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07-04-2025

फार्मा इंक को ट्रंप देंगे Bitter Dose!

  •  इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत की  जेनेरिक दवाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए फार्मास्यूटिकल्स को रेसिप्रोकल टैरिफ से छूट दी है। डॉनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रेल को लगभग 60 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिया था। भारत पर भी 26 परसेंट टैरिफ लगाया गया है लेकिन भारत में बनी दवाओं को फिलहाल टैरिफ के दायरे से बाहर रखा गया है। इससे भारत की फार्मा इंडस्ट्री को बड़ी राहत मिली थी। हालांकि ट्रंप प्रशासन पहले की कह चुका है कि फार्मा की मैन्युफैक्चरिंग को अमेरिका ले जाना चाहता है। लेकिन अचानक ट्रंप ने यह कहकर तूफान खड़ा कर दिया... “The pharma is going to be starting to come in at, I think, a level that you haven’t really seen before,” President Trump said. इसके बावजूद रिसर्च फर्म सीएलएसए का मानना है भारत की फार्मा कंपनियों के लिए रिस्क इतना ज्यादा नहीं है। ट्रंप भी जेनरिक दवाओं पर बेतहाशा टैरिफ लगाने से बचेंगे क्योंकि इससे अमेरिका का पूरा हेल्थकेयर सिस्टम चरमरा सकता है। अमेरिका के जेनरिक दवा मार्केट में वैसे भी भारत की कंपनियों का दबदबा है ऐसे में कंपनियों के पास प्राइस बढ़ाने की भी सहूलियत है। चूंकि भारत अमेरिकी दवाओं पर 5-10 परसेंट ही कस्टम्स ड्यूटी लगाता है ऐसे में ट्रंप भारत की दवाओं पर करीब इतना ही इंपोर्ट टैरिफ लगा पाएंगे। अमेरिका दवाओं से भारत सरकार को सिर्फ 50 करोड़ डॉलर की इंपोर्ट ड्यूटी मिलती है ऐसे में भारत इसे पूरी तरह हटा सकता है। हालांकि वाइट हाइस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलाइन लीविट ने जनवरी में फार्मा मैन्युफैक्चरिंग को अमेरिका में वापस लाने के संकेत दिए थे। यदि ऐसा होता है तो भारत की कंपनियों को अमेरिका में इंवेस्ट करना पड़ सकता है जिससे भारत के फार्मा एक्सपोर्ट पर बड़ा असर पड़ेगा। हालांकि जैन का मानना है कि मिशन 500 के तहत बाइलेटरल ट्रेड को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लिए दोनों देशों में सहमति बन चुकी है और इसमें फार्मा बहुत महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स इस पार्टनरशिप की आधारशिला है, क्योंकि भारत सस्ती दवाओं की ग्लोबल सप्लाई चेन का लीडर है। आईपीए शीर्ष 23 भारतीय फार्मा कंपनियों का एक नेटवर्क है, जिसमें सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, ल्यूपिन, टोरेंट और ग्लेनमार्क शामिल हैं। भारत में बनी दवाओं का अमेरिका को एक्सपोर्ट करीब 8875 मिलियन डॉलर का है। जबकि 800 मिलियन की अमेरिकी दवाएं भारत इंपोर्ट करता है। दवा भारत का दूसरा सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल एक्सपोर्ट है जो वित्त वर्ष 2024 में भारत से 27.82 बिलियन डॉलर की दवाएं एक्सपोर्ट हुई थीं। वर्ष 2022 में अमेरिका में डॉक्टर द्वारा लिखी गई हर दस में से चार दवाएं मेड इन इंडिया थीं। रिपोर्ट कहती हैं कि भारत की सस्ती दवाओं के कारण 2022 में अमेरिकी हेल्थ सिस्टम को 219 अरब डॉलर और 2013 और 2022 के बीच कुल 1.3 ट्रिलियन डॉलर की बचत हुई है। भारतीय जेनेरिक दवाओं से अगले पांच वर्ष में अमेरिका को 1.3 ट्रिलियन डॉलर की बचत और होने की उम्मीद है।

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फार्मा इंक को ट्रंप देंगे Bitter Dose!

 इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत की  जेनेरिक दवाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए फार्मास्यूटिकल्स को रेसिप्रोकल टैरिफ से छूट दी है। डॉनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रेल को लगभग 60 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिया था। भारत पर भी 26 परसेंट टैरिफ लगाया गया है लेकिन भारत में बनी दवाओं को फिलहाल टैरिफ के दायरे से बाहर रखा गया है। इससे भारत की फार्मा इंडस्ट्री को बड़ी राहत मिली थी। हालांकि ट्रंप प्रशासन पहले की कह चुका है कि फार्मा की मैन्युफैक्चरिंग को अमेरिका ले जाना चाहता है। लेकिन अचानक ट्रंप ने यह कहकर तूफान खड़ा कर दिया... “The pharma is going to be starting to come in at, I think, a level that you haven’t really seen before,” President Trump said. इसके बावजूद रिसर्च फर्म सीएलएसए का मानना है भारत की फार्मा कंपनियों के लिए रिस्क इतना ज्यादा नहीं है। ट्रंप भी जेनरिक दवाओं पर बेतहाशा टैरिफ लगाने से बचेंगे क्योंकि इससे अमेरिका का पूरा हेल्थकेयर सिस्टम चरमरा सकता है। अमेरिका के जेनरिक दवा मार्केट में वैसे भी भारत की कंपनियों का दबदबा है ऐसे में कंपनियों के पास प्राइस बढ़ाने की भी सहूलियत है। चूंकि भारत अमेरिकी दवाओं पर 5-10 परसेंट ही कस्टम्स ड्यूटी लगाता है ऐसे में ट्रंप भारत की दवाओं पर करीब इतना ही इंपोर्ट टैरिफ लगा पाएंगे। अमेरिका दवाओं से भारत सरकार को सिर्फ 50 करोड़ डॉलर की इंपोर्ट ड्यूटी मिलती है ऐसे में भारत इसे पूरी तरह हटा सकता है। हालांकि वाइट हाइस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलाइन लीविट ने जनवरी में फार्मा मैन्युफैक्चरिंग को अमेरिका में वापस लाने के संकेत दिए थे। यदि ऐसा होता है तो भारत की कंपनियों को अमेरिका में इंवेस्ट करना पड़ सकता है जिससे भारत के फार्मा एक्सपोर्ट पर बड़ा असर पड़ेगा। हालांकि जैन का मानना है कि मिशन 500 के तहत बाइलेटरल ट्रेड को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लिए दोनों देशों में सहमति बन चुकी है और इसमें फार्मा बहुत महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स इस पार्टनरशिप की आधारशिला है, क्योंकि भारत सस्ती दवाओं की ग्लोबल सप्लाई चेन का लीडर है। आईपीए शीर्ष 23 भारतीय फार्मा कंपनियों का एक नेटवर्क है, जिसमें सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, ल्यूपिन, टोरेंट और ग्लेनमार्क शामिल हैं। भारत में बनी दवाओं का अमेरिका को एक्सपोर्ट करीब 8875 मिलियन डॉलर का है। जबकि 800 मिलियन की अमेरिकी दवाएं भारत इंपोर्ट करता है। दवा भारत का दूसरा सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल एक्सपोर्ट है जो वित्त वर्ष 2024 में भारत से 27.82 बिलियन डॉलर की दवाएं एक्सपोर्ट हुई थीं। वर्ष 2022 में अमेरिका में डॉक्टर द्वारा लिखी गई हर दस में से चार दवाएं मेड इन इंडिया थीं। रिपोर्ट कहती हैं कि भारत की सस्ती दवाओं के कारण 2022 में अमेरिकी हेल्थ सिस्टम को 219 अरब डॉलर और 2013 और 2022 के बीच कुल 1.3 ट्रिलियन डॉलर की बचत हुई है। भारतीय जेनेरिक दवाओं से अगले पांच वर्ष में अमेरिका को 1.3 ट्रिलियन डॉलर की बचत और होने की उम्मीद है।


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