढङ्कढ्ढरु) हृश. ९६८९ वर्ष 2018 जिसका आदेश 16.6.2020 को दिया गया था। इसके अनुसार यह ब्याज की दर 6 प्रतिशत होनी चाहिए। न्यायालय ने इस प्रकरण में केवल ब्याज दर में कटौती के निर्णय पर ही विचार किया और कहा कि अपील को खारिज किया गया तथा न्यायालय द्वारा रजिस्ट्री को खारिज किया गया तथा न्यायालय द्वारा रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया। क्लेम आदेश की राशि का भुगतान क्लेमेंट संख्या एक से 10 के बीच कर दिया जाए।