‘‘आदमी की नींद तो रोज ही खुलती है, मगर आंखें कभी-कभी ही खुलती है और बेहतरीन नजर वह होती है जो खुद को भी परख सकती हो।’’
- पी.सी. वर्मा
‘‘आदमी कुछ भी करे, कुछ मूढ़ताएं तो हो ही जाती है, किंतु इसका अर्थ यह तो नहीं कि वह कुछ भी नहीं करें।’’
- सांवरमल सराफ