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04-10-2025

‘37 बिलियन डॉलर के कैपेक्स से इंडिया जल्द बनेगा पेट्रोकेमिकल का अहम सेंटर’

  •  आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए 37 बिलियन डॉलर के पूंजीगत व्यय की योजना के दम पर भारत जल्द ही वैश्विक पेट्रोकेमिकल उद्योग में एक प्रमुख स्थिति हासिल कर सकता है। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में यह संभावना जताई है। पेट्रोकेमिकल आपूर्ति के नए परिदृश्य पर केंद्रित इस रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की तरह भारत की भी पेट्रोकेमिकल क्षमता में आक्रामक विस्तार की नीति एशिया के पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में अधिक आपूर्ति से उपजे दबाव को बढ़ा सकती है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पेट्रोकेमिकल उपभोक्ता देश भारत अब तक घरेलू मांग पूरी करने के लिए आयात पर निर्भर रहा है, लेकिन अब आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक नई पेट्रोकेमिकल क्षमता में भारत की हिस्सेदारी लगभग एक तिहाई हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के जरिये भारत रिफाइनरी क्षमता के विस्तार पर लगभग 25 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा जबकि निजी क्षेत्र का 12 बिलियन डॉलर का निवेश अपेक्षाकृत अधिक लचीला रहेगा। एसएंडपी के क्रेडिट विश्लेषक केर लिआंग चान ने कहा, भारत की यह क्षमता विस्तार योजना चीन के समान है और आने वाले वर्षों में एशियाई पेट्रोकेमिकल उद्योग में प्रतिस्पर्धा को और बढ़ाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की घरेलू मांग, खासकर पॉलीएथिलीन जैसे प्रमुख उत्पादों की, स्थानीय निर्माताओं की आय को बनाए रखने में मदद करेगी, भले ही वैश्विक कंपनियों को मूल्य दबाव और संभावित उद्योग एकीकरण का सामना करना पड़े। विश्लेषक शॉन पार्क ने कहा कि चीन और भारत की आत्मनिर्भरता की पहल उद्योग में क्षमता को और बढ़ा सकती है, खासकर जब वैश्विक मांग धीमी है और व्यापार तनाव जारी हैं। रेटिंग एजेंसी ने चेतावनी दी है कि एशियाई पेट्रोकेमिकल निर्यातकों के लिए अमेरिका जैसे बड़े बाजारों में निर्यात करना महंगा हो सकता है, क्योंकि अमेरिकी शुल्कों के कारण विकल्प सीमित हैं। इसके बावजूद, मजबूत घरेलू मांग के चलते भारतीय उत्पादकों की आय को अपेक्षाकृत सुरक्षा प्राप्त रहेगी। रिपोर्ट कहती है कि भारत वर्ष 2030 तक पॉलीएथिलीन का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बन सकता है और वैश्विक पेट्रोकेमिकल उद्योग में उसकी स्थिति मजबूत होगी।

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‘37 बिलियन डॉलर के कैपेक्स से इंडिया जल्द बनेगा पेट्रोकेमिकल का अहम सेंटर’

 आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए 37 बिलियन डॉलर के पूंजीगत व्यय की योजना के दम पर भारत जल्द ही वैश्विक पेट्रोकेमिकल उद्योग में एक प्रमुख स्थिति हासिल कर सकता है। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में यह संभावना जताई है। पेट्रोकेमिकल आपूर्ति के नए परिदृश्य पर केंद्रित इस रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की तरह भारत की भी पेट्रोकेमिकल क्षमता में आक्रामक विस्तार की नीति एशिया के पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में अधिक आपूर्ति से उपजे दबाव को बढ़ा सकती है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पेट्रोकेमिकल उपभोक्ता देश भारत अब तक घरेलू मांग पूरी करने के लिए आयात पर निर्भर रहा है, लेकिन अब आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक नई पेट्रोकेमिकल क्षमता में भारत की हिस्सेदारी लगभग एक तिहाई हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के जरिये भारत रिफाइनरी क्षमता के विस्तार पर लगभग 25 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा जबकि निजी क्षेत्र का 12 बिलियन डॉलर का निवेश अपेक्षाकृत अधिक लचीला रहेगा। एसएंडपी के क्रेडिट विश्लेषक केर लिआंग चान ने कहा, भारत की यह क्षमता विस्तार योजना चीन के समान है और आने वाले वर्षों में एशियाई पेट्रोकेमिकल उद्योग में प्रतिस्पर्धा को और बढ़ाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की घरेलू मांग, खासकर पॉलीएथिलीन जैसे प्रमुख उत्पादों की, स्थानीय निर्माताओं की आय को बनाए रखने में मदद करेगी, भले ही वैश्विक कंपनियों को मूल्य दबाव और संभावित उद्योग एकीकरण का सामना करना पड़े। विश्लेषक शॉन पार्क ने कहा कि चीन और भारत की आत्मनिर्भरता की पहल उद्योग में क्षमता को और बढ़ा सकती है, खासकर जब वैश्विक मांग धीमी है और व्यापार तनाव जारी हैं। रेटिंग एजेंसी ने चेतावनी दी है कि एशियाई पेट्रोकेमिकल निर्यातकों के लिए अमेरिका जैसे बड़े बाजारों में निर्यात करना महंगा हो सकता है, क्योंकि अमेरिकी शुल्कों के कारण विकल्प सीमित हैं। इसके बावजूद, मजबूत घरेलू मांग के चलते भारतीय उत्पादकों की आय को अपेक्षाकृत सुरक्षा प्राप्त रहेगी। रिपोर्ट कहती है कि भारत वर्ष 2030 तक पॉलीएथिलीन का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बन सकता है और वैश्विक पेट्रोकेमिकल उद्योग में उसकी स्थिति मजबूत होगी।


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