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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

26-04-2025

‘शबरी के बेर’

  •  पहली भक्ति है, संतों का सत्संग, दूसरी भक्ति है, मेरे कथा प्रसंग में पे्रम, तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा करना, चौथी भक्ति है कपट को छोडक़र मेरे गुण समूहों का गान करना, पांचवी भक्ति है मेरे मंत्र का जाप और मुझ में दृढ़ विश्वास, छठी भक्ति है इंद्रियों का निग्रह, शील, सातवीं भक्ति है जगतभर को समभाव से मुझ में ओत-प्रोत देखना, आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराए दोषों को न देखना, नवी भक्ति है सरलता और सब के साथ कपट रहित बर्ताव करना, हृदय से मेरा(श्रीराम का) भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद का न होना। शबरी, राम के प्रति पूर्ण निष्ठा रखती थी, वह वर्षों से राम के आने का इंतजार कर रही थी। एक दिन राम शबरी की कुटिया पर आ गये। शबरी, राम के अचानक आगमन से हक्की-बक्की रह गयी। राम के दर्शन कर ज्ञान-वैराग्य सब भूल गई और उसे कुछ भी सुध नहीं रही। जैसे वह बेर चख-चखकर खाती थी, उसी स्नेह और उद्देश्य से वह बेरों को चख-चखकर कर श्रीराम को खिलाने लगी, जिसे श्रीराम ने सहर्ष ग्रहण किया।

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‘शबरी के बेर’

 पहली भक्ति है, संतों का सत्संग, दूसरी भक्ति है, मेरे कथा प्रसंग में पे्रम, तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा करना, चौथी भक्ति है कपट को छोडक़र मेरे गुण समूहों का गान करना, पांचवी भक्ति है मेरे मंत्र का जाप और मुझ में दृढ़ विश्वास, छठी भक्ति है इंद्रियों का निग्रह, शील, सातवीं भक्ति है जगतभर को समभाव से मुझ में ओत-प्रोत देखना, आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराए दोषों को न देखना, नवी भक्ति है सरलता और सब के साथ कपट रहित बर्ताव करना, हृदय से मेरा(श्रीराम का) भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद का न होना। शबरी, राम के प्रति पूर्ण निष्ठा रखती थी, वह वर्षों से राम के आने का इंतजार कर रही थी। एक दिन राम शबरी की कुटिया पर आ गये। शबरी, राम के अचानक आगमन से हक्की-बक्की रह गयी। राम के दर्शन कर ज्ञान-वैराग्य सब भूल गई और उसे कुछ भी सुध नहीं रही। जैसे वह बेर चख-चखकर खाती थी, उसी स्नेह और उद्देश्य से वह बेरों को चख-चखकर कर श्रीराम को खिलाने लगी, जिसे श्रीराम ने सहर्ष ग्रहण किया।


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