राजस्थान के जाने माने अर्थशास्त्री प्रो.लक्ष्मी नारायण नाथूरामका का जयपुर में 7 अपे्रल को निधन हो गया। वे 96 वर्ष के थे। उन्होंने राज्य के अर्थशास्त्र को अपनी अमूल्य सेवायें दी। 100 के दशक में भी उन्होंने निरंतर अध्ययन जारी रखते हुए अपनी पुस्तकों के उन्नयन का काम जारी रखा। उन्होंने वर्ष 1989 तक राजस्थान विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी। अर्थशास्त्र पर पुस्तकें लिखी, जिनमें उनकी भारतीय अर्थशास्त्र, राजस्थान के अर्थशास्त्र की समझ नजर आती है। उन्होंने आरएएस के विद्यार्थियों के लिये भी प्रथक से पुस्तक लिखी है। नफा नुकसान के साथ प्रो.नाथूरामका के सम्बंध बहुत ही महत्वपूर्ण रहे हैं। उनका सदैव मार्गदर्शन भी मिला और नफा नुकसान के सहयोग से स्वयं को सदैव सक्रिय भी बनाये रखा। नफा नुकसान के साथ उनका रिश्ता काफी आत्मीय था और निरंतर संवाद के माध्यम से प्रो.सहाब अपने विचारों का आदान-प्रदान भी करते रहते थे। प्रो.नाथूरामका का जन्म नवलगढ़ में हुआ था। वे जैन धर्म के प्रति विशेष अनुराग रखते थे। उनका आचार्य महाप्रज्ञ के साथ विशेष वैचारिक आदान-प्रदान भगवान महावीर के अर्थशास्त्र को लेकर हुआ था। उनका सदैव मानना रहा है कि भगवान महावीर के विचार विश्व में समेकित विकास में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। उन्होंने लाडनू जैन विश्वविद्यालय के साथ भी विशेष सम्बंध आचार्य महाप्रज्ञ के सानिध्य में बनाये रखे।