भारत में फ्यूल डिमांड मई में बढक़र 21.32 मिलियन मैट्रिक टन हो गई जो कि एक वर्ष से भी अधिक समय में पीक लेवल है। ऑयल मिनिस्ट्री द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऑयल कंज्यूमर और इम्पोर्टर है, इसलिए फ्यूल डिमांड के आंकड़े देश की इकोनॉमिक एक्टिविडी के बैरोमीटर माने जाते हैं। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की वेबसाइट के अनुसार, मई में फ्यूल डिमांड साल-दर-साल 1.1 परसेंट और महीने-दर-महीने 5.7 परसेंट अधिक रही। पिछले वर्ष मई में डिमांड 21.08 मिलियन टन थी। मई में पेट्रोल सेल्स 9.6 परसेंट बढक़र 3.78 मिलियन टन पर पहुंच गई, जो अप्रेल में 3.45 मिलियन टन थी। सालाना आधार पर इसमें 9.2 परसेंट की ग्रोथ हुई है। वहीं डीजल कंजम्प्शन 4 परसेंट बढक़र 8.59 मिलियन टन रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2.1 परसेंट अधिक है। कुकिंग गैस यानी एलपीजी की सेल्स सालाना 10.4 परसेंट की दर से बढक़र 2.66 मिलियन टन रही, जबकि नेफ्था की सेल्स में 8.3 परसेंट की गिरावट दर्ज की गई और यह घटकर 1.0 मिलियन टन रह गई। इंवेस्टमेंट बैंक यूबीएस के एनेलिस्ट जियोवानी स्टाउनोवो ने कहा भारत में गैसोलीन और एविएशन फ्यूल की डिमांड में मजबूत ग्रोथ देखी गई है। पेट्रोकेमिकल सेक्टर में कमजोरी ही नेफ्था डिमांड में गिरावट का प्रमुख कारण लगती है। इस बीच, भारत की प्राइवेट सेक्टर एक्टिविटी मई में एक वर्ष की सबसे तेज गति से बढ़ी है, जिसमें सर्विस सेक्टर का योगदान प्रमुख रहा है। मई में कई एशियाई पेट्रोकेमिकल प्रोड्यूसर्स ने संकेत दिया कि वे अपने क्रेकर्स को पुन: डिजाइन कर रहे हैं ताकि ज्यादा ईथेन प्रोसेस कर सकें और अमेरिका से बढ़ती सप्लाई का लाभ उठा सकें। उनका कहना है कि वर्तमान में बहुत कम मार्जिन और ग्लोबल ओवरसप्लाई के चलते लागत प्रबंधन जरूरी हो गया है।
