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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

04-04-2025

रील देखने की लत दिमाग ही नहीं आंखों को भी कर रही बीमार

  •  चिकित्सक पहले ही एक-दो मिनट की रील (वीडियो) देखने की लत से दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव को लेकर चिंता जता चुके हैं लेकिन अब उन्होंने इसके आंखों पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव को लेकर चेतावनी दी है। चिकित्सकों का कहना है कि बहुत अधिक समय स्क्रीन पर व्यतीत करने से विशेष तौर पर इंस्टाग्राम, टिकटॉक, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स पर लगातार रील देखने से सभी आयु समूहों में, खासतौर पर बच्चों और युवाओं में आंखों की समस्या में वृद्धि हो रही है। यह चेतावनी दिल्ली के यशोभूमि स्थित इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर में आयोजित एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थैल्मोलॉजी और ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजिकल सोसाइटी की संयुक्त बैठक के दौरान प्रमुख नेत्र रोग विशेषज्ञों ने दी। एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थैल्मोलॉजी (एपीएओ) 2025 कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. ललित वर्मा ने बहुत अधिक समय स्क्रीन देखने पर व्यय करने के कारण होने वाली ‘साइलेंट एपिडेमिक ऑफ डिजिटल आई स्ट्रेन’ (डिजिटल उपकरणों के इस्तेमाल से खामोशी से बढ़ती आंखों की बीमारी की महामारी) के खिलाफ कड़ी चेतावनी जारी की। उन्होंने कहा कि हम आंखों में खुश्की, निकट दृष्टि दोष, आंखों में दबाव और यहां तक कि शुरुआती दौर में ही भेंगापन के मामलों में तीव्र वृद्धि देख रहे हैं, खासकर उन बच्चों में जो घंटों रील देखते रहते हैं। हाल ही में एक छात्र लगातार आंखों में जलन और धुंधली दृष्टि की शिकायत लेकर हमारे पास आया था। जांच के बाद, हमने पाया कि घर पर लंबे समय तक स्क्रीन पर रील देखने के कारण उसकी आंखों में पर्याप्त नमी नहीं बन रही थी। उसकी आंखों में तुरंत दवा डाली गईं और 20-20-20 नियम का पालन करने की सलाह दी गई - यानि के हर 20 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक लेकर 20 फुट दूर किसी चीज को देखने को कहा गया। उन्होंने कहा कि छोटी, आकर्षक रीलें लंबे समय तक ध्यान खींचने और उसे बनाए रखने के लिए डिजाइन की गई हैं। लगातार स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने से पलकें झपकने की दर 50 प्रतिशत कम हो जाती है, जिससे ड्राई-आई सिंड्रोम और एकोमोडेशन स्पाज्म (निकट और दूर की वस्तुओं के बीच फोकस बदलने में कठिनाई) की समस्या उत्पन्न होती है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि इस आदत पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो इससे दीर्घकालिक दृष्टि संबंधी समस्याएं और यहां तक कि आंखों में स्थायी परेशानी भी हो सकती है।

    आगे कहा कि जो बच्चे प्रतिदिन घंटों टीवी देखते हैं, उनमें प्रारंभिक निकट दृष्टि समस्या होने का खतरा होता है, जो पहले से कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि वयस्कों को भी नीली रोशनी के कारण अक्सर सिरदर्द, माइग्रेन और नींद संबंधी विकार का सामना करना पड़ रहा है। हाल के अध्ययनों के अनुसार, 2050 तक विश्व की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या निकट दृष्टिदोष से ग्रस्त होगी, जो अपरिवर्तनीय अंधेपन का सबसे आम कारण है। अब स्क्रीन पर बिताए जाने वाले समय में वृद्धि के कारण, हम 30 वर्ष की आयु तक चश्मे के नंबर में उतार-चढ़ाव देख रहे हैं, जो कुछ दशक पहले 21 वर्ष तक देखा जाता था। अध्ययनों के मुताबिक ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है, विशेष रूप से छात्र और कामकाजी पेशेवर की जो उच्च गति, दृश्य उत्तेजक सामग्री के लंबे समय तक संपर्क के कारण आंखों में परेशानी, भेंगापन और बिगड़ती दृष्टि से जूझ रहे हैं। चिकित्सकों ने लगातार रील देखने से सामाजिक अलगाव, मानसिक थकान और ‘संज्ञानात्मक अधिभार’(जरूरत से अधिक सूचना का संग्रह) की चिंताजनक प्रवृत्ति पर भी ध्यान दिलाया है। एआईओएस के अध्यक्ष और वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. समर बसाक ने अत्यधिक स्क्रीन समय के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हम एक ऐसी चिंताजनक प्रवृत्ति देख रहे हैं, जहां लोग रील में इतने खो जाते हैं कि वे वास्तविक दुनिया के संबंधों की उपेक्षा कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पारिवारिक रिश्ते खराब हो जाते हैं और शिक्षा और काम पर ध्यान कम हो जाता है। कृत्रिम प्रकाश, दृश्य में तीव्र परिवर्तन और लंबे समय तक आंखों के करीब की गतिविधि का संयोजन आंखों को अत्यधिक उत्तेजित कर रहा है, जिसके कारण एक ऐसी घटना हो रही है जिसे हम ‘रील विजन सिंड्रोम’ कहते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञों ने अत्यधिक रील देखने के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए 20-20-20 नियम का पालन करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि पलकों को झपकाने की दर बढ़ाएं, स्क्रीन देखते समय अधिक बार पलक झपकाने का सचेत प्रयास करें, स्क्रीन देखने का समय कम करें और नियमित रूप से स्क्रीन से विराम लें क्योंकि इससे दीर्घकालिक नुकसान को रोकने में मदद मिल सकती है। 

