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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

09-04-2025

घबराहट, एक्शन और पछतावा!

  •  जिस तरह की Selling का तूफान भारत सहित दुनियाभर के बाजारों में आया है, वह वर्ष 2020 यानि कोविड संकट के बाद बाजारों से जुड़े कई इंवेस्टरों के लिए पहला Experience (अनुभव) है जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा और उन्हें यह भी नहीं पता कि ऐसी स्थिति में किस तरह React (प्रतिक्रिया) करना चाहिए। एक अलग दौर में पहुंच चुकी ग्लोबल कारोबारी व्यवस्था आने वाले समय में अच्छी साबित होगी या नहीं यह कांफिडेंस दुनिया के किसी भी देश के अधिकतर इंवेस्टरों को नहीं है, जो शेयर बाजारो में अपने एक्शन से इसे साबित कर रहे हैं। अधिकतर इंवेस्टरों के साथ-साथ कई देशों के राजनेता व ब्यूरोक्रेट Emotional Mess (भावनात्मक चुनौती) से गुजर रहे हैं, जिन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि अमेरिका की चुनौती का सामना कैसे किया जाए व कैसे अपने देश की इकोनॉमी की रक्षा की जाए। ऐसे समय में Common Sense का उपयोग करते हुए सही करने व सही सोचने की शक्ति को आजमाया जा सकता है जो शायद कम दर्द के साथ इस दौर से निकलने में मदद कर सकती है। जब Uncertainity (अनिश्चितता) का माहौल गहराने लगता है तो इंसान के दिमाग में डर और चिंता डवलप होती है जिससे Survival (बने रहने) के उपाय करने पर पूरा फोकस शिफ्ट हो जाता है। डर के चलते Negative विचारों की संख्या तेजी से बढ़ती है और हर इकानॉमिक व सोशल सिग्नल हमारा ध्यान तुरंत खींचने लगता हैं। यह स्थिति हमारी सोच व Thinking पॉवर को Flexible नहीं रहने देती व एक ही दिशा में आगे बढ़ाती रहती है। इंसान का यह नेचुरल बिहेवियर बाजारों की क्रूरता के समय कई बार सपोर्ट करते देखा गया है जिसे पुराने इंवेस्टर जानते हैं पर यह अनुभव नए इंवेस्टरों के पास नहीं है। नए इंवेस्टर जो Data, Research, Report, Tip जैसी इंटेलीजेंस वाली चीजों के अलावा भेड़चाल पर भरोसा करके अपने इंवेस्टमेंट के निर्णय लेते रहे हैं उन्हें यह पता नहीं था कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प टैरिफ जैसे अनजान हथियार से इन सभी का महत्व खत्म कर सकते हैं। आज के माहौल में सही सोच रखना व सही एक्शन लेेना सबसे मुश्किल है पर सबसे जरूरी भी है जिसके लिए पहली शर्त यह है कि अपने इंवेस्टमेंट की वेल्यू कम होते देख डर व चिंता को खुद पर हावी न होने देने की पॉवर डवलप करना। आज हड़बड़ी में लिए गए निर्णयों के लिए आगे चलकर पछताना न पड़े इस पर गंभीरता से विचार करके जरूरी हो तब ही निर्णय लिए जाने चाहिए। Action की बजाए Thinking को ज्यादा महत्व देने से अलग सोचने में मदद मिलती है यानि ऐसी स्थिति में जब कुछ भी हो सकता है तब जरूरी नहीं है कि जितना खराब हुआ है उससे भी ज्यादा खराब होगा बल्कि अच्छा होने के अवसर भी बराबर ही रहते हैं जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान ठहर पाता है। बाजार कैसे बिहेव करेंगे यह जानना किसी के लिए संभव नहीं है और राष्ट्रपति ट्रम्प आगे क्या कर सकते हैं यह भी किसी को नहीं पता लेकिन यह सभी मान सकते हैं कि टैरिफ से हुए ग्लोबल नुकसान की तरफ सभी का ध्यान आज नहीं तो कल जाएगा व उसकी भरपाई करने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे जो अच्छा होने की उम्मीद को बल देते हैं। अगर हम इतिहास से सीखे तो पता लगता है कि अंत में बाजार रिकवर होते हैं जैसे कल हुए और इकोनॉमी की मार व ट्रेड वार से थकने के बाद Logic और समझदारी को काम पर लगाया जाएगा जिसके रिजल्ट अच्छे ही होंगे। देश व बाजार इससे पहले भी भयंकर व खतरनाक दौर देख चुके हैं जिसके बाद के समय ने सभी के जख्म भर दिए थे  इसलिए घबराहट के चलते तुरंत Action लेने से बचने की स्ट्रेटेजी काम आ सकती है, जिस पर आज बन चुके ग्लोबल कारोबारी व इंवेस्टमेंट के माहौल में विचार किया जा सकता है।

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घबराहट, एक्शन और पछतावा!

