मक्की का सीजन बिहार में समाप्ति की ओर है। यूपी में नई मक्की आ रही है, लेकिन लगातार बरसात होने से बढिय़ा मक्की नहीं मिल पा रही है। अत: स्टॉक के लिए मक्की की कमी को देखते हुए भविष्य में अच्छी तेजी की संभावना दिखाई दे रही है। हल्के माल औने-पौने भाव पर बिकेंगे, जबकि बढिय़ा माल में कारोबारियों को आगे चलकर भरपूर लाभ मिलने की संभावना है। मक्की की फसल रबी एवं खरीफ सीजन में प्रांतवार आती है। इसका उत्पादन दोनों सीजन को मिलाकर 135-136 लाख मीट्रिक टन के करीब होने का अनुमान लगाया जा रहा है। सबसे बड़ी फसल बिहार के दरभंगा बेगूसराय खगडिय़ा मानसी सेमापुर जमालपुर गुगड़ी लाइन में गर्मी में हाइब्रिड मक्की आती है, जो सकल उत्पादन का 60 प्रतिशत अकेले उत्पादन होता है। वहां पूर्व मानसून बरसात बार-बार होने से माल इस बार हल्की क्वालिटी का ज्यादा आया है तथा बढिय़ा क्वालिटी की केवल 42-43 प्रतिशत मिलने से वहां के गोदामों में छोटी-बड़ी कंपनियों का स्टाक इस बार कम हो पाया है। यही कारण है कि गोदाम पहुंच में मक्की 2150/2300 रुपए प्रति क्विंटल वहां बिक रही है, जो हरियाणा पंजाब पहुंच में 2325/2450 रुपए का नमी के अनुसार व्यापार हो रहा है। इधर यूपी के हाथरस ऊंझानी कासगंज एटा लाइन में नई मक्की आ रही है, यहां भी लगातार रुक-रुक कर बरसात होने से मंडियों में बड़ी कंपनियों के आदमी, हाथ पर हाथ रख कर बैठे हुए हैं। माल नहीं मिलने से खरीद कमजोर चल रही है, औसतन मक्की स्टॉक के लिए 15 प्रतिशत नमी वाली दो दिनों में 40/45 रुपए बढक़र 2100/2110 रुपए प्रति कुंतल हो गई है, मंडिया लूज में 2040/2050 रुपये के बीच कासगंज लाइन में बिकने लगी है। हरियाणा पंजाब पहुंच में यूपी की मकई के पड़ते लग रहे हैं, लेकिन सूखी मक्की नहीं मिलने से कंपनियों को स्टॉक के लिए ही माल मिलना मुश्किल हो गया है। इधर हाथरस लाइन में भी मक्की आ रही है, लेकिन वहां की क्वालिटी अच्छी नहीं होने से अभी स्टॉक के लिए माल कम खरीद रहे हैं। इस बार मानसून समय से आ जाने से खरीद कम हो पाई है, क्योंकि पिछले एक दशक से मानसून लेट एवं कम मात्रा में बरसात आती थी, इसलिए कारोबारियों को सूखी मक्की जुलाई के अंत तक मिल जाती थी। हम मानते हैं कि इस बार साठी धान की बिजाई बहुत ही कम होने से उन क्षेत्रों में भी मक्की की बिजाई अधिक हुई थी, लेकिन तैयार फसल भीग जाने से स्टाक के लिए उसका कोई विशेष लाभ नहीं मिल पाया है। इस प्रतिकूल मौसम होने से मक्की का स्टॉक कम हो पाया है, ज्यादा नमी वाली मक्की स्टॉक में रखी नहीं जाएगी, क्योंकि शीघ्र फंगस एवं कीड़े लग जाएंगे, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य में मक्की का व्यापार लाभदायक रहेगा। आगे चलकर अक्टूबर से महाराष्ट्र मध्य प्रदेश राजस्थान की मक्की का सीजन शुरू हो जाएगा, लेकिन वहां भी इस बार निकले खेतों में मक्की की बिजाई मुश्किल लग रही है, क्योंकि जगह-जगह पानी भरा पड़ा है। हम मानते हैं कि सरकार द्वारा 58 लाख मीट्रिक टन एथेनॉल कंपनियों को फिर से चावल बेचने का निर्णय लिया गया है, लेकिन सूखी मक्की फीड मिलों में खपती है, वह माल मिलना मुश्किल हो गया है। इसके अलावा स्टार्च मिलों को भी मक्की चाहिए, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए मक्की का भविष्य तेजी वाला ही लग रहा है।