मध्य प्रदेश में मानसून आ चुका है तथा पिछले एक सप्ताह के अंतराल दो-तीन बार अच्छी बरसात हो गई है, इस वजह से तिल्ली की बिजाई इस वर्ष भी अच्छी होने की संभावना प्रबल हो गई है। पुराना स्टॉक इस बार अधिक बचा हुआ है। अत: ग्राहकी निकलते ही स्टॉक निकालना चाहिए। फिलहाल अन्य तेल-तिलहन के भाव ऊंचे होने से वर्तमान भाव में घटने की बिल्कुल गुंजाइश नहीं है। मध्य प्रदेश यूपी में खेतों की जुताई शुरू हो गई है, तिल्ली की बिजाई अभी 10 दिन बाद होगी, लेकिन मानसून को देखते हुए बिजाई अच्छी होने की संभावना है। इस वर्ष तिल्ली का उत्पादन गत वर्ष की अपेक्षा कुछ अधिक हुआ था, जो खपत के अनुरूप फिर भी नहीं था, लेकिन अफ्रीकन देशों की तिल्ली लगातार टूटती चली गई, जिससे आयात गत वर्ष की तुलना में 50 प्रतिशत नीचे भाव पर दोगुना हो गया। यही कारण है कि तिल्ली में लगातार मंदे का दलदल बना हुआ है तथा जो हलिंग का माल ग्वालियर गत वर्ष 155/156 रुपए प्रति किलो बिका था, उसके भाव 85/86 रुपए रह गए हैं तथा नेचुरल तिल्ली छतरपुर लाइन में गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में 140/142 से घटकर केवल 70/71 रुपए रह गई है। इस बार मौसम अनुकूल है, इसलिए बिजाई सामान्य होने वाली है, लेकिन देसी विदेशी तिल्ली का स्टॉक बहुत ज्यादा कारोबारी के गले में फंसा हुआ है, इसलिए तेजी का व्यापार नहीं करना चाहिए। अन्य तेल तिलहन सस्ता होने से तिल्ली की खपत बढ़ जाएगी, इसलिए बाजार 2/3 रुपए प्रति किलो ऊपर नीचे नई फसल आने तक घूमता रहेगा। तिल्ली में जब भी ग्राहकी निकले अपना माल बेचना चाहिए, क्योंकि अगले वर्ष भी इसकी उपलब्धि अधिक बैठेगी। इस बार शुरू से ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नीचे भाव होने से यहां भी काफी नीचे आयात के पड़ते लगने लगे हैं। दूसरी ओर उत्पादन भी अधिक रहा। यही कारण है कि सीजन में जो तिल्ली ग्वालियर हलिंग 120/121 रुपए प्रति किलो बिकी थी, उसके भाव वर्तमान में 85/86 रुपए के निम्न स्तर पर आ गए हैं, जो कम समय में एक ऐतिहासिक मंदा बताया जा रहा है। नेचुरल माल छतरपुर सैठई लाइन में जो 111/112 रुपए बिका था, उसके भाव 70/72 रुपए के निम्न स्तर पर आ गए हैं। देश में तिल्ली का उत्पादन अनुमानत: तीन लाख मीट्रिक टन के करीब हुआ है, लेकिन पिछले दो वर्षों से कारोबारियों को भारी लाभ मिलने से सितंबर-अक्टूबर में ही नई फसल आने पर ऊंचे भाव में माल खरीद लिया। इधर नाइजीरिया एवं सूडान की लगातार मंदे भाव में तिल्ली आने से यहां देसी माल की बिक्री काफी नगण्य रह गई है। निर्यात में भी कोई माल नहीं जा रहा है, क्योंकि सूडान ब्राज़ील एवं नाइजीरिया के माल भारतीय पोर्ट पर 68/70 रुपए प्रति किलो के पड़ते में मिल रहे हैं। वहां 1060 डॉलर से घटकर 775-780 डॉलर प्रति टन भाव रह गए हैं। इस वजह से जो तिल्ली 112/113 रुपए बिकी थी, उसके भाव 70/72 रुपए के बीच मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ की मंडियों में रह गए हैं। अफ्रीकन तिल्ली इस बार वहां उत्पादन अधिक होने से लगातार टूटती चली गई है, अब एटपार भाव आ चुके हैं। यही कारण है कि जिन देशों में भारतीय तिल्ली का निर्यात होता था, वहां के सौदे नहीं हो रहे हैं। यहां से निर्यात एक चौथाई एवं आयात सौदे लगातार सस्ते होने से पानी पानी हो गई है। अभी कारोबारियों के गले में स्टॉक ज्यादा बचा हुआ है तथा निकट में कोई बड़ी खपत नहीं रहने वाली है। इन सबके बावजूद भी अब वर्तमान भाव में घटाकर माल नहीं मिल रहा है तथा नई फसल आने में अभी साढ़े तीन महीने का समय बाकी है, इन परिस्थितियों में घबराने की जरूरत नहीं है, ग्राहकी निकलने पर कुछ बढ़ ही सकता है, लेकिन घटना मुश्किल है।