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25-09-2025

प्रोफेशनल्स की मेंटल हैल्थ पर भारी पड़ रहा है Imperfect Work-Life Balance

  •  गत कुछ समय से देश में काम के घंटों को लेकर बहस छिड़ी हुई है। सबका अपना मत है। यदि काम का दबाब बनने लगे, तो अपनी बात को रखना गलत नहीं है। प्रोफेशनल फीमेल्स को काम का ओवरलोड ज्यादा प्रभावित कर सकता है। इससे उनमें चिढ़चिढ़ापन और एकाग्रता में कमी का अनुभव हो सकता है। एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ऑफिस में बेहतर वर्क रिलेशनशिप बनाये रखने के लिये एम्प्लॉइज ना कहने की कोशिश ही नहीं करते और इसका प्रभाव उनकी मेंटल और इमोशनल हैल्थ पर पड़ सकता है। अपने सहकर्मियों को ना कहना, बॉस को कुछ हद तक ना कहना कोई बुरी बात नहीं है। सर्वे में 65 प्रतिशत एम्प्लॉइज ने यह कहा कि वे काम के दौरान बाउंड्री सैट करना चाहते हैं और अतिरिक्त काम के लिये ना कहना चाहते हैं। 25-40 वर्ष की फीमेल्स प्रोफेशनल रिक्वेस्ट के लिये ना कहने में हिचकती हैं। 26 से 40 वर्ष के 12 प्रतिशत एम्प्लॉइज ना कहने के नकारात्मक प्रभाव से डरते हैं और एक्स्ट्रा काम के लिये मना नहीं कर पाते। 25 वर्ष से कम और 40 वर्ष से अधिक आयु के कर्मचारी ज्यादा आत्मविश्वासी महसूस करते हैं। तीन से चार प्रतिशत ही नकारात्मक प्रभाव से डरते है। 12 प्रतिशत ने कहा कि लगातार काम का दबाव पर्सनल और फैमिली लाइफ में दखल डालता है। हो सकता है कि इससे वर्क प्रोडक्टिविटी रिड्यूस हो। रिपोर्ट के अनुसार ओवरलोड से प्रोफेशनल फीमेल्स ज्यादा प्रभावित होती हैं। पुरुष और महिलाओं में फ्रस्ट्रेशन और कंसेंट्रेशन का अनुपात देखें तो 43 प्रतिशत और 36 प्रतिशत, 41 प्रतिशत और 35 प्रतिशत आता है। 25 वर्ष से कम आयु के युवा भी 38 प्रतिशत तक फ्रस्ट्रेशन का शिकार बनते हैं। 38 प्रतिशत काम की जिम्मेदारियों को सही रूप में प्रबंधित करने में दिक्कत महसूस करते हैं। 26 प्रतिशत ने कहा कि काम के लिय ना कहने में उन्हें अपराध बोध महसूस होता है। सर्वे के अनुसार लांग रन में देखें तो एक्स्ट्रा काम के लिये ना नहीं कहना, हैल्थ पर बुरा असर डाल सकता है। 59 प्रतिशत ने कहा कि वे अनेक बार बर्नआउट एक्सपीरियंस करते हैं। 28 प्रतिशत एम्प्लॉइज तो ऐसे थे, जिन्होंने यह तक कहा कि काम के दबाव के कारण स्ट्रेस का लेवल इतना बढ़ गया कि उन्हें जॉब छोडऩा पड़ा। 42 प्रतिशत ने सर्वे में कहा कि ना कहने से उन्हें रिलीफ मिला और वे इससे 31 प्रतिशत काम को कान्फीडेंस के साथ कर पाये। एम्प्लॉयर्स को अपनी टीम को काम के दबाव से बचाने के लिये काम का सही डिस्ट्रीब्यूशन करने पर फोकस करना चाहिये। यदि उनका एम्प्लॉई किसी अतिरिक्त काम के लिये ना कहता है तो इसे उसकी कमजोरी न समझें। ना कहना आसान नहीं है, इसलिये इसे नेगेटिव रूप में न देखें।

