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12-09-2025

Digital Sunset को अपनाकर तो देखें

  •  नर्वस सिस्टम 24/7 इनपुट के लिए नहीं बना है, थोड़ा फिजिकल और मेंटल सुकून भी आवश्यक है। सबसे सहज और बेहद सरल औषधि क्या हो सकती है? तो इसका उपाय भी आपके पास है। थोड़ी देर का स्विच ऑफ फायदेमंद साबित हो सकता है। डिजिटल सनसेट ब्रह्मास्त्र की तरह काम कर सकता है। आज के दौर में मोबाइल, लैपटॉप और टीवी हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुके हैं। हम सुबह उठते ही स्क्रीन पर निगाहें टिकाते हैं और रात को सोने से पहले भी इन्हीं से जुड़े रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि लगातार इन डिवाइसेज से जुड़े रहना आपकी नींद और मानसिक शांति को किस तरह प्रभावित कर रहा है? इन्हीं चिंताओं के बीच एक नई आदत है—डिजिटल सनसेट, यानी दिन ढलने के बाद, विशेष रूप से सोने से एक से दो घंटे पहले, डिजिटल उपकरणों से पूरी तरह दूरी बना लेने की। यह सुनने में छोटा सा बदलाव लगता है, लेकिन इसके असर गहरे और चमत्कारी हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन नामक हार्मोन के सीके्रशन को बाधित करती है, यही हार्मोन नींद को नियंत्रित करता है। इससे नींद की गुणवत्ता गिरती है और अनिद्रा की समस्या हो सकती है। सोशल मीडिया, गेमिंग, या ऑफिस के ईमेल पढऩे से मस्तिष्क में डोपामिन रिलीज होता है, जिससे हम अलर्ट महसूस करते हैं। यह प्रक्रिया सोने से पहले मस्तिष्क को शांत होने नहीं देती।

    डब्ल्यूएचओ और निमहंस जैसी संस्थाओं के अध्ययन बताते हैं कि नींद की कमी से तनाव, अवसाद और चिंता जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं और डिजिटल सनसेट इस चक्र को तोड़ सकता है। डिजिटल सनसेट अपनाने से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। जब हम सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाते हैं, तो हमारा दिमाग स्वाभाविक रूप से शांत होने लगता है। इस समय का उपयोग आप किताब पढऩे, ध्यान करने, हल्के व्यायाम या परिवार से बातचीत में कर सकते हैं। यह न सिर्फ आपके नींद के अनुभव को बेहतर बनाता है, बल्कि मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन भी बढ़ाता है। बच्चों और किशोरों के लिए भी यह आदत बेहद जरूरी है, क्योंकि उनका मस्तिष्क अभी विकास की अवस्था में होता है। अगर बचपन से ही उन्हें डिजिटल उपकरणों के सीमित उपयोग की आदत डाली जाए, तो उनकी एकाग्रता और रचनात्मकता कई गुना बढ़ सकती है। डिजिटल सनसेट को आप त्याग न समझें, बल्कि एक समझदारी भरी आदत मान सकते हैं। ऐसी आदत जो आज के समय में हर व्यक्ति को अपनानी चाहिए। सोने से पहले स्क्रीन से दूर रहना एक छोटा सा फैसला है, लेकिन यह आपकी नींद, आपकी सोच और आपके पूरे जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकता है। तो क्यों न आज से ही तय किया जाए कि रात को सोने से पहले कुछ घंटों के लिए स्क्रीन को शुभरात्रि कह दिया जाए—ताकि हम खुद को एक शांत, सुकूनभरी और स्वस्थ नींद का उपहार दे सकें।

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Digital Sunset को अपनाकर तो देखें

 नर्वस सिस्टम 24/7 इनपुट के लिए नहीं बना है, थोड़ा फिजिकल और मेंटल सुकून भी आवश्यक है। सबसे सहज और बेहद सरल औषधि क्या हो सकती है? तो इसका उपाय भी आपके पास है। थोड़ी देर का स्विच ऑफ फायदेमंद साबित हो सकता है। डिजिटल सनसेट ब्रह्मास्त्र की तरह काम कर सकता है। आज के दौर में मोबाइल, लैपटॉप और टीवी हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुके हैं। हम सुबह उठते ही स्क्रीन पर निगाहें टिकाते हैं और रात को सोने से पहले भी इन्हीं से जुड़े रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि लगातार इन डिवाइसेज से जुड़े रहना आपकी नींद और मानसिक शांति को किस तरह प्रभावित कर रहा है? इन्हीं चिंताओं के बीच एक नई आदत है—डिजिटल सनसेट, यानी दिन ढलने के बाद, विशेष रूप से सोने से एक से दो घंटे पहले, डिजिटल उपकरणों से पूरी तरह दूरी बना लेने की। यह सुनने में छोटा सा बदलाव लगता है, लेकिन इसके असर गहरे और चमत्कारी हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन नामक हार्मोन के सीके्रशन को बाधित करती है, यही हार्मोन नींद को नियंत्रित करता है। इससे नींद की गुणवत्ता गिरती है और अनिद्रा की समस्या हो सकती है। सोशल मीडिया, गेमिंग, या ऑफिस के ईमेल पढऩे से मस्तिष्क में डोपामिन रिलीज होता है, जिससे हम अलर्ट महसूस करते हैं। यह प्रक्रिया सोने से पहले मस्तिष्क को शांत होने नहीं देती।

डब्ल्यूएचओ और निमहंस जैसी संस्थाओं के अध्ययन बताते हैं कि नींद की कमी से तनाव, अवसाद और चिंता जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं और डिजिटल सनसेट इस चक्र को तोड़ सकता है। डिजिटल सनसेट अपनाने से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। जब हम सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाते हैं, तो हमारा दिमाग स्वाभाविक रूप से शांत होने लगता है। इस समय का उपयोग आप किताब पढऩे, ध्यान करने, हल्के व्यायाम या परिवार से बातचीत में कर सकते हैं। यह न सिर्फ आपके नींद के अनुभव को बेहतर बनाता है, बल्कि मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन भी बढ़ाता है। बच्चों और किशोरों के लिए भी यह आदत बेहद जरूरी है, क्योंकि उनका मस्तिष्क अभी विकास की अवस्था में होता है। अगर बचपन से ही उन्हें डिजिटल उपकरणों के सीमित उपयोग की आदत डाली जाए, तो उनकी एकाग्रता और रचनात्मकता कई गुना बढ़ सकती है। डिजिटल सनसेट को आप त्याग न समझें, बल्कि एक समझदारी भरी आदत मान सकते हैं। ऐसी आदत जो आज के समय में हर व्यक्ति को अपनानी चाहिए। सोने से पहले स्क्रीन से दूर रहना एक छोटा सा फैसला है, लेकिन यह आपकी नींद, आपकी सोच और आपके पूरे जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकता है। तो क्यों न आज से ही तय किया जाए कि रात को सोने से पहले कुछ घंटों के लिए स्क्रीन को शुभरात्रि कह दिया जाए—ताकि हम खुद को एक शांत, सुकूनभरी और स्वस्थ नींद का उपहार दे सकें।


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