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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

02-08-2025

देसी चने में रुक-रुक कर तेजी कायम रहने की उम्मीद

  •  देसी चने का उत्पादन चालू सीजन में कम हुआ है दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया में भी इस बार बिजाई कम होने की अपुष्ट खबरें आने लगी हैं, इस वजह से बड़ी दाल मिलें राजस्थानी चने की खरीद कर रही है। उधर पुराना स्टॉक भी ऑस्ट्रेलिया का काफी निपट  चुका है। इस वजह से खपत वाले उद्योगों की मांग निकलते ही इसमें नीचे के भाव से चालू माह के अंतराल 700 रुपए की  तेजी आ गई है तथा भविष्य में  यह 7000 रुपए बन सकता है। देसी चने की फसल मध्य प्रदेश कर्नाटक राजस्थान महाराष्ट्र में मुख्य रूप से होता है। सबसे पहले मध्य प्रदेश महाराष्ट्र कर्नाटक का देसी चना फरवरी मार्च में आता है, उसके बाद राजस्थान का अप्रैल में आता है। इस बार सीजन में प्रतिकूल मौसम होने एवं किसानों को दो-तीन वर्षों से कोई विशेष लाभ नहीं मिलने से बिजाई काफी कम हुई थी तथा पुराना स्टाक की निपट गया था, जिस कारण फसल अपेक्षाकृत कम आई है तथा प्रति हैक्टेयर उत्पादकता भी कम रही है। केवल पिछले वर्ष का ऑस्ट्रेलिया का स्टाक में देसी चना ज्यादा बचने एवं मटर के भाव नीचे होने से फसल से लेकर और 30 जून तक देसी चने में कोई विशेष तेजी नहीं आ पाई, तत्पश्चात जैसे ही ऑस्ट्रेलिया का चना निबटता गया तथा मटर की खपत चार गुनी हो गई, उसके बाद देसी चने की चौतरफा तेजी बनने लगी है तथा बाजार चालू माह के अंतराल 700 रुपए बढक़र 6400 प्रति क्विंटल हो गए हैं। इसी तरह चने की दाल भी नीचे में 6450 दिल्ली बिकने के बाद 7275/7300 रुपए प्रति कुंतल हो गई है तथा यहां से फिर बाजार तेज लग रहा है, क्योंकि किसी भी उत्पादक मंडियों से माल की आपूर्ति अनुकूल नहीं है तथा पड़ते काफी ऊंचे लग रहे हैं। सरकार द्वारा शुल्क मुक्ति आयात 31 मार्च 2026 तक मटर का खोल दिया गया है, इस वजह से उत्पादन 80 लाख मैट्रिक टन चने का रह जाने के बावजूद भी बाजार दबा हुआ था। अब स्थिति यह बन गई है कि कनाडा में जो माल मटर का पड़ा हुआ है, वह 45-50 डॉलर प्रति टन बढ़ाकर बोलने लगे हैं तथा मुंदड़ा मुंबई सहित सभी बंदरगाहों से मटर पूर्वी भारत के लिए काफी निकाल चुकी है तथा वहां तुवर एवं देसी चने की दाल व बेसन में खप रहा है। इधर राजस्थान कर्नाटक मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र की मंडियों में देसी चना बहुत कम रह गया है तथा आवक भी पिछले वर्ष की तुलना में घटकर 55-56 प्रतिशत ही रह गई है। इस वजह से दाल मिलों को चना मांगने पर नहीं मिल पा रहा है। अकोला जलगांव लाइन की दाल मिलें भी कच्चे माल के अभाव में काफी कम क्षमता में चल रही है, क्योंकि ऊंचे पड़ते में चना मिल रहा है, इसलिए दाल मिलों को पड़ता नहीं लग रहा है। इधर पूना लाइन की दाल मिलों में भी माल नहीं है, जबकि चना दाल और बेसन की मांग निकलने लगी है। यही कारण है कि चालू माह में जो देसी चना लॉरेंस रोड पर राजस्थान का 5700 रुपए बिका था, उसके भाव बढक़र 6400 रुपए प्रति क्विंटल खड़ी मोटर में हो गए। ऑस्ट्रेलिया का चना 6450 रुपए बोल रहे हैं, लेकिन उसका पड़ता नहीं आ रहा है, क्योंकि दालें उस हिसाब से नहीं बढक़र बिक रही है। अब ऑस्ट्रेलिया का चना भारतीय बंदरगाहों पर एक लाख टन के अंदर रह गया है तथा नवंबर से पहले कोई चना लगने वाला नहीं है, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए सितंबर के अंत तक देसी चने में शॉर्टेज में आ जाएगा।

