कारोबारों की शुरुआत जब भी हुई होगी, उस समय से लेकर आजतक ‘प्रोफिट’ कमाना ही कारोबारों का सबसे बड़ा लक्ष्य रहा है जिसके बाद मार्केट शेयर, रेवेन्यू, मार्जिन, ब्रांडिंग आदि जैसे कामों पर ध्यान दिया जाता है पर इस बेसिक नियम को बदलने के लिए नए-नए कारोबारों ने पूरी ताकत लगा रखी है लेकिन इस नियम की पॉवर उन्हें सफल नहीं होने दे रही। जितने नए कारोबार पिछले कुछ वर्षों में असफल होकर बंद हो चुके हैं उतने पहले कभी इतने कम समय में जन्म लेने के बाद बंद नहीं हुए। एक रिसर्च में पता चला कि 50 प्रतिशत नए कारोबार 2 साल तक चल पाते हैं और करीब 35 प्रतिशत 5 साल तक कोशिशे करने के बाद बंद हो जाते हैं और बाकी बच्चे कारोबारों में भी ‘प्रोफिट’ कमाने वालों की संख्या नाममात्र की ही रहती है। आखिर ऊंची से ऊंची डिग्रियों के साथ-साथ अनुभवी लोगों की सीख व बाजारों के व्यवहार को समझने की काबिलियत होने के बावजूद अधिकतर नए कारोबारी सफलता के साथ लम्बे समय तक क्यों नहीं चल पा रहे हैं? यह करोड़ों का सवाल है जिसका जवाब कोई ठीक-ठीक नहीं बता सकता पर फेल हो चुके कारोबारों को बारिकी से समझने पर साफ पता चलता है कि ज्यादातर एक जैसी गलतियों के ही शिकार हो रहे हैं। आजकल हर किसी को अपना आइडिया Unique (अकेला, अलग) लगता है जिसे वह किसी से शेयर करने की बजाए खुद ही आजमाने लगता है पर अकेले चलने की यह स्थिति ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाती क्योंकि किसी भी कारोबार के लिए अलग-अलग स्किल वाले लोगों की टीम जरूरी होती है जो एक-दूसरे को सपोर्ट करते हुए कारोबार को आगे बढ़ाती है। इसी तरह जल्दी-जल्दी ग्रोथ करने की होड़ में कारोबार अपनी क्षमता से बड़ा दाव लगा लेते हैं। यह जरूरी है कि नए कारोबार शॉट-टर्म व लांग टर्म टारगेट के बीच बेलेंस बनाकर चले और कारोबारी ग्रोथ के लिए कमाई को इंवेस्ट करने का फार्मूला अपनाएं। कैश फ्लो को बनाकर रखना व वर्किंग कैपिटल की कमी न होना नए कारोबारों की नींव मजबूत करने के लिए बहुत जरूरी माना गया है। नए आइडिया को कारोबारी रूप देने के काम में experience (अनुभव) का भी बड़ा रोल होती है जिसे आजकल ज्यादा उपयोगी नहीं माना जा रहा है। फैमिली बिजनस में काम करने वालों के पास अनुभव का बड़ा खजाना रहता है और इस अनुभव के साथ जन्म लेने वाले नए कारोबारों के असफल होने की रेट बाकी के मुकाबले कम रहती है। एक ऑस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी की रिसर्च में पता चला कि जरूरत से ज्यादा Passion (जुनून) भी कारोबारों की सफलता पर असर डालता है क्योंकि ऐसी स्थिति में कारोबार से ज्यादा कारोबारी को खुद की सफलता महत्वपूर्ण लगने लगती है। कारोबार के ज्यादातर निर्णय खुद को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं जिनमें देरी हो जाती है फिर भले ही नुकसान कम करने के लिए कारोबार बंद करने का निर्णय ही क्यों न हो। केपिटल या कैश कारोबारों की शुरुआत से लेकर उसके प्रोफिट में आने तक एकमात्र सहारा होता है जिसके उपयोग पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। अभी जैसा माहौल है उसमें कारोबार कब कमाई देने लगेगा यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है इसलिए जरूरत पडऩे पर आवश्यक केपिटल जुटाने के रास्ते शुरू में ही तय किए जाने चाहिए। एक सच यह है कि अगर किसी प्रोडक्ट या सर्विस के लिए बाजारों में जगह नहीं है तो उनके लिए जगह बनाकर कमाई करने की सोच रखने वाले ज्यादातर कारोबार सफल नहीं होगें। बाजारों को समझने के लिए पहले इंवेस्ट करने की जरूरत को ज्यादातर नए कारोबार अहमियत नहीं देते। सबसे बेहतर उदाहरण रोजाना खुलते-बंद होते रेस्टोरेंट है। रेस्टोरेंट के लिए सिर्फ अच्छे टेस्ट का खाना ही जरूरी नहीं है बल्कि उसकी लोकेशन, टारगेट कस्टमर और मार्केटिंग भी रेस्टोरेंट की सफलता में महत्वपूर्ण रोल निभाती है। यह कोई नहीं सुनना चाहता कि उसका कारोबारी आइडिया सही नहीं है यानि जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास व दूसरों की राय को अनदेखा करना कारोबारी आइडिया के लिए घातक है। कारोबार शुरू क्यों किया जा रहा है इस प्रश्न को हर दिन अपने-आप से व अपनी टीम से पूछना जरूरी है ताकि ध्यान रहे कि जल्दी से जल्दी प्रोफिट कमाना ही हर कारोबार का पहला व सबसे जरूरी फोकस है। यह काम आखिरी में करने की सोच रखने वाले अधिकतर नए कारोबार जिस भंवर में फंसे हुए है वह स्थिति साबित करती है कि प्रोफिट का इंतजार या उसमें देरी कारोबारों की सेहत के लिए अब तक नुकसानदायक रही है और आगे भी रहेगी।