हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था...Personally, I see every crisis and challenge as an opportunity,". ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ को 90 दिन का पॉ•ा (टालना) देने के फैसले से भारत को एक विंडो ऑफ अपॉर्चुनिटी नजर आ रही है। भारत सरकार के एक अधिकारी के अनुसार 90 दिनों की राहत से हमारे सीफूड (समुद्री भोजन) और लाइट मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट को कुछ राहत मिलती है। साथ ही इस दौरान बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट को आगे बढ़ाने का मौका मिल जाएगा। दोनों देश बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट के लिए फरवरी से ही बातचीत कर रहे हैं। भारत और अमेरिका 2030 तक बाइलेटरल ट्रेड को 500 बिलियन डॉलर तक ले जाना चाहते हैं। वर्ष 2024 में भारत और अमेरिका के बीच 129.2 बिलियन डॉलर का बाइलेटरल ट्रेड हुआ था। अमेरिका ने चीन के सिवाय ज्यादातर देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ में 90 दिन की छूट दे दी है। हालांकि इस दौरान 10 परसेंट बेसलाइन टैरिफ लगता रहेगा। ट्रंप प्रशासन ने चीन के जबावी टैरिफ पर पलटवार करते हुए चीन पर अब टैरिफ को बढ़ाकर 125 परसेंट कर दिया है। टैरिफ पॉज के जरिए अमेरिका का प्लान यूरोप और भारत सहित पार्टनर देशों को बचाना और चीन को अलग-थलग करने का है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी वर्ष 2018 से 2020 के बीच भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर सा छिड़ गया था। अमेरिका ने जहां भारत को जीएआर के रियायती प्रिफरेंशियरल टेक्स के दायरे से बाहर कर दिया था। चीन पर 125 परसेंट टैरिफ के कारण उसके सामान का अमेरिका में एक्सपोर्ट करीब-करीब नामुमकिन हो गया है। चीन के ज्यादातर एक्सपोर्टरों ने अपने कर्मचारियों को गो स्लो यानी काम धीमे करने को कह रखा है। चीन के मैन्युफैक्चरिंग बेस के रूप में काम कर रहे वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया आदि देशों पर भी भारी इंपोर्ट टैरिफ लग जाने के कारण भारत के पास अमेरिका मार्केट में दखल बढ़ाने का मौका है। फिलहाल भारत पर केवल 10 परसेंट बेसलाइन टैरिफ लग रहा है ऐसे में भारत की कोशिश इस 90 दिनों का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की है। सरकार का मानना है खासकर सीफूड, फार्मास्यूटिकल्स और गारमेंट्स के मामले में भारत को लीड मिल सकती है। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स ऐसे दो सैक्टर हैं जिनमें भारतीय कंपनियां चीन के इनपुट पर निर्भर हैं। ऐसे में यदि चीन अपने यहां से कंपोनेंट और फार्मा एपीआई के एक्सपोर्ट में अडंगा लगाता है तो परेशानियां भी बढ़ सकती हैं। सरकार को डर यह भी है कि भारत का मार्केट खासकर सस्ते स्टील इंपोर्ट से नया डंपिंग ग्राउंड बन सकता है जिससे लोकल मैन्युफैक्चरर को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। लेकिन आईटी, टेक्निकल सर्विस और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर आदि सैक्टर में भारत को फायदा हो सकता है।