 जिस तरह की Selling का तूफान भारत सहित दुनियाभर के बाजारों में आया है, वह वर्ष 2020 यानि कोविड संकट के बाद बाजारों से जुड़े कई इंवेस्टरों के लिए पहला Experience (अनुभव) है जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा और उन्हें यह भी नहीं पता कि ऐसी स्थिति में किस तरह React (प्रतिक्रिया) करना चाहिए। एक अलग दौर में पहुंच चुकी ग्लोबल कारोबारी व्यवस्था आने वाले समय में अच्छी साबित होगी या नहीं यह कांफिडेंस दुनिया के किसी भी देश के अधिकतर इंवेस्टरों को नहीं है, जो शेयर बाजारो में अपने एक्शन से इसे साबित कर रहे हैं। अधिकतर इंवेस्टरों के साथ-साथ कई देशों के राजनेता व ब्यूरोक्रेट Emotional Mess (भावनात्मक चुनौती) से गुजर रहे हैं, जिन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि अमेरिका की चुनौती का सामना कैसे किया जाए व कैसे अपने देश की इकोनॉमी की रक्षा की जाए। ऐसे समय में Common Sense का उपयोग करते हुए सही करने व सही सोचने की शक्ति को आजमाया जा सकता है जो शायद कम दर्द के साथ इस दौर से निकलने में मदद कर सकती है। जब Uncertainity (अनिश्चितता) का माहौल गहराने लगता है तो इंसान के दिमाग में डर और चिंता डवलप होती है जिससे Survival (बने रहने) के उपाय करने पर पूरा फोकस शिफ्ट हो जाता है। डर के चलते Negative विचारों की संख्या तेजी से बढ़ती है और हर इकानॉमिक व सोशल सिग्नल हमारा ध्यान तुरंत खींचने लगता हैं। यह स्थिति हमारी सोच व Thinking पॉवर को Flexible नहीं रहने देती व एक ही दिशा में आगे बढ़ाती रहती है। इंसान का यह नेचुरल बिहेवियर बाजारों की क्रूरता के समय कई बार सपोर्ट करते देखा गया है जिसे पुराने इंवेस्टर जानते हैं पर यह अनुभव नए इंवेस्टरों के पास नहीं है। नए इंवेस्टर जो Data, Research, Report, Tip जैसी इंटेलीजेंस वाली चीजों के अलावा भेड़चाल पर भरोसा करके अपने इंवेस्टमेंट के निर्णय लेते रहे हैं उन्हें यह पता नहीं था कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प टैरिफ जैसे अनजान हथियार से इन सभी का महत्व खत्म कर सकते हैं। आज के माहौल में सही सोच रखना व सही एक्शन लेेना सबसे मुश्किल है पर सबसे जरूरी भी है जिसके लिए पहली शर्त यह है कि अपने इंवेस्टमेंट की वेल्यू कम होते देख डर व चिंता को खुद पर हावी न होने देने की पॉवर डवलप करना। आज हड़बड़ी में लिए गए निर्णयों के लिए आगे चलकर पछताना न पड़े इस पर गंभीरता से विचार करके जरूरी हो तब ही निर्णय लिए जाने चाहिए। Action की बजाए Thinking को ज्यादा महत्व देने से अलग सोचने में मदद मिलती है यानि ऐसी स्थिति में जब कुछ भी हो सकता है तब जरूरी नहीं है कि जितना खराब हुआ है उससे भी ज्यादा खराब होगा बल्कि अच्छा होने के अवसर भी बराबर ही रहते हैं जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान ठहर पाता है। बाजार कैसे बिहेव करेंगे यह जानना किसी के लिए संभव नहीं है और राष्ट्रपति ट्रम्प आगे क्या कर सकते हैं यह भी किसी को नहीं पता लेकिन यह सभी मान सकते हैं कि टैरिफ से हुए ग्लोबल नुकसान की तरफ सभी का ध्यान आज नहीं तो कल जाएगा व उसकी भरपाई करने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे जो अच्छा होने की उम्मीद को बल देते हैं। अगर हम इतिहास से सीखे तो पता लगता है कि अंत में बाजार रिकवर होते हैं जैसे कल हुए और इकोनॉमी की मार व ट्रेड वार से थकने के बाद Logic और समझदारी को काम पर लगाया जाएगा जिसके रिजल्ट अच्छे ही होंगे। देश व बाजार इससे पहले भी भयंकर व खतरनाक दौर देख चुके हैं जिसके बाद के समय ने सभी के जख्म भर दिए थे  इसलिए घबराहट के चलते तुरंत Action लेने से बचने की स्ट्रेटेजी काम आ सकती है, जिस पर आज बन चुके ग्लोबल कारोबारी व इंवेस्टमेंट के माहौल में विचार किया जा सकता है।


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