अपनी सेविंग को जगह-जगह इंवेस्ट करके उसे बढ़ाते रहने की कोशिशो में लगे इंवेस्टर ज्यादातर समय किसी न किसी तरह की चिंता में रहने लगे हैं। इंवेस्टिंग की दुनिया से जुड़ी जिन सच्चाईयों से इंवेस्टरों को संतुष्ट व खुश होना चाहिए उन्हें भुलाकर इंवेस्टर नुकसान हो जाने की चिंता में डूबे रहते हैं। ऐसा क्यों होता है इसका सही अनुमान लगाना तो मुश्किल है लेकिन अगर मंदी आने के डर को सबसे बड़ा कारण माना जाए तो यह ध्यान रखना जरूरी है कि भयंकर मंदी के दौर बहुत ही कम बार आते है। अब तक भयंकर मंदी के जितने दौर आए है उनकी संख्या 10 से ज्यादा नहीं है पर इंवेस्टमेंट के बाजारों ने जितने साल तेजी के दिखाए है उनकी संख्या कई ज्यादा है। 1950 से 2025 तक मंदी का कोई भी दौर इंवेस्टमेंट बाजारों को बढऩे से रोक नहीं पाया और इन बाजारों में 40-50 साल से काम कर रहे इंवेस्टर यह सच्चाई अच्छी तरह जानते है। इंवेस्टमेंट के बाजारों की सबसे अच्छी बात यह है कि ये इंवेस्टरों की तरह उम्र बढऩे के साथ खत्म हो जाने के नियम पर नहीं चलते। यह इंसान की नेचर में होता है कि वह लम्बे समय तक तेजी बने रहने के बावजूद उसकी खुशी मनाने की जगह कभी भी मंदी आ जाने के डर में रहने लगता है। कैसी भी अनहोनी या अनचाही घटनाओं को इंवेस्टर सीधे बाजारों से जोडऩे लगते हैं व बाजारों के गिरने की राह देखते है पर उन घटनाओं के बाद भी बाजार आगे बढऩे की पॉवर का प्रदर्शन कई बार करते देखे गए है। यह भी सच है कि भयानक मंदी के दौर में इंवेस्टरों की सेविंग साफ हुई है लेकिन बाजारों की नीयत पर भरोसा रखने वाले इंवेस्टरों को मंदी के उस दौर ने कई मौके भी दिए है जिसने इंवेस्टरों की सेविंग को कई गुना बढ़ा दिया। पिछले कुछ सालों से सरकारें व बैंक बाजारों को आगे बढ़ाने में बढ़-चढक़र हिस्सा लेने लगे है जो मंदी की आहट आते ही अपनी ताकत से बाजारों को संभाल रहे है पर पहले ऐसा कभी-कभार ही होता था। यह भी सही है कि सरकारों और बैंकों द्वारा सिस्टम में डाला जा रहा पैसा बाजारों की तेजी को लम्बे समय से सपोर्ट कर रहा है और जब इस पर ब्रेक लगेगा तक बाजार इंसान की तरह उम्र बढऩे पर खत्म होने की बजाए ‘मर्डर’ हो जाने की स्थिति में भी जा सकते है यानि बाजारों को संभालने की कोई तरकीब काम नहीं करेगी। हालांकि जिस तरह प्राइवेट सेविंग का फ्लो बाजारों की ओर आ रहा है उसे देखकर लगता नहीं है कि बाजारों को सरकार के सपोर्ट सिस्टम की जरूरत करीबी फ्यूचर में ज्यादा रहेगी। हमारे पॉलिटिकल लीडरों का इकोनोमी की बारे में जरूरत से ज्यादा कांफिडेंस भी कई बार भारी पड़ सकता है जिसके चलते बाजारों में दबाव की स्थिति बन जाती है। ट्रेड वार व टैरिफ जैसे ग्लोबल फेक्टर बाजारों को प्रभावित करने की पॉवर रखते है पर सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन सभी के बावजूद बाजारों में इंवेस्टरों का जितना भरोसा पिछले 3-4 सालों से आजतक बना हुआ है वैसा पहले बहुत कम बार देखा गया है। बाजार गलतियां नहीं करते बल्कि इंवेस्टरों को गलतियां करने के मौके लगातार देते ही रहते है और अपनी गलतियों के कारण इंवेस्टर मंदी की चिंता से निकल नहीं पाते। इंवेस्टरों द्वारा जल्दी-जल्दी कमाई करने के लिए Common Sense से ज्यादा इंटेलिजेंस का उपयोग करना उन्हें मंदी के कारण खोजने के काम पर लगाए रखता है भले ही बाजारों का मंदी की तरफ जाने का मूड न हो। मंदी से ज्यादा मंदी आने की चिंता में रहना सतर्कता और सावधानी के हिसाब से सही भी है लेकिन मंदी आने का इंतजार करने की बजाए बाजारों की बढ़त को सेलिब्रेट करना इंवेस्टिंग की दुनिया में ज्यादा उपयोगी कहा जा सकता है।