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देसी चने में रुक-रुक कर तेजी कायम रहने की उम्मीद

 देसी चने का उत्पादन चालू सीजन में कम हुआ है दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया में भी इस बार बिजाई कम होने की अपुष्ट खबरें आने लगी हैं, इस वजह से बड़ी दाल मिलें राजस्थानी चने की खरीद कर रही है। उधर पुराना स्टॉक भी ऑस्ट्रेलिया का काफी निपट  चुका है। इस वजह से खपत वाले उद्योगों की मांग निकलते ही इसमें नीचे के भाव से चालू माह के अंतराल 700 रुपए की  तेजी आ गई है तथा भविष्य में  यह 7000 रुपए बन सकता है। देसी चने की फसल मध्य प्रदेश कर्नाटक राजस्थान महाराष्ट्र में मुख्य रूप से होता है। सबसे पहले मध्य प्रदेश महाराष्ट्र कर्नाटक का देसी चना फरवरी मार्च में आता है, उसके बाद राजस्थान का अप्रैल में आता है। इस बार सीजन में प्रतिकूल मौसम होने एवं किसानों को दो-तीन वर्षों से कोई विशेष लाभ नहीं मिलने से बिजाई काफी कम हुई थी तथा पुराना स्टाक की निपट गया था, जिस कारण फसल अपेक्षाकृत कम आई है तथा प्रति हैक्टेयर उत्पादकता भी कम रही है। केवल पिछले वर्ष का ऑस्ट्रेलिया का स्टाक में देसी चना ज्यादा बचने एवं मटर के भाव नीचे होने से फसल से लेकर और 30 जून तक देसी चने में कोई विशेष तेजी नहीं आ पाई, तत्पश्चात जैसे ही ऑस्ट्रेलिया का चना निबटता गया तथा मटर की खपत चार गुनी हो गई, उसके बाद देसी चने की चौतरफा तेजी बनने लगी है तथा बाजार चालू माह के अंतराल 700 रुपए बढक़र 6400 प्रति क्विंटल हो गए हैं। इसी तरह चने की दाल भी नीचे में 6450 दिल्ली बिकने के बाद 7275/7300 रुपए प्रति कुंतल हो गई है तथा यहां से फिर बाजार तेज लग रहा है, क्योंकि किसी भी उत्पादक मंडियों से माल की आपूर्ति अनुकूल नहीं है तथा पड़ते काफी ऊंचे लग रहे हैं। सरकार द्वारा शुल्क मुक्ति आयात 31 मार्च 2026 तक मटर का खोल दिया गया है, इस वजह से उत्पादन 80 लाख मैट्रिक टन चने का रह जाने के बावजूद भी बाजार दबा हुआ था। अब स्थिति यह बन गई है कि कनाडा में जो माल मटर का पड़ा हुआ है, वह 45-50 डॉलर प्रति टन बढ़ाकर बोलने लगे हैं तथा मुंदड़ा मुंबई सहित सभी बंदरगाहों से मटर पूर्वी भारत के लिए काफी निकाल चुकी है तथा वहां तुवर एवं देसी चने की दाल व बेसन में खप रहा है। इधर राजस्थान कर्नाटक मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र की मंडियों में देसी चना बहुत कम रह गया है तथा आवक भी पिछले वर्ष की तुलना में घटकर 55-56 प्रतिशत ही रह गई है। इस वजह से दाल मिलों को चना मांगने पर नहीं मिल पा रहा है। अकोला जलगांव लाइन की दाल मिलें भी कच्चे माल के अभाव में काफी कम क्षमता में चल रही है, क्योंकि ऊंचे पड़ते में चना मिल रहा है, इसलिए दाल मिलों को पड़ता नहीं लग रहा है। इधर पूना लाइन की दाल मिलों में भी माल नहीं है, जबकि चना दाल और बेसन की मांग निकलने लगी है। यही कारण है कि चालू माह में जो देसी चना लॉरेंस रोड पर राजस्थान का 5700 रुपए बिका था, उसके भाव बढक़र 6400 रुपए प्रति क्विंटल खड़ी मोटर में हो गए। ऑस्ट्रेलिया का चना 6450 रुपए बोल रहे हैं, लेकिन उसका पड़ता नहीं आ रहा है, क्योंकि दालें उस हिसाब से नहीं बढक़र बिक रही है। अब ऑस्ट्रेलिया का चना भारतीय बंदरगाहों पर एक लाख टन के अंदर रह गया है तथा नवंबर से पहले कोई चना लगने वाला नहीं है, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए सितंबर के अंत तक देसी चने में शॉर्टेज में आ जाएगा।


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