हमारे देश की सरकारों का खर्च पिछले सालों में लगातार बढ़ता जा रहा है यानि वर्ष 2014-15 में सरकारी खर्च का योगदान GDP में जहां 11 प्रतिशत के आस-पास था वह वर्ष 2024 में 15 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया। भविष्य में इसके और बढऩे की संभावना व अनुमान लगाए जा रहे हैं यानि सरकार अपने खर्च की स्पीड और दायरा लगातार बढ़ाती रहेगी। यह स्थिति बता रही है कि इंवेस्टमेंट की दुनिया में शामिल लोगों को सरकार के बढ़ते खर्च का फ्लो कहां जा रहा है, इस पर लगातार ध्यान देते रहना चाहिए। लोगों से टैक्स वसूलकर उस धन को जिन कामों में लगाया जा रहा है उनसे जुड़े सेक्टर भविष्य में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। इंवेस्टमेंट की यह नई थीम भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इंवेस्टरों का ध्यान खींचने लगी है क्योंकि सरकारों के बढ़ते खर्चों के उदाहरण कई देशों में देखे जा सकते हैं। यह भी माना जा सकता है कि जो कंपनियां सरकारों के पॉलिटिकल एजेंडों के आस-पास रहकर अपना काम कर रही है उनका प्रदर्शन अन्य कंपनियों के मुकाबले बेहतर रहने की संभावना ज्यादा है। इंवेस्टमेंट के निर्णयों में सरकार की सोच, प्लान व खर्च को Ignore करना अब पहले के मुकाबले आसान नहीं रहेगा क्योंकि सरकारी खर्च की हिस्सदारी GDP को सपोर्ट और मजबूत करने के मामले में महत्वपूर्ण हो चुकी है। एक इकोनोमी के एक्सपर्ट के अनुसार ‘फ्री मार्केट’ को आधार बनाकर इंवेस्टमेंट करने की थीम अब धीरे-धीरे पीछे छूटती जा रही है क्योंकि सरकार जो खरीद रही है वहीं खरीदना ज्यादा फायदेमंद साबित होने लगा है। सरकारें कठोर व कड़े निर्णय लेने की ताकत का प्रदर्शन भी लगातार करने लगी है जिसके चलते बाजारों व कंज्यूमर के जल्दी-जल्दी बदलते व्यवहार व Response (प्रतिक्रिया) को पकडक़र आने वाले समय का सही अनुमान लगा पाना कई कंपनियों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। आसान शब्दों में समझें तो कहा जा सकता है कि सरकारों का ‘प्रभाव’ बढ़ रहा है जिसका बाजारों पर इतना असर होने लगा है कि इंवेस्टरों के लिए किसी अन्य थीम में सफलता हासिल करने के मौके बहुत कम हो गए हैं। अगर हम एक कदम आगे बढक़र ज्यादा सोचे तो भी यही समझ आता है कि केन्द्र सरकार के अगले 5-10 सालों के एजेंडो को फॉलो करना ही इंवेस्टमेंट से कमाने का सुरक्षित रास्ता नजर आता है यानि सरकार जिन कामों के लिए वास्तव में पैसा खर्च करने का तय कर चुकी है और जिसपर केबिनेट की मुहर लग चुकी है वहीं दांव लगाकर अपने इंवेस्टमेंट की वेल्यू बढ़ाने में कांफिडेंस ज्यादा होने लगा है।
एक दिलचस्प थीम और है जो हमारे देश के इंवेस्टमेंट बाजार के कई सालों तक अच्छा प्रदर्शन करने के संकेत दे रही है। इस थीम के अनुसार जिस देश का Dependency Ratio (निर्भरता का अनुपात) कम होता है वहां इंवेस्टमेंट से रिटर्न के मौके लम्बे समय तक बने रहते हैं। भारत में यह Ratio 47 है यानि काम करने की उम्र वाले हर 100 लोगों पर 47 लोग निर्भर है जिसके वर्ष 2030 तक घटकर 31 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है यानि वर्ष 2030 में आज से ज्यादा लोग काम कर रहे होंगे, टैक्स दे रहे होंगे, ट्यूरिज्म, हैल्थ और इंफ्रा पर खर्च करेंगे व देश की GDP को बढ़ाने के साथ-साथ सरकार के खर्च में बड़ा योगदान देंगे। अमेरिका में यह GDP बढ़ रहा है जो वर्ष 2010 में 19 था जो अब 29 हो गया है। इसी तरह जापान में यह Ratio 51 और जर्मनी में 40 है यानि यहां काम करने वालों पर निर्भर लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो इकोनोमी के आगे बढऩे की स्पीड को धीमा करती है। चीन में यह Ratio वर्ष 2000 में 10 था और उस दौर से आज तक चीन की इकोनोमी ने ऐसा जबरदस्त प्रदर्शन किया है कि दुनिया देखती रह गई पर आज चीन में यह Ratio 20 हो गया है जिसके वर्ष 2055 तक 63 पहुंच जाने का अनुमान है यानि चीन के लोगों की बढ़ती एवरेज उम्र उसकी इकोनोमी के लिए चैलेंज बनने लगी है। यही नहीं ऐसा भी माना जाता है कि जहां बुजुर्गों के Diaper (Adult Diaper) बच्चों के Diaper से ज्यादा बिकते हैं जैसा जापान में हैं, वहां लम्बे समय तक इंवेस्टमेंट से रिटर्न नहीं मिलती और ऐसा ही जापान में पिछले लम्बे समय तक हुआ है। अब कई एक्सपर्ट यह भी कहने लगे हैं कि स्टॉक मार्केट में इंवेस्ट करने के लिए शेयरों की पहचान करने से ज्यादा सेक्टरों की सही पहचान करना जरूरी होने लगा है और यह फार्मूला मिलने वाली रिटर्न के मामले में 60 प्रतिशत से ज्यादा का वजन रखता है। अगर कोई अपना ज्यादातर समय शेयरों को चुनने, हर रात उनके बारे में सोचने व उठते वक्त भी उन्हीं के बारे में जानकारी लेने में लगाता है तो नई थीम में यह इंवेस्टमेंट की दुनिया में सफल होने का फार्मूला नहीं कहा जा सकता। आज के इंवेस्टमेंट के माहौल में इंवेस्टरों को Volatility बने रहने के साथ-साथ अपने इंवेस्टमेंट पर कम रिटर्न मिलने के लिए भी खुद को तैयार कर लेना चाहिए। ध्यान रहे हम यहां राजनैतिक पार्टियों के एजेंडे की नहीं बल्कि सरकारों के खर्च की बात कर रहे हैं जिसका फ्लो किसी भी पार्टी की सरकार में लगातार बना रहेगा और यही नई थीम बाजारों में इंवेस्ट करने के कई मौको को सपोर्ट करते नजर आ सकती है।