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प्रोफेशनल्स की मेंटल हैल्थ पर भारी पड़ रहा है Imperfect Work-Life Balance

 गत कुछ समय से देश में काम के घंटों को लेकर बहस छिड़ी हुई है। सबका अपना मत है। यदि काम का दबाब बनने लगे, तो अपनी बात को रखना गलत नहीं है। प्रोफेशनल फीमेल्स को काम का ओवरलोड ज्यादा प्रभावित कर सकता है। इससे उनमें चिढ़चिढ़ापन और एकाग्रता में कमी का अनुभव हो सकता है। एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ऑफिस में बेहतर वर्क रिलेशनशिप बनाये रखने के लिये एम्प्लॉइज ना कहने की कोशिश ही नहीं करते और इसका प्रभाव उनकी मेंटल और इमोशनल हैल्थ पर पड़ सकता है। अपने सहकर्मियों को ना कहना, बॉस को कुछ हद तक ना कहना कोई बुरी बात नहीं है। सर्वे में 65 प्रतिशत एम्प्लॉइज ने यह कहा कि वे काम के दौरान बाउंड्री सैट करना चाहते हैं और अतिरिक्त काम के लिये ना कहना चाहते हैं। 25-40 वर्ष की फीमेल्स प्रोफेशनल रिक्वेस्ट के लिये ना कहने में हिचकती हैं। 26 से 40 वर्ष के 12 प्रतिशत एम्प्लॉइज ना कहने के नकारात्मक प्रभाव से डरते हैं और एक्स्ट्रा काम के लिये मना नहीं कर पाते। 25 वर्ष से कम और 40 वर्ष से अधिक आयु के कर्मचारी ज्यादा आत्मविश्वासी महसूस करते हैं। तीन से चार प्रतिशत ही नकारात्मक प्रभाव से डरते है। 12 प्रतिशत ने कहा कि लगातार काम का दबाव पर्सनल और फैमिली लाइफ में दखल डालता है। हो सकता है कि इससे वर्क प्रोडक्टिविटी रिड्यूस हो। रिपोर्ट के अनुसार ओवरलोड से प्रोफेशनल फीमेल्स ज्यादा प्रभावित होती हैं। पुरुष और महिलाओं में फ्रस्ट्रेशन और कंसेंट्रेशन का अनुपात देखें तो 43 प्रतिशत और 36 प्रतिशत, 41 प्रतिशत और 35 प्रतिशत आता है। 25 वर्ष से कम आयु के युवा भी 38 प्रतिशत तक फ्रस्ट्रेशन का शिकार बनते हैं। 38 प्रतिशत काम की जिम्मेदारियों को सही रूप में प्रबंधित करने में दिक्कत महसूस करते हैं। 26 प्रतिशत ने कहा कि काम के लिय ना कहने में उन्हें अपराध बोध महसूस होता है। सर्वे के अनुसार लांग रन में देखें तो एक्स्ट्रा काम के लिये ना नहीं कहना, हैल्थ पर बुरा असर डाल सकता है। 59 प्रतिशत ने कहा कि वे अनेक बार बर्नआउट एक्सपीरियंस करते हैं। 28 प्रतिशत एम्प्लॉइज तो ऐसे थे, जिन्होंने यह तक कहा कि काम के दबाव के कारण स्ट्रेस का लेवल इतना बढ़ गया कि उन्हें जॉब छोडऩा पड़ा। 42 प्रतिशत ने सर्वे में कहा कि ना कहने से उन्हें रिलीफ मिला और वे इससे 31 प्रतिशत काम को कान्फीडेंस के साथ कर पाये। एम्प्लॉयर्स को अपनी टीम को काम के दबाव से बचाने के लिये काम का सही डिस्ट्रीब्यूशन करने पर फोकस करना चाहिये। यदि उनका एम्प्लॉई किसी अतिरिक्त काम के लिये ना कहता है तो इसे उसकी कमजोरी न समझें। ना कहना आसान नहीं है, इसलिये इसे नेगेटिव रूप में न देखें।


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