भारत में ज्ञान पेशेवरों और मध्यम-कॅरियर पेशेवरों को उम्मीद है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) उनकी भूमिकाओं पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी, भले ही विशेष रूप से युवा पेशेवरों के बीच जॉन लॉस की चिंताएं बनी हुई हैं। एक मानव पूंजी प्रबंधन समाधान प्रदाता के शीर्ष अधिकारी ने यह बात कही है। ऐसे समय में जब एआई किसी संगठन के कामकाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, कई पेशेवर एआई की सकारात्मक संभावनाओं को देखते हैं। साथ ही, बड़ी संख्या में लोग नौकरी जाने को लेकर भी चिंतित हैं और अपनी भूमिकाओं पर एआई के भविष्य के प्रभाव को लेकर अनिश्चित महसूस करते हैं। एआई अपनाने को लेकर डर और प्रतिरोध को कम करने के लिए, संगठन एआई अपनाने के उत्साह को नौकरी जाने की चिंताओं के साथ संतुलित करते हैं। एडीपी भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के मैनेजिंग डायरेक्टर के अनुसार डर का एक अच्छा उपाय कौशल निर्माण है। जब नियोक्ता अनुकूलित प्रशिक्षण और कौशल विकास में निवेश करते हैं, तो कर्मचारियों की चिंता आत्मविश्वास में बदल जाती है और आशावाद बढ़ता है। एडीपी की ‘पीपल एट वर्क’ रिपोर्ट के नवीनतम अध्याय के अनुसार, भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार (34 प्रतिशत) है जहां लोग दृढ़ता से सहमत हैं कि एआई अगले वर्ष उनकी नौकरी की जिम्मेदारियों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा। केवल 17 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि एआई उनकी नौकरियों की जगह ले लेगा। एआई के बारे में भारत का आशावाद कार्यबल की तैयारी, सांस्कृतिक लचीलेपन और डिजिटल परिवर्तन के पैमाने के अनूठे मिश्रण से उपजा है। उन्होंने कहा कि हमारी युवा, प्रौद्योगिकी-प्रेमी आबादी एआई को दोहराए जाने वाले कार्यों को सरल बनाने, उत्पादकता बढ़ाने और उच्च-मूल्य वाले कार्यों में परिवर्तन के साधन के रूप में देखती है। राष्ट्रीय एआई रूपरेखा जैसा नीतिगत समर्थन भी आत्मविश्वास को मजबूत करता है। उनके अनुसार इस आशावाद के बावजूद, युवा पेशेवर (27-39) वृद्ध आयु समूहों की तुलना में एआई के कारण नौकरी छूटने का अधिक डर दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि युवा पेशेवर अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में हैं, इसलिए वे स्वाभाविक रूप से एआई के अवसरों और अनिश्चितताओं, दोनों का आकलन करते हैं। हमारा सर्वेक्षण दर्शाता है कि अनिश्चितताएं चिंता और भय का कारण बन सकती हैं। सेवानिवृत्ति के करीब पहुंच चुके वृद्ध कर्मचारियों को अक्सर लगता है कि एआई का उनकी भूमिकाओं पर सीमित प्रभाव पड़ेगा। एडीपी की रिपोर्ट के अनुसार, 40-54 वर्ष की आयु के 37 प्रतिशत भारतीय कार्यबल इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि एआई अगले वर्ष उनकी नौकरी की जिम्मेदारियों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा, जो वैश्विक स्तर पर सबसे ज़्यादा है। निराशावाद मुख्य रूप से 27 से 39 वर्ष की आयु के कार्यबल में मौजूद है, जहां 19 प्रतिशत लोग इस बात से डरते हैं कि एआई उनकी नौकरियों की जगह ले लेगा। 40-54 आयु वर्ग में यह अनुपात घटकर 15 प्रतिशत रह जाता है। इससे निपटने के लिए संगठनों को यह बताना चाहिए कि एआई कहां कार्यों को बदलने के बजाय उनका समर्थन करता है और संचार को पारदर्शी बनाए रखता है।