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रील देखने की लत दिमाग ही नहीं आंखों को भी कर रही बीमार

 चिकित्सक पहले ही एक-दो मिनट की रील (वीडियो) देखने की लत से दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव को लेकर चिंता जता चुके हैं लेकिन अब उन्होंने इसके आंखों पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव को लेकर चेतावनी दी है। चिकित्सकों का कहना है कि बहुत अधिक समय स्क्रीन पर व्यतीत करने से विशेष तौर पर इंस्टाग्राम, टिकटॉक, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स पर लगातार रील देखने से सभी आयु समूहों में, खासतौर पर बच्चों और युवाओं में आंखों की समस्या में वृद्धि हो रही है। यह चेतावनी दिल्ली के यशोभूमि स्थित इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर में आयोजित एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थैल्मोलॉजी और ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजिकल सोसाइटी की संयुक्त बैठक के दौरान प्रमुख नेत्र रोग विशेषज्ञों ने दी। एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थैल्मोलॉजी (एपीएओ) 2025 कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. ललित वर्मा ने बहुत अधिक समय स्क्रीन देखने पर व्यय करने के कारण होने वाली ‘साइलेंट एपिडेमिक ऑफ डिजिटल आई स्ट्रेन’ (डिजिटल उपकरणों के इस्तेमाल से खामोशी से बढ़ती आंखों की बीमारी की महामारी) के खिलाफ कड़ी चेतावनी जारी की। उन्होंने कहा कि हम आंखों में खुश्की, निकट दृष्टि दोष, आंखों में दबाव और यहां तक कि शुरुआती दौर में ही भेंगापन के मामलों में तीव्र वृद्धि देख रहे हैं, खासकर उन बच्चों में जो घंटों रील देखते रहते हैं। हाल ही में एक छात्र लगातार आंखों में जलन और धुंधली दृष्टि की शिकायत लेकर हमारे पास आया था। जांच के बाद, हमने पाया कि घर पर लंबे समय तक स्क्रीन पर रील देखने के कारण उसकी आंखों में पर्याप्त नमी नहीं बन रही थी। उसकी आंखों में तुरंत दवा डाली गईं और 20-20-20 नियम का पालन करने की सलाह दी गई - यानि के हर 20 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक लेकर 20 फुट दूर किसी चीज को देखने को कहा गया। उन्होंने कहा कि छोटी, आकर्षक रीलें लंबे समय तक ध्यान खींचने और उसे बनाए रखने के लिए डिजाइन की गई हैं। लगातार स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने से पलकें झपकने की दर 50 प्रतिशत कम हो जाती है, जिससे ड्राई-आई सिंड्रोम और एकोमोडेशन स्पाज्म (निकट और दूर की वस्तुओं के बीच फोकस बदलने में कठिनाई) की समस्या उत्पन्न होती है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि इस आदत पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो इससे दीर्घकालिक दृष्टि संबंधी समस्याएं और यहां तक कि आंखों में स्थायी परेशानी भी हो सकती है।

आगे कहा कि जो बच्चे प्रतिदिन घंटों टीवी देखते हैं, उनमें प्रारंभिक निकट दृष्टि समस्या होने का खतरा होता है, जो पहले से कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि वयस्कों को भी नीली रोशनी के कारण अक्सर सिरदर्द, माइग्रेन और नींद संबंधी विकार का सामना करना पड़ रहा है। हाल के अध्ययनों के अनुसार, 2050 तक विश्व की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या निकट दृष्टिदोष से ग्रस्त होगी, जो अपरिवर्तनीय अंधेपन का सबसे आम कारण है। अब स्क्रीन पर बिताए जाने वाले समय में वृद्धि के कारण, हम 30 वर्ष की आयु तक चश्मे के नंबर में उतार-चढ़ाव देख रहे हैं, जो कुछ दशक पहले 21 वर्ष तक देखा जाता था। अध्ययनों के मुताबिक ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है, विशेष रूप से छात्र और कामकाजी पेशेवर की जो उच्च गति, दृश्य उत्तेजक सामग्री के लंबे समय तक संपर्क के कारण आंखों में परेशानी, भेंगापन और बिगड़ती दृष्टि से जूझ रहे हैं। चिकित्सकों ने लगातार रील देखने से सामाजिक अलगाव, मानसिक थकान और ‘संज्ञानात्मक अधिभार’(जरूरत से अधिक सूचना का संग्रह) की चिंताजनक प्रवृत्ति पर भी ध्यान दिलाया है। एआईओएस के अध्यक्ष और वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. समर बसाक ने अत्यधिक स्क्रीन समय के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हम एक ऐसी चिंताजनक प्रवृत्ति देख रहे हैं, जहां लोग रील में इतने खो जाते हैं कि वे वास्तविक दुनिया के संबंधों की उपेक्षा कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पारिवारिक रिश्ते खराब हो जाते हैं और शिक्षा और काम पर ध्यान कम हो जाता है। कृत्रिम प्रकाश, दृश्य में तीव्र परिवर्तन और लंबे समय तक आंखों के करीब की गतिविधि का संयोजन आंखों को अत्यधिक उत्तेजित कर रहा है, जिसके कारण एक ऐसी घटना हो रही है जिसे हम ‘रील विजन सिंड्रोम’ कहते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञों ने अत्यधिक रील देखने के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए 20-20-20 नियम का पालन करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि पलकों को झपकाने की दर बढ़ाएं, स्क्रीन देखते समय अधिक बार पलक झपकाने का सचेत प्रयास करें, स्क्रीन देखने का समय कम करें और नियमित रूप से स्क्रीन से विराम लें क्योंकि इससे दीर्घकालिक नुकसान को रोकने में मदद मिल सकती है। 


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