भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि केंद्रीय बैंक सोने के बदले कर्ज देने के लिए ऋण-मूल्य (एलटीवी) अनुपात को मौजूदा 75 प्रतिशत से बढ़ाकर 85 प्रतिशत करने की तैयारी में है। केंद्रीय बैंक मुख्यालय में संवाददाताओं से बातचीत में मल्होत्रा ने कहा कि यह छूट कुछ शर्तों के साथ दी जाएगी। एलटीवी की गणना करते समय मूलधन और ब्याज दोनों को शामिल किया जाएगा, जबकि वर्तमान में केवल मूलधन पर ही जोर दिया जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘अभी तक कर्ज-मूल्य अनुपात 75 प्रतिशत था। हम इसे 2.5 लाख रुपये से कम के छोटे ऋण के लिए 85 प्रतिशत तक बढ़ा रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि इसे सोने के ऋण से जुड़े विनियमन में शामिल किया जाएगा। इस पर कुछ समय से काम चल रहा है। मल्होत्रा ने कहा कि संशोधित मानदंडों का उद्देश्य न्यूनतम जोखिम के साथ इस श्रेणी को बेहतर तरीके से विनियमित करना है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थान 75 प्रतिशत की मौजूदा एलटीवी सीमा के तहत स्वर्ण ऋण देते समय ब्याज और मूलधन दोनों को शामिल कर रहे हैं, लेकिन कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां और छोटे बैंकों में एलटीवी को 88 प्रतिशत तक बढ़ाया जा रहा है। कुछ महीने पहले, आरबीआई ने स्वर्ण ऋण पर एक मसौदा जारी किया था। उस समय मल्होत्रा ने यह साफ किया था कि मसौदा पहले जारी किए गए सभी नियमों को केवल एक जगह लाने का कदम है। गवर्नर ने कहा कि इस पर सार्वजनिक परामर्श और कदमों के प्रभाव का आकलन करने के बाद अंतिम नियमन जारी किया जाएगा। मल्होत्रा ने कहा कि अन्य पहलुओं के अलावा, नये स्वर्ण ऋण नियम मालिकाना हक पर भी स्पष्टता प्रदान करेंगे। इसमें स्व-घोषणा की सुविधा शामिल होगी। अगर उधारकर्ता सोने की खरीद की रसीद प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं, वे स्व-घोषणा कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि यह सोना गिरवी रखकर लिये जाने के मामले में 2.5 लाख रुपये तक के ऋण के लिए ‘क्रेडिट’ मूल्यांकन की आवश्यकता को समाप्त कर देगा। गवर्नर ने कहा कि ऋण की अंतिम-उपयोग निगरानी केवल तभी अनिवार्य होगी जब कोई वित्तीय संस्थान किसी कर्ज को प्राथमिकता क्षेत्र के ऋण के रूप में वर्गीकृत करके उसका लाभ उठा रहा हो। मल्होत्रा ने कहा कि यदि किसी वित्तीय संस्थान के पास सोने के अलावा अन्य प्रतिभूतियां हैं, तो क्रेडिट मूल्यांकन के अनुसार कर्ज-मूल्य अनुपात निर्धारित सीमा से अधिक हो सकता है।